Sunday 30 May, 2010

सर्बिया का चमकीला नक्षत्र - ईवो आंद्रिक

दो साल की उम्र में जिस बालक को पिता अनाथ छोड़ जाएं, उस के भविष्य की कल्पना ही भयावह होती है। लेकिन जीवट हो तो इंसान क्या नहीं कर सकता? ऐसा ही हुआ, 1961 के नोबल पुरस्कार विजेता कथाकार-उपन्यासकार ईवो आंद्रिक के साथ। 9 अक्टूबर, 1892 को जन्मे ईवो को पिता की मृत्यु के बाद मां के साथ ननिहाल आना पड़ा और आरंभिक वर्ष वहीं गुजारने पड़े। ईवो का जन्म आस्ट्रिया-हंगरी के अधीन प्राचीन ऑटोमान साम्राज्य में हुआ, जो पहले यूगोस्लाविया का भाग था और आज बोस्निया और हर्जेगोविना देश का हिस्सा है। शुरुआत में ईवो ने जिम्नास्टिक की शिक्षा ली और कालांतर में उच्च अध्ययन के लिए कई विश्‍वविद्यालयों में पढ़ाई की। 19 साल की उम्र में ईवो की पहली कविता एक प्रतिष्ठित पत्रिका में प्रकाशित हुई। युवावस्था में ही आंद्रिक क्रांतिकारी छात्र संगठनों से जुड़ गए थे, इसलिए उनके लेखन और व्यवहार में भी क्रांति के स्वर उभरने लगे थे। ईवो वैचारिक रूप से साम्राज्यवाद के खिलाफ थे और यूगोस्लाविया के समर्थक थे, इसलिए उपनिवेशवादी सरकार ने प्रथम विश्‍वयुद्ध के दौरान ईवो आंद्रिक को जेल में डाल दिया। जेल में रहने के दौरान आंद्रिक ने क्रांतिकारी साहित्य का भरपूर अध्ययन किया। लेकिन रूस की सफल क्रांति के बाद बने यूगोस्लाविया गणराज्य में ईवो आंद्रिक को जेल से रिहाई मिली।

प्रथम विश्‍वयुद्ध की समाप्ति के बाद ईवो आंद्रिक ने चार विश्‍वविद्यालयों में स्लाविक भाषा और साहित्य का अध्ययन किया और ‘तुर्की शासनकाल में बोस्नियाई संस्कृति का इतिहास’ विषय पर शोध किया। 1920 में उन्हें यूगोस्लावियाई प्रशासनिक सेवा में ले लिया गया, जहां बीस वर्ष तक उन्होंने कई महत्वपूर्ण राजनयिक पदों पर काम करते हुए अपनी लेखन यात्रा जारी रखी। ईवो की कविताएं अब तमाम महत्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगी थीं और उन्होंने लेखन के साथ विश्‍व साहित्य से अनुवाद का काम भी शुरु कर दिया था। 1920 में पहली कहानी के प्रकाशन के साथ ही ईवो आंद्रिक ने कविता से किनारा कर लिया और पूरी तरह गद्य के लिए समर्पित हो गए। कहानी लेखन में ईवो ने सदियों पुरानी यूगोस्लावियाई लोक संस्कृति को रूपायित करते हुए वहां की कैथोलिक, यहूदी और मुस्लिम समुदाय की समृद्ध विरासत और संघर्षशील जनता के दुख दर्द को शानदार अभिव्यक्ति दी।

दस साल में उनकी कहानियों के कई संग्रह प्रकाशित हुए, जिनमें सबका शीर्षक ‘कहानियां’ था। द्वितीय विश्‍वयुद्ध के दौरान यूगोस्लाविया पर नाजी आक्रमण के बाद ईवो अपनी राजनयिक सेवा छोड़कर स्वदेश वापस लौट आए। लौटते ही नाजियों ने ईवो को उनके घर में ही नजरबंद कर दिया। इस अवधि में ईवो ने अपना सर्वश्रेष्ठ लेखन किया जो 1945 में उपन्यास त्रयी के रूप में प्रकाशित हुआ। इस त्रयी में ‘द ब्रिज ऑन द्रीना’, ‘बोस्नियन क्रॉनिकल’ और ‘द वूमन फ्राम सरायेवो’ को जबर्दस्त लोकप्रियता हासिल हुई। पूर्वी बोस्निया में द्रीना नदी पर एक प्राचीन पुल के माध्यम से ईवो ने बोस्नियाई ग्रामीण समुदाय के चार सदियों के संघर्षमय जीवन को पहली बार विश्‍व के समक्ष रखा। यहां पुल और नदी जीवंत चरित्र के रूप में सामने आते हैं। यह पुल पूरब और पश्चिम को जोड़ने वाले घटक के तौर पर उभरता है, जिसे प्रथम विश्‍वयुद्ध के दौरान आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त कर दिया जाता है। ‘बोस्नियन क्रॉनिकल’ में संस्कृतियों के संघर्ष को ईवो ने अत्यंत प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया है। नेपोलियन के विश्‍वविजयी अभियान के बाद फ्रांसिसी शासन के दौरान किस तरह तुर्की और यूरोपीय संस्कृतियों में जबरदस्त टकराव होता है, इसे महज सात साल के दौरान एक कथासूत्र में पिरोकर ईवो आंद्रिक ने दर्शाया। ‘द वूमन फ्राम सरायेवो’ में एक नौकरानी की धनलोलुपता को ईवो ने एक नीतिकथा की शैली में औपन्यासिकता प्रदान की। यह नौकरानी अच्छी खासी खाती पीती महिला है, लेकिन पैसों को लेकर उसके लालच का कोई अंत नहीं है।

दूसरे विश्‍वयुद्ध के बाद ईवो आंद्रिक कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य बन गए और कई वर्षों तक वे यूगोस्लावियाई लेखक संघ के अध्यक्ष रहे। इस अवधि में ईवो ने सैंकडों कहानियां, यात्रा संस्मरण, सामयिक विषयों पर लेख और कुछ लघु उपन्यास लिखे। पांचवे दशक में यूगोस्लाविया में सामाजिक यथार्थवाद और आधुनिकता को लेकर लंबी बहस चली, जिसमें ईवो आधुनिकता के पक्ष में खड़े थे और अंततः उनके पक्ष की ही जीत हुई। 1960 तक आते-आते ईवो आंद्रिक की रचनाओं का दुनिया की अनेक भाषाओं में अनुवाद होने लगा था और वे सर्वाधिक अनूदित सर्बियाई लेखक हो चुके थे। यूगोस्लाविया के वे सबसे सम्मानित, चर्चित और महत्वपूर्ण व्यक्तियों में थे। 1959 में जाकर ईवो ने चित्रकार मिलिका बेबिक से विवाह किया। 1961 में उन्हें नोबल पुरस्कार प्रदान किया गया। सर्बियाई भाषा के वे पहले साहित्यकार थे, जिन्हें नोबल पुरस्कार से सम्मानित होने का गौरव मिला। उनकी नोबल प्रशस्ति में कहा गया कि ईवो आंद्रिक के लेखन में आधुनिक मनोवैज्ञानिक अंतर्दृष्टि के साथ पुराकथाओं जैसी मानव नियति के दर्शन होते हैं। मानवता के प्रति ईवो गहरा अनुराग और प्रेम महसूस करते हैं लेकिन सबसे बड़ी बुराई के तौर पर दुनिया में मौजूद भय और हिंसा से मुंह नहीं मोड़ते। ईवो आंद्रिक ने अपने देश के इतिहास से मानव की नियति कथाओं को लेकर महाकाव्यात्मक शक्ति से अभिव्यक्त किया है। हिंदी में उनकी कुछ कहानियों का अनुवाद हुआ है। करीब तीन दशक पहले ईवो की उपन्यास त्रयी के पहले उपन्यास को साहित्य अकादमी ने ‘द्रीना नदी का पुल’ शीर्षक से प्रकाशित किया था, जो अब अनुपलब्ध है। ईवो आंद्रिक के लेखन की सबसे बड़ी खूबी यह है कि वे एक निजी और देशज कथा को वैश्विक आयाम देते हैं और इसीलिए सुदूर बोस्निया के बाशिंदों की कहानी भी अपनी-सी लगने लगती है। 13 मार्च, 1975 को 83 बरस की उम्र में ईवो आंद्रिक का निधन हुआ। उनकी मृत्यु के बाद बोस्निया में उनका स्मारक और संग्रहालय बनाया गया। ईवो आंद्रिक आज भी दुनिया में सर्वाधिक पढ़े जाने वाले सर्बियाई लेखक हैं।

1 comment:

  1. इवो आन्द्रिक के परिचय के लिए आभार ...
    आपके मध्यम से कई विदेशी साहित्यकारों का परिचय प्राप्त हो जाता है ...
    सराहनीय कार्य ...!!

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