शुक्रवार की साहित्य वार्षिकी-2012 में ये दो नई कविताएं प्रकाशित हुई हैं। मेरे मित्र और पाठक जानते हैं कि इधर मेरी कविताओं का स्वर बहुत बदला है और ये कविताएं इसे बताती हैं। कुछ मित्रों ने इन कविताओं को पहले सुना भी है और शायद एकाध ने पढ़ा भी है। आज मैं अपने तमाम दोस्तों के नाम ये कविताएं इस उम्मीद के साथ प्रस्तुत कर रहा हूं कि शायद आप सबको इनसे कुछ कहने को मिले, जो मेरी काव्य यात्रा में सहायक हो।
वसंत भी चला गया
उन्होंने कहा
सबूत पेश करो
शरद, शिशिर, हेमंत और वर्षा भी नहीं रहे
कोई प्रतिलिपि नहीं चलेगी
सभी को चाहिए
मूल मृत्यु प्रमाणपत्र
जब उन्हें स्कूल में दाखिला नहीं दिया गया था
उनकी जाति के कारण
प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होने के बावजूद
उन्हें गांव भर में अपमानित किया गया
दूसरी मौत उन्हें शहर ले आई
शहर में उन्हें धीरे-धीरे मारा गया
सबसे पहले अच्छी कॉलोनी में
किराए के मकान से वंचित रखकर मारा गया
दफ्तर में पानी का अलग
मटका रखकर मारा गया
ज्यादा काम करने के बावजूद
औरों के हिस्से का काम लाद कर मारा गया
अदृश्य रंग में डूबे
रुपये रखकर मारा गया
उन्हें पदोन्नति में
नाकाबिल कहकर मारा गया
बच्चों की पढ़ाई
और मकान के लिए
उन्हें कर्जे के लिए अपात्र मानकर मारा गया
कचहरी में झूठी गवाहियों से मारा गया
घाघ वकीलों की जिरह में
उन्हें लांछनों से मारा गया
उनकी थोड़ी-सी शराब को
गांधीवाद और मद्यनिषेध के नाम पर
महंगी कर-करके उन्हें मारा गया
वे अपनी बमुश्किल सत्तर-साला जिंदगी में
दस हजार बार मरे
क्या करें हुजूर
इन मौतों का कोई प्रमाण नहीं
जिसका दस्तावेज है
यह मूल मृत्यु प्रमाणपत्र।
अंतिम कुछ भी नहीं
होता
झूठी और भ्रामक हैं
अंतिम की सारी अवधारणाएं
जैसे सृष्टि के अंत की घोषणाएं
व्यापार की नई कला है
बिक्री और छूट का आखिरी दिन
बचे हुए माल को बेचने का तरीका
आवेदन की अंतिम तिथि
गलाकाट प्रतियोगिता का पैंतरा
कमजोर को बाहर करने का हथियार अंतिम
अंतिम पायदान पर लोग तरसते
पानी की आखिरी बूंद पर कंपनियां काबिज
हर अंतिम सत्य को झुठलाती संसद
धकेलती अंत की ओर
समस्याओं का आखिरी समाधान
क्यों होता है सिर्फ व्हाइट हाउस के पास
दरिद्रता के अंतिम मुहाने पर खड़े
आदिवासियों के पास
कहां से आता है आखिरी हथियार
क्यों अपनी ही जनता को
गोलियों से भून देने का
बचा रह जाता है आखिरी उपाय
हमने मंगल तक जाकर देख लिया
सिर्फ मृतक जानते थे
हमारे पास तो सिर्फ इरादे हैं
इनमें से कोई अंतिम नहीं।
मृत्यु और प्रमाण
पत्र
एक
वो नहीं रहे
इसका सबूत क्या है
मैंने कहा
जैसे वे गएवसंत भी चला गया
उन्होंने कहा
सबूत पेश करो
शरद, शिशिर, हेमंत और वर्षा भी नहीं रहे
हमें सबका मृत्यु प्रमाणपत्र चाहिए।
दो
उन्हें चाहिए
हर जगह मूल मृत्यु प्रमाणपत्रकोई प्रतिलिपि नहीं चलेगी
बैंक, बीमा, पेंशन, पानी, बिजली, टेलीफोन
नगर पालिका, आवासन मण्डलसभी को चाहिए
मूल मृत्यु प्रमाणपत्र
मैं कहना चाहता हूं कि
पहली बार वे तब मरे थेजब उन्हें स्कूल में दाखिला नहीं दिया गया था
उनकी जाति के कारण
इस पहली मृत्यु के निशान
जीवन भर रहे उनकी आत्मा पर
दूसरी बार उनकी मौत तब हुई
जब सबसे अच्छे अंकों सेप्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होने के बावजूद
उन्हें गांव भर में अपमानित किया गया
दूसरी मौत उन्हें शहर ले आई
शहर में उन्हें धीरे-धीरे मारा गया
सबसे पहले अच्छी कॉलोनी में
किराए के मकान से वंचित रखकर मारा गया
दफ्तर में पानी का अलग
मटका रखकर मारा गया
ज्यादा काम करने के बावजूद
औरों के हिस्से का काम लाद कर मारा गया
उन्होंने धार्मिक जुलूस के लिए चंदा नहीं दिया तो
उनकी दराजों-अलमारियों में अदृश्य रंग में डूबे
रुपये रखकर मारा गया
उन्हें पदोन्नति में
नाकाबिल कहकर मारा गया
बच्चों की पढ़ाई
और मकान के लिए
उन्हें कर्जे के लिए अपात्र मानकर मारा गया
सेवानिवृति से ऐन पहले
उनके खिलाफ जांच बिठाकर मारा गयाकचहरी में झूठी गवाहियों से मारा गया
घाघ वकीलों की जिरह में
उन्हें लांछनों से मारा गया
आए दिन पल-पल की इस मौत से
सुकून दिलाने वालीउनकी थोड़ी-सी शराब को
गांधीवाद और मद्यनिषेध के नाम पर
महंगी कर-करके उन्हें मारा गया
वे अपनी बमुश्किल सत्तर-साला जिंदगी में
दस हजार बार मरे
क्या करें हुजूर
इन मौतों का कोई प्रमाण नहीं
यह उनकी आखिरी मौत थी प्राकृतिक
बस इसी का पंजीकरण हुआ हैजिसका दस्तावेज है
यह मूल मृत्यु प्रमाणपत्र।
कोई दिन नहीं अंतिम
न कोई पल अंतिमझूठी और भ्रामक हैं
अंतिम की सारी अवधारणाएं
जैसे सृष्टि के अंत की घोषणाएं
किसी के अंत या अंतिम होने की बात
लोभ और लालच की संस्कृति मेंव्यापार की नई कला है
बिक्री और छूट का आखिरी दिन
बचे हुए माल को बेचने का तरीका
आवेदन की अंतिम तिथि
गलाकाट प्रतियोगिता का पैंतरा
कमजोर को बाहर करने का हथियार अंतिम
अंतिम आदमी तमाम सूचियों से बाहर
अन्न के आखिरी दाने गोदामों में सड़तेअंतिम पायदान पर लोग तरसते
पानी की आखिरी बूंद पर कंपनियां काबिज
हर अंतिम सत्य को झुठलाती संसद
कौन देता है अंतिम रूप उन नीतियों को
जो पहले से त्रस्त लोगों कोधकेलती अंत की ओर
समस्याओं का आखिरी समाधान
क्यों होता है सिर्फ व्हाइट हाउस के पास
दरिद्रता के अंतिम मुहाने पर खड़े
आदिवासियों के पास
कहां से आता है आखिरी हथियार
क्यों अपनी ही जनता को
गोलियों से भून देने का
बचा रह जाता है आखिरी उपाय
कहीं नहीं कोई अंतिम सत्ता
इस अनंत सृष्टि मेंहमने मंगल तक जाकर देख लिया
अंतिम कुछ भी नहीं होता
आखिरी सांस के बारे मेंसिर्फ मृतक जानते थे
हमारे पास तो सिर्फ इरादे हैं
इनमें से कोई अंतिम नहीं।
आपकी कविता मृत्यु और प्रमाण पत्र ने मन को झकझौर कर रख दिया । गहरी अन्तर्दृष्टी और असीम संवेदना की वाहक आपकी इस रचना के लिए साधुवाद । आपके लिए मै इतना ही कहूंगा----
ReplyDelete'' आदिवासी के दर्द से , सिहर उठे अकुलाय ।
काव्य जगर मे वही तो , हरिराम कहलाय ।।
-- विजय सिंह मीणा (कवि एवम कथाकार)
उप निदेशक (राजभाषा ) नई दिल्ली ।
मोब 09968814674
मैंने भी वह अंक लिया है और आपकी रचनाएं देखी हैं,शुभकामनाएँ एवं बधाई !
ReplyDeletedusari wali jhankajor gayi
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