Saturday 3 August, 2013

मैक्सिम गोर्की की कहानी : उसका प्रेमी

मुझे एक बार मेरी जान-पहचान वाले एक व्‍यक्ति ने यह घटना बताई थी।


उन दिनों में मास्को में पढ़ता था। मेरे पड़ोस में एक ऐसी महिला रहती थी, जिसकी प्रतिष्‍ठा को वहां सन्दिग्ध माना जाना था। वह पोलैंड की रहने वाली थी और उसका नाम टेरेसा था। मर्दों की तरह लम्बा कद, गठीला डील-डौल, काली घनी भौंहे, जानवरों जैसी चमकती काली आंखें, भारी आवाज, कोचवान जैसी चाल,  बेहद ताकतवर मांसपेशियां और मछुआरे की बीवी जैसा उसका रंग-ढंग, उसके व्यक्तित्व को मेरे लिए खौफनाक बनाते थे। मैं बिल्कुल ऊपर रहता था और उसकी बरसाती मेरे ठीक सामने थी। जब वह घर पर होती तो मैं कभी भी अपना दरवाजा खुला नहीं छोड़ता था। कभी-कभार हम सीढिय़ों पर या आँगन में मिलते और वह ऐसे चालाक सनकीपने से मुस्कुराती कि मैं अपनी मुस्‍कुराहट छुपा लेता। अक्सर वह मुझे नशे में धुत मिलती और उसकी आंखों में उनींदापन, बालों में अस्त-व्यस्तता दिखाई देती और ख़ास तौर पर वीभत्स ठहाके लगाती रहती। ऐसे में वह मुझसे जरुर बात करती।
'और कैसे हो मि. स्टूडेन्ट’ कहते ही उसकी वीभत्स हंसी उसके प्रति मेरी नफरत को और बढ़ा देती। मैंने उससे ऐसी खैफनाक मुलाकातें टालने के लिए कई बार यह कमरा छोडऩे का विचार किया, लेकिन मुझे अपना छोटा-सा आशियाना बहुत प्यारा लगता था। उसकी खिड़की से बाहर का दृश्य बहुत खूबसूरत लगता था और वहां काफी शांति थी, इसलिए मैंने इस कष्ट को सहन करना स्वीकार कर लिया।

और एक सुबह जब मैं अपने कमरे में बिस्तर पर लेटा क्लास से गैर-हाजिरी का बहाना तलाश कर रहा था, ठीक उसी समय दरवाजा खुला और टेरेसा की भारी आवाज ने मेरी चेतना को झकझोर दिया।

'तबीयत तो ठीक है मि. स्टूडेन्ट?
'क्या चाहिए आपको?’ मैंने पूछा और देखा कि उसके चेहरे पर कुछ असमंजस के भाव तैर गए हैं और साथ ही कुछ विनम्रता भी... मेरे लिए उसके चेहरे की यह मुद्रा बिल्‍कुल अजनबी-सी थी।    
'सर, मैं आपसे कुछ मदद मांगने आई हूं, निराश तो नहीं करेंगे?’ 
मैं चुपचाप पड़ा रहा और खुद से ही कहने लगा, 'हे दयानिधान  करुणानिधान  उठो!’ 
'मुझे घर पर एक चिट्ठी भेजनी है। बस इतना-सा निवेदन है।‘ उसने कहा। उसकी कोमल-कातर आवाज़ में जैसे जल्‍दी से यह काम कर देने की प्रार्थना थी। 
'रक्षा करना भगवान’, मैंने मन ही मन अपने ईश्‍वर से कहा और उठकर अपनी मेज तक आया। एक कागज उठाया और उससे कहा, 'इधर आकर बैठिए और बताइये क्या लिखना है?’ 
वह आई, बहुत ही सावधानी के साथ कुर्सी पर बैठी और मेरी तरफ अपराध-भाव से देखने लगी।
'अच्छा तो किसके नाम चिट्ठी लिखवाना चाहती हैं आप?’ 
'बोसेलाव काशपुत के नाम, कस्बा स्वीजियाना, बारसा रोड।‘ 
'ठीक है, जल्दी से बताइये क्या लिखना है?
'माई डियर बोल्स... मेरे प्रियतम...मेरे विश्वस्त प्रेमी। भगवान तुम्हारी रक्षा करे। हे सोने जैसे खरे दिल वाले, तुमने इतने दिनों से इस छोटी-सी दुखियारी बतख, टेरेसा को चिट्ठी क्‍यों नहीं लिखी?’ 
मेरी हंसी निकलते-निकलते रह गई। 'एक छोटी-सी दुखियारी बतख। पांच फुट से भी लम्बी, पत्थर की तरह सख्त और भारी चेहरा इतना काला कि बेचारी छोटी बतख जैसे जिन्दगी भर किसी चिमनी में रही हो और कभी नहाई ही नहीं हो। किसी तरह खुद की हंसी पर काबू पाकर मैंने पूछा, 'कौन है यह मि. बोलेस?’ 
‘बोल्‍स, मि. स्‍टूडेंट’, उसने इस तरह कहा मानो मैंने उसका नाम पुकारने में कोई बड़ी बेहूदगी कर दी हो।

'वह बोल्‍स है, मेरा नौजवान आदमी।‘ 
'नौजवान आदमी।‘ 
'आपको आश्चर्य क्यों हो रहा है? मैं, एक लड़की, क्या मेरा नौजवान आदमी नहीं हो सकता?

वह और एक लड़की? ठीक है।
'ओह, क्यों नहीं? इस दुनिया में सब कुछ संभव है और क्‍या यह नौजवान बहुत लंबे समय से आपका आदमी है?’ मैंने पूछा।
'छह साल से।‘ 
'ओह, हां, तो चलिए आपकी चिट्ठी लिखते हैं।‘ और मैंने चिट्ठी लिख दी।
लेकिन मैं आपको एक बात बिल्‍कुल साफ़ तौर पर बता दूं कि मैं चाहता तो इस पत्राचार में अगर जानबूझकर भी बहुत-सी चीज़ें बदल देता, बशर्ते यहां टेरेसा के अलावा कोई और चाहे जैसी भी लड़की होती।‘ 

'मैं तहेदिल से आपकी शुक्रगुजार हूं। उम्मीद करती हूं कि कभी मैं भी आपके काम आ सकूं।‘ टैरेसा ने बहुत सौजन्‍य और सद्भाव के साथ कहा। 
'नहीं इसकी कोई जरुरत नहीं, शुक्रिया।‘ 
'शायद आपकी कमीज़ और पतलूनों को मरम्मत की जरुरत हो, मैं कर दूंगी।‘ 
मुझे लगा कि इस हथिनी जैसी महिला ने मुझे शर्मसार कर दिया और मैंने विनम्रतापूर्वक उससे कहा कि मुझे उसकी सेवाओं की कोई जरुरत नहीं है। सुनकर वह चली गई।
एक या दो सप्‍ताह गुज़रे होंगे कि एक दिन शाम के वक्‍त मैं खिड़की पर बैठा सीटी बजा रहा था और खुद से ही कहीं बहुत दूर जाने की सोच रहा था। मैं बिल्‍कुल बोर हो गया था। मैसम बड़ा खराब था और मैं बाहर नहीं जाना चाहता था। मैं अपने बारे में आत्‍म-विश्‍लेषण और चिंतन की प्रक्रिया में डूबा हुआ था। हालांकि यह भी निहायत ही बकवास काम था, लेकिन मुझे इसके अलावा कुछ और करने की सूझ ही नहीं रही थी। उसी समय दरवाज़ा खुला। हे भगवान तेरा शुक्रिया। कोई भीतर आया। 
'हैलो मि. स्टूडेन्ट, कुछ खास काम तो नहीं कर रहे आप?’ 
यह टैरेसा थी, हुंह...।

'नहीं, क्या बात है?’ 
'मैं पूछ रही थी कि क्या आप मेरे लिए एक और चिट्ठी लिख देंगे?’ 
'अच्छा, मि. बोल्स को?
'नहीं, इस बार उनकी तरफ से।‘ 
'क्या... क्‍या मतलब?’ 
'ओह मैं भी बेवकूफ हूं। माफ करें, मेरी एक जान पहचान वाले हैं पुरुष मित्र। मेरी जैसी ही उनकी भी एक प्रेमिका है टेरेसा। क्या आप उस टेरेसा के लिए एक चिट्ठी लिख देंगे?’ 
मैंने देखा, वह तनाव में थी, उसकी अंगुलियां कांप रही थीं।... पहले तो मैं चकरा गया था, फिर मामला मेरी कुछ समझ में आया।
मैंने कहा, 'देखिए मोहतरमा, न तो कोई बोल्स है और न ही टेरेसा। आप अब तक मुझसे झूठ पर झूठ बोलती जा रही हैं। छल किए जा रही हैं। क्‍या आप मेरी जासूसी करने नहीं आ रही हैं? मुझे आपसे पहचान बढ़ाने में या आपकी जान-पहचान वालों में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है। समझीं आप?’ 
और अचानक वह बुरी तरह घबरा कर परेशान हो गई। वह कभी इस पांव पर तो कभी उस पांव पर खड़ी होकर अजीब ढंग से बड़बड़ाने लगी। लग रहा था जैसे वह कुछ कहना चाहती थी, लेकिन कह नहीं पा रही थी। मुझे लगा, मैंने उस पर सन्देह करके बहुत गलत किया है। यह तो शायद कोई और ही बात थी।

वह 'मि. स्टूडेन्ट’ कहकर अचानक अपना सिर हिलाती हुई पलटी और दरवाजे से बाहर निकल कर अपने कमरे में चली गई। मैं अपने कमरे में दिमाग में उमड़ रहे अप्रीतिकर भावों के साथ जड़वत रह गया। एक भयानक आवाज के साथ उसका दरवाजा बन्द होने की आवाज आई। मुझे काफी दुख हुआ और लगा कि मुझे उसके पास जाकर सारा मामला सुलझा लेना चाहिए। उसे जाकर बुलाना चाहिए और वो जो चाहती है, उसके लिए लिख देना चाहिए।
मैं उसके कमरे में गया। वह घुटनों पर झुकी हाथों में सिर पकड़े बैठी थी। 'सुनिये’

अब देखिए मैं जब भी अपनी कहानी के इस बिंदु पर आता हूं तो हमेशा मेरी बहुत अजीब हालत हो जाती है और मैं बहुत मूर्खतापूर्ण महसूस करने लगता हूं। ‘मेरी बात सुनेंगी आप?’ मैंने कहा।
वह उठी, आंखें चमकाती हुईं मुझ तक आई और मेरे कंधों पर हाथ टिकाते हुए अपनी खरखरी आवाज में फुसफुसाती हुई बोली, 'देखिये, बात यह है कि न तो सच में कोई बोल्स है और न ही टेरेसा। लेकिन इससे आपको क्या ? आपको तो एक कागज पर कुछ लिखने में ही तकलीफ होती है। कोई बोल्स नहीं और न ही टेरेसा, सिर्फ  मैं हूं। और आपके पास ये जो दोनों हैं, इनसे आप जो कुछ अच्‍छा चाहें, कर सकते हैं।‘ 
'माफ कीजिए।‘ मैंने कहा, 'यह सब क्या है? आप कहती हैं कोई बोल्स नहीं है?’ 
'हां।‘
'और कोई टेरेसा भी नहीं?’ 
'हां, कोई और टैरेसा नही, बस मैं ही टेरेसा हूं।‘ 
मैं कुछ भी नहीं समझ पाया। मैंने अपनी निगाहें उस पर टिका दीं और सोचने लगा कि दोनों में से पहले कौन आगे बढ़कर कोई हरकत करता है। लेकिन वही पहले मेज तक गई, कुछ तलाश किया और मेरे पास आकर शिकायती मुद्रा में उलाहने के साथ कहने लगी 'अगर आपको बोल्स के नाम चिट्ठी लिखने में तकलीफ हुई तो यह रहा आपका लिखा कागज। दूसरे लोग लिख देंगे मेरे लिए।‘

मैंने देखा उसके हाथ में बोल्‍स के नाम मेरे हाथों लिखा हुआ पत्र था। ओफ्फो...। 
'सुनिए मैडम, आखिर इस सबका क्या मतलब है? आप क्यों दूसरों के पास पत्र लिखवाने के लिए जायेंगी? यह तो पहले ही लिखा हुआ है और आपने इसे अभी तक भेजा भी नहीं?’ 
'कहां भेजती?’ 
'क्यों? मि. बोल्स को।‘ 
‘ऐसा कोई शख्स है ही नहीं।‘
मैं कुछ नहीं समझ पाया। फिर उसने बताना शुरू किया।
'बात यह है कि ऐसा कोई इंसान है ही नहीं।‘ और फिर उसने अपने हाथ कुछ इस तरह फैलाते हुए कहा, जैसे उसे खुद ही यकीन नहीं कि ऐसा कोई इन्‍सान है ही नहीं।  

‘लेकिन मैं चाहती हूं कि वो हो ।... क्या मैं औरों की तरह इंसान नहीं हूं? हां, हां, मैं अच्‍छी तरह जानती हूं कि वह नहीं है कहीं भी... लेकिन किसी को भी ऐसे शख्‍स को चिट्ठी लिखने में  क्या और क्‍यों तकलीफ होती है?’ 
'माफ कीजिए- किसे?’ 
'मि. बोल्स को और किसे?’ 
'लेकिन वह तो है ही नहीं- उसका कोई अस्तित्व नहीं।‘ 
'हे भगवान, क्या फर्क  पड़ता है अगर वह नहीं है। उसका कोई अस्तित्व नहीं, लेकिन हो तो सकता है। मैं उसे लिखती हूं और इससे लगता है कि वो है और टेरेसा, जो मैं हूं, उसे वह जवाब देता है और मैं फिर उसे लिखती हूं।‘ 
और आखिरकार मेरी कुछ समझ में आया। मेरे पास एक ऐसी इंसानी शख्सियत खड़ी थी, जिसे दुनिया में प्यार करने वाला कोई नहीं था और जिसने ख़ुद अपने लिए एक दोस्त ईजाद कर लिया था।
'देखिए, आपने बोल्स के नाम एक चिट्ठी लिखी। मैं इसे किसी के पास ले जाती और वह इसे पढ़कर सुनाता तो मुझे लगता कि बोल्स है। और मैंने आपसे टेरेसा के नाम पत्र लिखने के लिए कहा था, उसे लेकर मैं किसी के पास जाती और उसे सुनते हुए मुझे विश्वास हो जाता कि बोल्स जरुर है और जिन्दगी मेरे लिए थोड़ी सहज-सरल हो जाती।‘ 
‘हे ईश्‍वर, मुझे अपनी शरण में ले लो।‘ उसकी बातें सुनकर मैंने अपने आप से ही कहा।
उस दिन के बाद से मैं नियमित रुप से सप्‍ताह में दो बार उसके लिए चिट्ठियां लिखने लगा। बोल्स के नाम और बोल्स की तरफ से टेरेसा को। वह उन्हें सुनती और रोने लग जाती। काल्पनिक बोल्स के वास्तविक पत्रों से आंसुओं में डूब कर उसने मेरे कपड़ों की मरम्मत का जिम्मा ले लिया। लगभग तीन महीने के इस सिलसिले के बाद उन्होंने उसे जेल भेज दिया। अब तो वह निश्चित तौर पर मर चुकी होगी। 

इतना कहकर मेरे परिचित ने सिगरेट की राख़ झाड़ते हुए अपनी बात समाप्‍त करते हुए कहा।

बहरहाल, इंसान जितनी कड़वी चीजें चख लेता है, जीवन में उसे मीठी चीजें चखने के बाद उनकी उतनी ही भूख बढ़ती जाती है। और हम अपनी नियति में लिपटे हुए लोग इस बात को कभी नहीं समझ सकते।

और फिर तमाम चीजें बेहद मूर्खतापूर्ण और क्रूर नज़र आने लगती हैं। जिन्‍हें हम वंचित वर्ग कहते हैं, वे कौन हैं आखिर... मैं जानना चाहता हूं। वे हैं हमारे जैसे ही एक ही मांस, मज्‍जा और रक्‍त से बने लोग... यह बात हमें युगों से बताई जा रही है। और हम इसे सच में बस सुनते आए हैं... और सिर्फ शैतान ही जानता है कि यह कितना घिनौना सच है?... क्‍या हम मानवतावाद के प्रवचनों से पूरी तरह दूर भाग चले हैं?... लेकिन वास्‍तविकता में हम सब भी बेहद गिरे हुए और पतित लोग हैं। और जितना मैं समझ पाया हूं उसके अनुसार हम आत्‍मकेंद्रीयता और अपनी ही श्रेष्‍ठता के भावबोध के रसातल में पहुंच चुके हैं। लेकिन बहुत हो चुका यह सब... यह सब पर्वतों जितना ही पुराना है और इतना पुराना कि अब तो इसके बारे में बात करने पर भी शर्म महसूस होती है। बहुत-बहुत पुरानी बीमारी है यह सच में...


:: अनुवाद : प्रेमचन्‍द गांधी :: 

यह कहानी राजस्‍थान पत्रिका के 'परिवार' परिशिष्‍ट में बुधवार, 31 जुलाई, 2013 को प्रकाशित हुई है। 

पेंटिंग  रूसी चित्रकार पावेल फिलोनोव 1883-1941 की है। 

31 comments:

  1. रोचक और विचोत्तेजक कहानी ...सार्थक प्रस्तुति !

    ReplyDelete
  2. सुंदर कहानी और बेहतर अनुवाद ....

    ReplyDelete
  3. कहानी सुन्दर है और अनुवाद भी । मैंने किसी पत्रिका मैं इसी से मिलती जुलती भीष्म साहनी की दुलारी के प्रेमी भी पढी थी । वह भी काफी मार्मिक और प्भावशाली लगी ।

    ReplyDelete
  4. bahut hi khoobsoorat kahani hai aur ye dekh kar aur bhi khushi hui ki rajasthan patrika k pariwar parishisht ki kahaniyon ka level ab kuchh sudharne lagaa hai ..

    ReplyDelete
  5. प्यार में होना, शायद, इस दुनिया का सब से हसीन अहसास है. Ek Achhi प्यार की कहानी Likha Hai Aapne. Iske liye aapko mera dhanyawad.

    ReplyDelete
  6. It was terribly helpful on behalf of me. Keep sharing such ideas within the future similarly. This was truly what i used to be longing for, and that i am glad to came here! Thanks for sharing the such data with USA.

    ReplyDelete
  7. Great article, Thanks for your nice data, the content is quiet attention-grabbing. i'll be expecting your next post.

    ReplyDelete
  8. Hey, Nice blog. I am shared this post with my husband. He is working in car towing service company. It is amazing blog.Thanks for sharing.

    ReplyDelete
  9. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  10. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  11. Hi all,
    Hope you all are playing mini militia now also. If yes then here are some of the best mini militia cheats 2019 for you all to win the game.
    Hope you will use these cheats.
    Thanks.

    ReplyDelete
  12. Hello all, tnpsc group 4 hall ticket are now being released and this is the best place to download your admit card easily.
    So why waste time on other websites when you can download your hall ticket in just a single click.
    Do visit sarkariresultexams.com .
    Thanks.

    ReplyDelete
  13. Amazing! I am happy I read through this! I am right now utilizing AdSense and amazon offshoots, however, I discovered that I can do as such a great deal more! Much thanks to you for the greater part of your marvelous guidance Pi network price !

    ReplyDelete
  14. In conclusion, the article provides customersラブドール with details about the Auto-suck Vagina option offered by Zelex Doll.

    ReplyDelete
  15. What a fantastic blog post! I really enjoyed reading about the major functions of a business. It's fascinating how each aspect plays a vital role in the overall success. why no nda game todayThe way you explained everything is clear and insightful. Looking forward to more informative content from you

    ReplyDelete
  16. "Macsim Garki Ki Kahani Uska Premi" weaves a tale of emotions and relationships. This narrative explores the intricacies of love, evoking sentiments that resonate universally. Slow Streaming Speed Through Macsim and Garki's journey, the story delves into the complexities of affection, offering a compelling portrayal of human connections and the power of emotions.

    ReplyDelete