साहित्य और समाज में हर दौर में स्त्रियों की बदहाली को लेकर चिंतन-अनुचिंतन किया जाता रहा है। दुर्भाग्य से बहुत सारे लोग यह मानकर चलते हैं कि नारीवादी चिंतन पाश्चात्य दुनिया में पैदा हुआ और भारत में इसका अंधानुकरण किया जा रहा है। दरअसल स्त्री विमर्ष कोई नई परिघटना नहीं है और अगर भारतीय परंपरा में देखें तो ऋग्वेद से ‘सीमंतिनी उपदेश’ तक एक लंबी परंपरा है, जिसमें स्त्री की स्वाधीनता और पुरुष के समान अधिकारों की बात कही गई है। हिंदी की प्रसिद्ध कवयित्री अनामिका की पुस्तक ‘स्त्रीत्व का मानचित्र’ इस विषय की सबसे महत्वपूर्ण पुस्तक है, जिसमें भारतीय आर्ष साहित्य से लेकर सामाजिक आंदोलनों, विभिन्न भाषाई साहित्य और पाश्चात्य नारीवादी विमर्ष की बहुत गहरी पड़ताल की गई है। इसी प्रकार कात्यायनी ने ‘दुर्ग द्वार पर दस्तक’ में समकालीन स्त्री विमर्ष को एक रेडिकल नजरिये से देखा है और आज के समय में समूचे नारीवादी चिंतन को एक प्रतिबद्ध वामपंथी दृष्टिकोण से जांचने-परखने की कोषिष की है। देखा जाए तो साठ के दशक के नारीवादी आंदोलन के बाद स्त्रियों के बहुत से सवालों को भारतीय समाज में प्रतिबद्ध लेखिकाओं और सामाजिक-सांस्कृतिक कार्यकताओं ने विभिन्न नजरियों से देख परख कर विश्लेषित कर समग्रता में एक वृहद नारी-समानतावादी विमर्ष तैयार करने के प्रयास किये हैं, जिसने बहुत सी नई लेखिकाओं को तैयार किया और अपने समय और समाज को लैंगिक समानतावादी दृष्टि से रूपायित करने की जमीन तैयार की।
यद्यपि यह बात सही है कि बीसवीं शताब्दी में स्त्री को लेकर सबसे ज्यादा विमर्ष और चिंतन हुआ। लेकिन भारत ही नहीं दुनिया के अनेक देशों में नारी समानता को लेकर चिंतन उन्नीसवीं सदी में ही प्रारंभ हो गया था। कार्ल मार्क्स ने ‘पूंजी’ में सैंकड़ों जगह मजदूर स्त्रियों के साथ अन्याय से लेकर विभिन्न प्रकार के समतामूलक सवालों की चर्चा की है, यद्यपि मार्क्स का विश्लेष्ण लैंगिक आधार पर नहीं था और उन्होंने स्त्री की बात वर्गीय ढांचे के अंतर्गत ही की है, जिसे बहुत से लोग उस वक्त की एक सीमा मानते हैं। आज के महाशक्तिशाली देश अमेरिका में 1861 में तीस वर्षीया रेबेका हार्डिंग ने साहित्य के तत्कालीन घेरे से बाहर रहकर ‘लाइफ इन द आइरन मिल्स एण्ड अदर स्टोरीज’ जैसी किताब लिखी जो अमेरिका के इतिहास की पहली नारीवादी विमर्ष की प्रामाणिक पुस्तक मानी जाती है। इस किताब की खास बात यह कि अमेरिका में इससे पहले स्त्री विमर्ष की कोई लिखित रचना या किताब ही नहीं मिलती। लेकिन नारीवादी विमर्ष में हमारे सामने सीमोन द बोउवा, वर्जीनिया वुल्फ, कैथरीना मैन्सफील्ड, केट मिलेट, ज्यां राइस, एडिथ व्हार्टन, क्रिस्टीना स्टीड, जेन बाउल्स और क्रिस्टीन ब्रुक रोज जैसी लेखिकाएं प्रमुख तौर पर सामने आती हैं, जिन्होंने अपने लेखन से बीसवीं शताब्दी के सामाजिक चिंतन की धारा को ही बदल डाला। सीमोन द बोउवा की 1949 में प्रकाशित ‘द सैकण्ड सेक्स’ ने अपने समय में जो हलचल मचाई उसकी अनुगूंज आज भी सुनाई देती है। दुनिया की तमाम प्रमुख भाषाओं में अनूदित इस पुस्तक ने स्त्री विषयक चिंतन को वैज्ञानिक और तार्किक आधार दिया और नारी समानता की पुरजोर वकालत की। यह किताब बताती है कि किस प्रकार इतिहास में एक स्त्री को मनुष्य समझने के बजाय लैंगिक भेदभाव की दृष्टि से एक ‘इतर लिंग’ के रूप में देखा जाता रहा है और इसी आधार पर प्रताड़ित किया गया है।
वर्जीनिया वुल्फ की 1929 में प्रकाशित ‘ए रूम आफ वन्स ओन’ में इस बात की चर्चा की गई है कि क्या एक स्त्री लेखन में शेक्सपीयर के समान ही उत्कृष्ट रचना कर सकती है? वो इस किताब में दिखाती हैं कि तमाम किस्म की चीजों के बावजूद एक स्त्री पुरुष के समकक्ष सिर्फ इसलिए नहीं हो सकती, क्योंकि उसके लिए कुछ दरवाजे हमेषा बंद रहते हैं, जो उसे रोकते हैं। इसी प्रकार केट मिलेट की पुस्तक ‘सेक्सुअल पालिटिक्स’ में इस बात को रेखांकित किया गया है कि राजनीति में स्त्रियों को लैंगिक आधार पर खारिज किया जाता रहा है और पितृसत्तात्मक व्यवस्था के चलते यौन संबंध भी प्रभावित होते हैं, जिन्हें अनेक स्तरों पर देखा जा सकता है। मिलेट ने डी.एच.लारेंस जैसे महान लेखकों की रचनाओं में पितृसत्तात्मक व्यवस्था के लक्षणों को उजागर किया। 1970 में प्रकाशित मिलेट की इस कृति के बाद राजनीति में महिलाओं की भागीदारी की बात प्रमुखता से उठने लगी और आज के नारी आंदोलन की यह सबसे अहम मांगों में से एक है।
स्त्री समानता का लक्ष्य स्त्रियों को सत्ता में भागीदार बनाए बिना प्राप्त नहीं किया जा सकता और हजारों वर्षों से सताई हुई स्त्री की आवाज जिन किताबों में मुखरित हुई हैं, वे सदियों तक मानवजाति का मार्गदर्शन करती रहेंगी।
is gyanvardhak lekh ke liye apka dhanyvaad aur badhai mera maanna hai ki purush ki sakaratmak soch hi smaan adhikaron ki rah aasaan kar sakti hai jab koi purush naaree ke smaan adhikaron ki baat kare to aasha ki kiran ko koi nahi rok saktaa bahut bahut dhanyvaad
ReplyDeleteमहिला दिवस पर ही नहीं .....हमें .हमेशा ही अपने पर गर्व है ....अंतर राष्ट्रीय महिला दिवस की शुभ कामनाएं
ReplyDeleteIs lekh ke liye Aapko badhaee . Happy Women's Day .
ReplyDeletethanks for this wonderful piece! i proud of you !
ReplyDeleteThis is intersting & really good.
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