ना जाने वो कौन जालिम थे जो मेरे प्यारे गुलाबी शहर की खुशियाँ नोच कर ले गए। मैं एक उदास शहर का बाशिंदा हूँ और उतना ही ग़मगीन भी किअपने ही शहर कि दीवारों को देखते हुए भयानक डर लगता है। मैं अपने शहर से बात करना चाहता हूँ लेकिन हिम्मत ही नहीं होती। इस लिए अपनी बात एक खुली चिट्ठी के मार्फ़त कहना चाहता हूँ। यह चिट्ठी आज लिखने की शुरुआत हुई है और उम्मीद करता हूँ कि कल तक पूरी लिख दी जायेगी।
मेरे प्यारे गुलाबी शहर,
तुम्हें मैं हमेशा अपनी साँसों में वैसे ही महसूस करता हूँ जैसे बकौल मिर्जा गालिब ---
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं कायल
जो आँख ही से ना टपका तो फ़िर लहू क्या है
our coments is right .
ReplyDeletebut gulabi nagri is the best last time and agen time .