मां की ममता पर सदियों से कविता, कहानी और उपन्यास लिखे जा रहे हैं। गोर्की का उपन्यास 'मां' तो अपने में क्लासिक है ही। आज मातृ-दिवस यानी मदर्स डे पर पश्चिमी साहित्य की ये तीन क्लासिक कहानियां हिंदी पाठकों के लिए विशेष रूप से प्रस्तुत हैं। इनमें से शुरु की दो कहानियां बुधवार, मई, 2012 को राजस्थान 'पत्रिका' के 'परिवार' परिशिष्ट में प्रकाशित हुई हैं।
मां का सफ़र : टेम्पल बैली
उस युवा मां ने अपनी जिंदगी की राह चुन ली थी। उसने पूछा, ‘क्या
यह रास्ता बहुत लंबा होगा?’ और गुरु ने कहा, ‘हां,
और मुश्किलों भरा भी। तुम इसके आखिरी छोर तक पहुंचते-पहुंचते बूढ़ी हो जाओगी,
लेकिन तुम्हारी यात्रा का अंत, शुरुआत से कहीं बेहतर होगा।‘ लेकिन वह
बहुत खुश थी। रास्ते में वह बच्चों के साथ खेलती रही, उन्हें खाना-पानी देती
रही और ताज़ा झरनों के पानी में उसने बच्चों को नहलाया। सूरज उन पर अपनी धूप की
किरणें बरसाता रहा और मां खुशी के मारे चिल्ला कर बोली, ‘इससे अधिक
सुंदर कभी कुछ नहीं हो सकता।‘
इसके बाद फिर रातें आईं, तूफान आए और कई बार तो रास्ते में
गहरा अंधेरा मिला। बच्चे डर और सर्दी के मारे कांपने लगे। मां ने सबको अपने पास
बुलाया और आंचल में छुपा लिया। बच्चों ने कहा, ‘ओह मां, क्योंकि
तुम हमारे पास हो इसलिये हमें डर नहीं लग रहा और अब हमें कुछ नहीं होगा।‘ और
मां ने कहा, ‘यह तो दिन के उजाले से भी अच्छा वक्त है, क्योंकि मैंने
अपने बच्चों को साहस का पाठ पढ़ाया है।‘
फिर सुबह हुई और सामने एक पहाड़ी थी, मां और बच्चे उस पर
चढ़ते गये और बुरी तरह थके हुए दिखने लगे। मां उन्हें बार-बार कहती रही, ‘अपने
ऊपर भरोसा रखो, हम बस पहुंचने ही वाले हैं।‘ इसलिये बच्चे
आगे बढ़ते रहे और जब वे शिखर पर पहुंच गये तो मां से कहने लगे, ‘ओह
मां, हम तुम्हारे बिना यहां कभी भी नहीं पहुंच सकते थे।‘
रात में जब मां लेटी होती और चांद-तारों को ताक रही होती तो वह
खुद से कहती, ‘कल के मुकाबले आज का दिन बेहतर रहा, क्योंकि आज मेरे बच्चों
ने विपरीत परिस्थितियों में भी हार नहीं मान कर आत्मविश्वास बनाये रखना सीखा है।
कल मैंने उन्हें हौंसले की सीख दी थी, आज सामर्थ्य दी है।‘
अगले दिन अजीबोगरीब बादलों ने आकर पूरी धरती को अपने अंधकार
में डुबो दिया... युद्ध, घृणा और बुराइयों के बादल। उस भयानक अंधकार में जब बच्चों
को कुछ नहीं सूझ रहा थ और वे हाथ-पैर मारकर टटोलते हुए रास्ता खोज रहे थे, मां ने
कहा, ‘ऊपर देखो, अपनी आंखों से वह रोशनी देखो।‘ बच्चों ने
ऊपर देखा, वहां बादलों के पार एक कभी न खत्म होने वाली रोशनी की कौंध थी, जिसके
प्रकाश में बच्चों ने अंधकार भरा रास्ता पूरा किया। उस रात मां ने कहा, ‘आज
का दिन सब दिनो से अच्छा था, क्योंकि आज मैंने अपने बच्चों को ईश्वर के दर्शन
कराए।‘
और दिन गुजरते रहे, सप्ताह, महीने और साल गुजरते चले गये। मां
बूढ़ी होने लगी और उसकी काया झुक कर दोहरी हो गई। लेकिन उसके बच्चे लंबे-तगड़े और
मजबूत थे, उसके साथ हिम्मत के साथ चलते जा रहे थे। और जहां कहीं रास्ता मुश्किल
होता तो वे मां को गोद में उठा लेते, जो पंख जैसी हल्की हो गई थी। आखिरकार वे सब
एक पहाड़ी पर पहुंचे, जहां से उन्हें एक चमकती हुई राह दिखी, जिसके सुनहरी दरवाजे
पूरी तरह खुले हुए थे। इस दृश्य को देखकर मां ने कहा, ‘मैं अपने
सफ़र की मंजिल तक आ पहुंची हूं। और अब मैं जान गई हूं कि अंत शुरुआत से बेहतर होता
है। क्योंकि मेरे बच्चे अब अकेले चल सकते हैं अपने सफर पर और इनके बाद इनके होने
वाले बच्चे भी।‘ बच्चों ने मां से कहा, ‘मां, तुम
हमेशा हमारे साथ चलती रहोगी, जब तुम उन दरवाजों के पार चली जाओगी तब भी हमारे साथ
ही रहोगी।‘
बच्चे उठकर खड़े हो गये और मां को अकेले जाता हुआ देखते रहे। उसके
जाते ही दरवाजे बंद हो गये। बच्चों ने कहा, ‘हम मां को
नहीं देख सकते, लेकिन वह हमारे साथ है। हमारी मां जैसी मां किसी भी याद से कहीं
बढ़कर है। वह हमारे लिए एक जीवंत उपस्थिति है। हमारी मां हमेशा हमारे साथ है। हम
जिस राह पर चलते हैं वहां की पांव के नीचे पत्तियों की सरसराहट में वो मौजूद है। वह
हमारे ताजे धुले कपड़ों की खुश्बू में हमारे साथ है। जब हम ठीक महसूस नहीं कर रहे
होते तो हमारे माथे पर शीतल हाथ की तरह वह होती है। हमारी मां हमारे ठहाकों में
मौजूद रहती है। हमारी आंखों से गिरने वाली आंसू की हर बूंद में वह नुमायां होती
है। मां उस जगह का नाम है, जहां से चलकर हम आये हैं...हमारा पहला घर है वो। मां वो
नक्शा है जिसके मुताबिक हमारा हर एक कदम उठता है। मां हमारा पहला प्यार है...वही
है जिसे हम अपना दिल दे बैठे थे... उससे दुनिया में हमें कोई अलग नहीं कर सकता...ना
समय और न ही कोई दिशा...यहां तक कि मृत्यु भी हमें मां से अलग नहीं कर सकती...
कोर्नेलिया के रतन : जेम्स बॉल्डविन
सैंकड़ों साल पहले प्राचीन रोम शहर की एक सुहानी सुबह की बात
है। एक खूबसूरत बाग में लताओं से घिरे ग्रीष्मावास में दो लड़के खड़े थे। दोनों
अपनी मां और उसकी सहेली को देख रहे थे, जो बगीचे में घूम रही थीं।
‘क्या तुमने कभी कोई ऐसी सुंदर महिला देखी है जैसी अपनी मां की
सहेली है।‘ छोटे भाई ने बड़े भाई का हाथ थामते हुए कहा, ‘वो
तो एक रानी की तरह लगती है।‘
‘फिर भी वो हमारी मां जितनी सुंदर नहीं है।‘
बड़े लड़के ने कहा, ‘यह सही है कि उसके कपड़े बहुत सुंदर हैं, लेकिन उसका चेहरा
सुसभ्य और दयाभाव से भरा हुआ नहीं लगता। अगर कोई रानी है तो हमारी मां ही है।‘
‘हां, बिल्कुल सही कहा।‘ दूसरा भाई बोला,
‘पूरे
रोम में हमारी प्यारी मां जैसी कोई और स्त्री नहीं जो रानी कही जा सकती हो।‘
जल्दी ही उनकी मां कोर्नेलिया घूमते हुए उनसे बात करने आ
पहुंची। उसने एक सादा सफेद गाउन पहन रखा था। उन दिनों के चलन के हिसाब से उसके हाथ
और पांव बिल्कुल नंगे थे और कोई चैन या अंगूठी उसके हाथों और अंगुलियों में नहीं
थी। उसके सिर पर एक ही ताज था, उसके लंबे, नर्म, रेशमी बालों को बंधा हुआ जूड़ा। उसके
चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान तैर रही थी जब उसने अपने बेटों को देखा।
‘बच्चों’, उसने दोनों से कहा, ‘मैं
तुम्हें कुछ बताना चाहती हूं।‘
दोनों पुराने रोमन रिवाज के मुताबिक मां के सामने झुक गये और
बोले, ‘हां, मां बताइये।‘
‘आज हम यहीं इस बगीचे में खाना खाएंगे और इसके बाद मेरी सहेली
हमें हीरे-जवाहरात और रत्नों का वो आश्चर्यजनक संदूक दिखाएंगी, जिसके बारे में
तुम बहुत कुछ सुन चुके हो।‘
दोनों भाई अपनी मां की सहेली की ओर देखते हुए मारे शर्म के
झेंप गये। वे सोच रहे थे कि क्या यह संभव है कि उसकी अंगुलियों में जितनी
अंगूठियां हैं, उससे भी ज्यादा उसके पास और हैं? क्या उसके
पास गले में पहनी हुई चैन और हारों में चमकने वाले मोती-माणिक से भी कहीं अधिक और
जवाहरात हैं?
जब उनका संक्षिप्त भोजन समाप्त हुआ तो एक नौकर घर के भीतर से
एक संदूक लेकर आया। मां की सहेली ने संदूक खोला। ओह, चमकते रत्न, मोती, माणिक और
आभूषणों की दमक से दोनों बच्चों की आंखें आश्चर्य से फटी की फटी रह गईं। वहां
दूध जैसी सफेद मोतियों की अनगिनत लडि़यां थीं, जलते हुए लाल कोयले जैसे चमकते
माणिक के ढेर थे, उस गर्मी के दिन के आसमान की तरह चमकते नीलम थे और सूरज की रोशनी
की तरह चमचमाते हीरे थे।
दोनों भाई देर तक उन रत्नाभूषणों की ओर देर तक देखते रहे। ‘आह’,
छोटे वाले भाई ने कहा, ‘काश, हमारी मां के पास भी ऐसी खूबसूरत
चीजें होतीं।‘
आखिरकार संदूक बंद कर दिया गया और सावधानी से अंदर ले जाया
गया।
‘कोर्नेलिया, क्या यह सच है कि तुम्हारे पास कोई रत्न नहीं
है?’
सहेली ने पूछा, ‘क्या सच में जैसा मैंने फुसफुसाहटों में सुना है कि तुम गरीब
हो, यह सच है?’
‘नहीं, मैं गरीब नहीं हूं।‘ कोर्नेलिया
ने अपने दोनों बेटों को उसके सामने जवाब की तरह पेश करते हुए कहा, ‘ये
रहे मेरे रतन। ये तुम्हारे सारे जवाहरातों से कहीं अधिक मूल्यवान हैं।‘
दोनों लड़के अपनी मां के गर्व, प्रेम और पोषण को फिर जीवन में
कभी नहीं भूले। और बरसों बाद जब वे दोनों रोम के महान लोगों में गिने जाने लगे, वे
बगीचे के इस दृश्य को अक्सर याद किया करते थे। और दुनिया का क्या कहें, वो तो
आज भी कोर्नेलिया के रत्नों की कहानी सुनना चाहती है।
वादा : टी.एस. ऑर्थर
वह खूबसूरत नौजवान मां घर से बाजार की ओर जाने ही वाली थी कि
उसका प्यारा-सा बेटा आया और मां से लिपट कर कहने लगा, ‘ममा, मेरी प्यारी
मां, क्या तुम मुझे एक पिक्चर बुक नहीं लाकर दोगी..जैसी ऐडी के पास है।‘ मां
ने कहा, ‘अगर तुम एक अच्छे बच्चे की तरह ठीक से रहे और ममा के आने तक
आया की बात मानोगे तो जरूर लाकर दूंगी।‘ बच्चे ने अच्छे बच्चे की तरह
वादा करते हुए कह, ‘बिल्कुल, मैं बहुत अच्छे से रहूंगा, आप आकर चाहे तो आया से
पूछ लेना।‘ मां ने अपने प्यारे बेटे के गालों को चूमा और घर से चल दी।
उधर बेटा अपने कमरे में जाकर मां से किये गये वादे के मुताबिक
अच्छा बच्चा बने रहने की कोशिश करने में जुट गया। उसने आया से लिपटते हुए कहा, ‘मेरी
मम्मी कितनी अच्छी और सुंदर है जो मेरे लिए एक प्यारी-सी पिक्चर बुक लेकर
आएंगी। कितना अच्छा लगेगा मुझे वो बुक मिलने से... ऐडी जैसी सुंदर पिक्चर
बुक...वाह खूब मजा आएगा। मैं कब से उस बुक के बारे में सोच रहा था। मेरी मां कितनी
प्यारी है ना आंटी...।‘ आया ने कहा, ‘हां बेटा,
तुम्हारी मम्मी बहुत प्यारी है और कितना प्यार करती है तुम्हें... तुम जो भी
कहते हो वही करती है।‘ और फिर वो बच्चा अपने खिलौनों से खेलने लग गया, लेकिन उसके
दिमाग में पिक्चर बुक ही घूम रही थी। थोड़ी देर बाद उसने आया से पूछा कि क्यों
अब तक तो मम्मी को आ जाना चाहिये ना..। आया ने कहा, ‘हां, उन्हें
आने में ज्यादा देर नहीं लगेगी।‘ और तभी दरवाजे पर घंटी बजी तो बच्चा ताली
बजा कर दौड़ते हुए खुशी से चिल्लाकर बोला,’ओह मम्मी आ
गई।‘
आया कुछ कहती उससे पहले ही वह दरवाजे से निराश लौट आया, ‘कोई झाड़ू
बेचने वाला आया था।‘ आया ने कहा, ’बेटा तुम्हारी मम्मी को लगता है आज
आने में बहुत देर लगेगी, इसलिये तुम जाकर अपने कमरे में ब्लॉक्स से घर बनाओ।‘ बच्चे
ने कहा, ‘नहीं, मैं घर बनाने के खेल से बोर हो गया हूं। और अब तो मम्मी
ने पिक्चर बुक का वादा किया है इसलिए मैं और किसी चीज के बारे में सोच भी नहीं
सकता।‘ आया ने कहा, ‘अच्छा ठीक है, लेकिन किताब के बारे में
सोचने से तो मम्मी जल्दी नहीं आएंगी ना।‘ बच्चे ने कहा, ‘अब
मैं किताब के अलावा और सोच भी क्या सकता हूं।‘ कुछ देर बच्चा
और खेलों में लग गया और आया ने पूरी कोशिश की कि वो उसे खुश रखे और किताब से उसका
ध्यान बंटाकर रखे। लेकिन बच्चा तो बार-बार खिड़की-दरवाजें पर जाकर देखता रहा कि
मम्मी आई है कि नहीं।
लेकिन पाठकों को भी लगेगा कि कितने आश्चर्य की बात है कि घर
से निकलते ही मां भूल गई कि उसने अपने बेटे से कोई वादा भी किया है। ऐसा नहीं कि
उसे अपने बच्चे की खुशी का खयाल नहीं था या कि वो अपने बच्चे को प्यार नहीं
करती थी, ऐसा कुछ नहीं था। उसके दिमाग में इतनी सारी चीज़ें थीं कि उसे बच्चे की
ऐसी गहरी उत्सुकता का कोई अंदाज़ नहीं था। उसे लगा होगा कि बेटे ने बस यूं ही कह
दिया है तो पिक्चर बुक तो कभी भी लाई जा सकती है। उसने कभी अपने बच्चे को ना
नहीं कहा, इसलिये उसकी हर बात पर हां कहने वाली मां को सच में अपने कामधाम में
बिल्कुल खयाल नहीं रहा।
जब वो घर के दरवाजे पर आई तो बेटे का चेहरा देख उसे याद आया और
बेटे ने पूछा, ‘मम्मी, कहां है मेरी पिक्चर बुक...मैं कब से इंतजार कर रहा
हूं आपके आने का।’ अचकचाते हुए और अपनी भूल पर पछताते हुए मां ने कहा, ‘सुनो
बेटा, मेरी बात तो सुनो।‘ और अब क्या था, बच्चा समझ गया कि मम्मी
के जिस वादे पर वह दिन भर विश्वास किये हुए था, वह टूट गया है। उसका चेहरा मायूस
हो गया और आंखों में आंसू भर आए। मां उसके पास बैठी लेकिन उसका चेहरा देख उस पर
जितना प्यार आया उससे ज्यादा अचानक उसे चिढ़ हुई और कहने लगी, ‘तुमने
अच्छा बच्चा बने रहने का वादा किया था ना बेटा...।‘ बच्चे ने
कहा, ‘हां तो मैं रहा ना, चाहो तो आंटी से पूछ लो।‘ उसकी
आंखों से आंसू बहने लगे थे। मां ने कहा, ‘सुनो, रोने से कुछ नहीं होगा।
मैं नहीं ला सकी, उसका कारण है...बहुत सारे काम थे...मैंने वादा किया है तो ला
दूंगी, अब चुप हो जाओ वरना मैं...’ वो कुछ कहने वाली थी कि उसका मन भर
आया। कैसे इस मासूम को सजा देने की बात सोची। बच्चे का रोना बढ़ता ही जा रहा था
और मां का गुस्सा भी। ‘तो तुम नहीं मानोगे, है ना...’,
कहकर मां ने उसका हाथ सख्ती से पकड़ा और ठीक इसी वक्त दरवाजा खुलने की आहट हुई,
बच्चे के पिता आ चुके थे।
‘ईश्वर हम पर दया करे, क्यों भाई क्या चल रहा है...कोई
परेशानी लगती है यहां तो।‘ कहते हुए पिता कुर्सी पर बैठे। मां ने
कहा, ‘परेशानी यह है कि मैंने एक किताब इसके लिए खरीदने का वादा किया
था और आज भूल गई।‘ पिता ने कहा, ‘ओह इतनी सी बात है बस...यह तो अभी ठीक
कर देते हैं.. इधर आओ बेटा, देखो तुम्हारे लिये मैं क्या कर सकता हूं।‘ और
उन्होंने एक पैकेट निकाला और उसे खोलने लगे। बच्चे का रोना एकदम बंद हो गया और उसके
आंसुओं में एक इंद्रधनुषी चमक कौंध गई। एक खूबसूरत पिक्चर बुक निकली, जिसे पिता
ने सुबह ही बच्चे का खुश चेहरा देखने के लिए एक दुकान पर देखकर खरीद लिया था।
किताब देखते ही बच्चा खुशी से उछल पड़ा और पापा से लिपट गया। ‘आप
कितने अच्छे पापा हैं, आई लव यू पापा।‘ मां चुपचाप कमरे से निकल गईं।
रात के खाने पर तीनों डाइनिंग टेबल पर बैठे थे। मां की आंखों
में आंसुओं के गहरे निशान थे। उस वक्त वो क्या सोच रही होगी, कोई भी मां समझ
सकती है। बच्चे से किया गया चाहे कितना भी छोटे से छोटा वादा हो, अगर नहीं निभाया
गया तो उसका गहर असर होता है।
चयन, अनुवाद एवं प्रस्तुति : प्रेमचंद गांधी, सभी पेंटिंग्स पाब्लो पिकासो की हैं।
मनः स्पर्शी कथानक का चोला पहने हुए बेतरीन कहानियाँ !
ReplyDeleteheart touching stories
ReplyDelete