Sunday, 15 March 2009

साम्प्रदायिकता की छुपी हुई आग




"छुपी हुई आग" मंजुला पद्मनाभन का अदभुत एकांकी नाटक है। यह नाटक साम्प्रदायिक दंगों में मरने और मारने वाले लोगों की मानसिकता पर प्रहार करता है। इसका मैंने रूपांतर किया है। यह मूलतः हमारे कवि मित्र गिरिराज किराडू की द्विभाषी वेब पत्रिका ‘प्रतिलिपि.इन’ के लिए किया था। मैं इसे अपने दोस्तों और पाठकों के पढने के लिए अपने ब्लाग पर डाल रहा हूं। उम्मीद है यह छोटा सा मोनोलोग आपके दिलोदिमाग को भी मेरी तरह हिलाकर रख देगा।- प्रेमचन्द गांधी ।


(मंच पर अंधेरा है। लाल रंग के प्रकाश का एक वृत्त उभरता है और इसके नीचे खड़ा एक व्यक्ति दिखाई देता है, उसके बाल बिखरे हुए हैं। वह बोलना शुरू करने से पहले अपने चारों तरफ कई दफा देखता है। वह शांत है, लेकिन बहुत तना हुआ दिखाई दे रहा है।)
आदमी: हां...हां॥ मैं इसके बारे में बात कर सकता हूं। क्यों नहीं? मुझे इसमें कोई शर्म नहीं। और न ही मुझे किसी का कोई डर लग रहा है। चलिये मैं आपको बताता हूं कि पहले हफ्ते यह सब कैसे हुआ? मैं वहां शुरू से मौजूद था। हां... दस... मेरी गिनती के हिसाब से पूरे दस... मुझे यह बताने में कोई शर्म या संकोच नहीं। मैं आपको विस्तार से बता सकता हूं। आप जानते ही हैं, वे लोग इंसान तो कम से कम नहीं थे। तो वो दस या साढे दस थे, साढे दस इसलिए कि आप उस औरत की गिनती कैसे करेंगे जो गर्भवती हो? ऐसे हालात में हम एक गिनते हैं या डेढ या फिर पूरे दो? बहरहाल, इस मामले में दस लोग शामिल थे।


और यह सब बिना किसी चेतावनी के शुरू हुआ। मैं वहां अपनी दुकान में खड़ा था। एक पल के लिए मैंने अपनी भतीजी की सगाई के बारे में सोचा और अगले ही पल एक शोर सुनाई दिया। मेरी दुकान में खड़ी एक महिला ग्राहक ने पहले वो शोर सुना, फिर मुझे भी सुनाई दिया। वह बोली, ‘यह क्या हो रहा है’ और फिर मेरा ध्यान भी उस तरफ गया।हम दोनों एक साथ दुकान से बाहर निकले। हमने किसी को भागते हुए देखा, उसके पीछे सात या शायद आठ लोग दौड रहे थे। उनके हाथों में लाठियां थीं। सामने वाला एक आदमी मेरी तरफ ही चला आ रहा था। उसका मुंह खुला हुआ था, जिससे कोई आवाज नहीं आ रही थी। मैं जानता था मुझे इस वक्त क्या करना है।मैं उसके रास्ते के बीच खड़ा हो गया। वो मुझसे बचने के लिए मुड़ा, लेकिन मैंने उसे पकड़ लिया। पलक झपकते ही लड़कों ने उसे अपनी गिरफ्त में ले लिया। उन्होंने उस आदमी पर छलांग लगा दी, सीधे उस पर कूद पड़े और लगे उसे लात-घूंसों से मारने।लड़कों ने जब उसे मारना शुरू किया तो मुझे उसकी हड्डियों के टूटने-चटकने की आवाजें सुनाई पड़ीं। लाल रंग के ताजा जूस जैसा गरम खून उसकी नाक से बहने लगा। अपने आखिरी वक्त में उसने सीधे मेरी तरफ देखा, उसकी जिंदगी की गरमाहट से मेरा चेहरा झुलस उठा! और फिर... उसने दम तोड दिया।


इस आदमी जैसे दूसरे लोगों ने गलियों में बेतहाशा दौड़ना शुरू कर दिया। उनमें से कुछ औरतें थीं। आप चाहें तो इन्हें ‘लोग’ या ‘इंसान’ कह सकते हैं, लेकिन मैं तो बिल्कुल नहीं कहूंगा। सवाल ही नहीं उठता। यह बात आप नहीं समझ सकते। वे लोग आदमी यानी पुरुष की तरह दिखते हैं, औरत की तरह दिखते हैं। लेकिन असलियत में... खैर छोड़िए...आपको इस बात को समझना होगा। कुछ लोग, असल में ‘लोग’ यानी ‘इंसान’ नहीं होते। वो हमारे साथ ही गली मुहल्लों में रहते हैं, चलते हैं, लेकिन भीतर, कहीं बहुत गहरे अंदर वो लोग ‘इंसान’ नहीं होते...मैं और किस तरह आपको समझाउं? कुछ चीजें ऐसी होती हैं, जिन्हें आप सिर्फ जानते भर हैं। और जब आप एक बार जान जाते हैं तो फिर उससे अनजान नहीं रह सकते या कहें कि और ज्यादा जाने बिना नहीं रह सकते। यह एक तरह से लाल जलते हुए कोयले के जैसी बात है कि आपको सिर्फ एक बार बस इतना भर जानने की जरूरत होती है कि आप इससे जल सकते हैं और फिर इससे ज्यादा जानने की कोई खास जरूरत नहीं होती।आप उन्हें ‘लोग’ या ‘इंसान’ कहते हैं। मैं उन्हें लाल गर्म कोयले कहता हूं। एक आदिम अग्नि में जलते हुए कोयले, इंसान कतई नहीं। जब तक वो ठण्डे और अविचलित रहते हैं ठीक लगते हैं। लेकिन जैसे ही उनसे धुंआ उठने लगता है, या वे अपनी आदिम अग्नि दिखाने की कोशिश करते हैं, तब... ओफ्फो तब... इससे पहले कि वो आग हमें जला डाले, हमें उस आग को किसी भी तरह से शांत करने की कोशिश करनी पड़ती है। आखिर इन कोयलों को किसने जीवन दिया? क्या वो खुद ही जल उठे या हमीं ने जलाया? किसने गलियों के साथ उनको भी आग के हवाले किया? खुद उन्होंने या हमने? साफ कहूं तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। और आप तो जानते ही हैं, आग को शांत करने का सबसे बढ़िया तरीका यही है कि उसे बुझा दिया जाए, शांत कर दिया जाए।


यहां, वहां और हर तरफ, इस या उस तरीके से हमारे शहर को यह आग आतंकित करती रहती है और और देश को बर्बादी की राह पर ले जाती रहती हैं। इस किस्म की कोई आग बहुत ज्यादा भयानक होती है, कुछ सिर्फ धुआं देने वाली होती हैं। लेकिन हर आग अपने आप जलने वाली, भीतर ही भीतर बराबर सुलगती रहने वाली और बहुत अजीब किस्म की होती हैं।जब आपकी जिंदगी खतरे में होती है तो आप हर कीमत पर उसे बचाने की कोशिश करते हैं, करते हैं ना? जब आपका देश खतरे में होता है तो आप उसे हर तरीके से बचाने का प्रयास करते हैं, करते हैं ना? हमने भी बिल्कुल यही किया। हमने न केवल अपने आपको और देश को बचाया, बल्कि आग को देखते ही हमने उसे रोकने और आगे ना बढने देने के प्रयास किए।ठीक यही बात मुझे आपके चेहरे के भावों में दिखाई देती है। आपको लग सकता है कि मैं गलत हूं। लेकिन मैं आपको सच्चाई बताता हूं कि मैं बिल्कुंल भी गलत नहीं हूं। मैंने जो किया वो सही था। मैं यही कर सकता था। विशवास कीजिए, अगर आग की कोई तेज लपट आपकी तरफ आ रही होती तो आप भी यही करते। आपके पास उस आग से बचने का एकमात्र यही तरीका होता।पहला दिन खत्म होने पर हमने खबरों में सुना कि दो सौ मारे गये। अगले दिन की शाम हमने सुना कि तीन सौ मारे गये। महीने के आखिर में पता चला कि दो हजार मारे गये और छह महीने बाद समाचार मिला कि दस हजार लोग मारे जा चुके हैं।परायेपन की आग... एक भयावह किस्म का कोडा है... लेकिन इस सबसे बच निकलने का एक अत्यंत साधारण सा नियम है कि आप जब कहीं भी इस किस्म की आग देखें तो उसे तुरंत दबा दें। उस दिन यानी पहले दिन मैंने गिने कि कुल दस लोग मैंने मारे। लेकिन उस दिन के बाद मैंने गिनती करना ही बंद कर दिया। मुझे नहीं पता मैंने कितने लोग मारे। यह एक रूटीन सा बन गया था। इसमें कुछ भी तो खास नहीं था, यह सब उतना ही सामान्य था, जैसे कीडे-मकोडों को मारने के लिए पेस्ट कंट्रोल करते हैं या आग बुझाने के उपाय करते हैं।


आपको परेशान होने की कोई जरूरत नहीं। कुछ लोग जैसे आप यह जानना चाहेंगे कि यह सब कैसे हुआ? लेकिन सच बात तो यह है कि मैं हूं या कोई और, आखिरकार किसी न किसी की हत्या तो करते ही हैं। बहुत सारे लोगों की। मैं आपको बिल्कुल साफ बता देना चाहता हूं कि मैंने किसी को नहीं मारा, यहां तक कि किसी ने भी किसी को नहीं मारा। हमने सिर्फ आग देखी और उसे आगे बढने देने से रोकने की kओशिश की।देखा जाए तो यह एक बहुत ही बढिया नजरिया है चीजों को देखने का। पहले जब मैं एक सामान्य सा दुकानदार था, दुकान के बारे में ही सोचता था और अपने धंधे के अलावा कुछ नहीं सोचता और समझता था, मैं नहीं सोचता था कि जिंदगी इतनी सादा और सहज होती है। इन बरसों में मैंने यही समझा कि जिंदगी में बहुत सारे कायदे, कानून और नियम आदि होते हैं। मैंने वही किया जो मुझे बताया गया। लेकिन अब जाकर मैं यह समझा हूं कि इस दुनिया में एक ही नियम है कि जब और जहां कहीं आप आग देखें तो उसे तुरंत बुझाने या रोकने की कोशिश करें।किसी की मदद या पुलिस की सहायता की उम्मीद ना करें। जब और जहां कहीं भी आग देखें तो उसे तुरंत बुझाने या रोकने की कोशिश करें।और मेरा यकीन कीजिए कि आपके चारों तरफ अनेक किस्म की आग पहले से ही मौजूद है। इनमें से आप सब किस्म की आगों को नहीं देख सकते। इनमें से कुछ तो बहुत छुपी हुई होती हैं। यहां तक कि जिन लोगों के भीतर ये जलती रहती हैं, उन्हें भी इनका पता पहीं होता। इन्हें देखने के लिए एक खास किस्म की दृष्टि की जरूरत होती है। मसलन मेरी आंखें...लेकिन मैं तो शुरू से ही इन लोगों पर शक करना शुरू कर देता हूं।अगर एक बार मैंने सब लोगों को ठीक से देख लिया है तो मैं अच्छी तरह जान जाता हूं कि वो लोग वास्तव में कौन हैं और कहां से आए हैं। जल्द ही मुझे समझ आ जाता है कि हर आदमी ने वैसे ही कपडे पहन रखे हैं, सबके चेहरों पर एक ही किस्म के निशानात हैं, सबने एक जैसी ही टाई पहन रखी है, एक जैसे ही चश्में हैं... कभी कभार संदेह होता है कि वो उन सबमें से एक है या हम में से ही कोई एक?मैं सोचता हूं कि अगर आपके भाव से मुझे नहीं लगता, या आपके पहने हुए कपडों से नहीं महसूस होता, या आपके जेवरात से भान नहीं होता, या आपकी चूडियों से नहीं लगता या कि आपके ब्लाउज से पता नहीं चलता कि आप हम में से हैं तो बहुत संभावना है कि मैं तुरंत अनुमान लगा लूं कि आप उन में से ही एक होंगे। मेरे तो सोचने का बस अब यही तरीका हो गया है।


जानवरों में भी लगभग ऐसा ही होता है। शेर होते हैं, हिरण होते हैं, लेकिन क्या आपने कभी किसी को यह कहते सुना है कि शेर भी वैसे ही होते हैं, जैसे हिरण होते हैं या कि हिरण भी शेरोन जैसे ही होते हैं। नही ना, बिल्कुल नहीं। वास्तव में हम कहते हैं कि वे सब एक दूसरे से बिल्कुल अलग और जुदा होते हैं।ऐसा ही हमारे में यानी मनुष्यों में होता है। हम में कुछ शेर होते हैं तो कुछ हिरण होते हैं। तो यह बिल्कुल साफ हो जाता है, सीधी सी बात है शेर के लिए हिरण को खाना सामान्य बात है और हिरण का शेर का शिकार होने से बचकर भागना भी सहज है। आखिरकार कोई भी किसी के द्वारा क्यों खाया जाना पसंद करेगा? जबकि यह होना ही है, मैं इसे क्या कहूं? उनकी नियति यही है, हिरण को शिकार होना ही है।यह जंगल का कानून है। और जब जंगल का यह कानून टूटता है तो भयंकर गड़बड़ी होती है। और कोई भी इस तरह की अव्यवस्था पसंद नहीं करता। यहां तक कि हिरण भी ऐसा नहीं चाहेंगे और मुझसे पूछेंगे तो मैं भी नहीं चाहता कि अव्यवस्था फैले। इसीलिए तो मैं आपसे बात कर रहा हूं, क्योंकि मैं आपकी मदद करना चाहता हूं ताकि अव्यवस्था फैलने से रोकी जा सके। बस इतनी सी बात है।मुझे पूरा विश्वास है कि आप भी अव्यवस्था पसंद नहीं करते। आप भी सहज रूप से अपनी जिंदगी जीना चाहते हैं। सही कह रहा हूं ना? क्यों? मैं भी यही चाहता हूं। मुझे यकीन है कि आप मेरी बात समझ रहे हैं। मैं सही कह रहा हूं ना? आप मेरी बात समझेंगे, इसीलिए तो मैं आपके पास आया हूं। इसीलिए तो मैं आज यहां खड़ा हूं।


मैं आपका थोड़ा सा वक्त चाहता हूं और...प्लीज, रुकिये, जाइयेगा नहीं, प्लीज थोड़ा रुकिए। प्लीज...कल तक यह बिल्कुल साफ था, जैसा कि मैं आपको बता चुका हूं, सब कुछ सहज था। जगंल का एक कानून था और मैं उसमें शेर था। कल तक, जब वे मेरे घर आए... नहीं प्लीज रूकिये, जाइयेगा नहीं, मेरी बात गौर से सुनिए।उन्होंने मुझसे कोई सवाल तक नहीं किया और बस मुझे बुरी तरह पीटना शुरू कर दिया। फिर उन्होंने मुझे उठाकर मेरे घर से बाहर फेंक दिया और मेरी बीवी को जिंदा जला डाला। वो अभी चालीस की भी नहीं हुई थी। वो मेरी बहनों और बेटियों को भी उठा ले गये। उन्होंने मेरी आंखों के सामने मेरे बेटे को गला दबाकर मार डाला और उसके मुंह में पेशाब कर दिया।मैं चीखा। मैं चिल्लाया। मैंने कहा कि मैं भी तुम्हारे जैसा ही इंसान हूं, तुम्हीं में से एक हूं। उन्होंने इतना भर कहा कि छुपी हुई आग, तुम्हारे भीतर छुपी हुई आग है और अब हमने इसे ठण्डा कर दिया है।मैंने कहा, नहीं, नहीं, तुम गलत कह रहे हो, मेरे भीतर कोई छुपी हुई आग नहीं है। मेरे पास ऐसी कोई चीज नहीं है जो तुम्हारे पास नहीं है। लेकिन वो तो बहरे हो गये थे, अंधे हो गये थे, मेरी बात सुनने और मेरी तरफ देखने का किसी को खयाल ही नहीं रहा। उन्होंने कहा, छुपी हुई आग, हमने अब ठण्डी कर दी है।‘बताओ मुझे’, मैंने उनसे लगभग भीख मांगते हुए पूछा, मुझे कोई एक निशाँ तो बताओ कि मैं तुमसे कैसे और कहां अलग हूं? लेकिन उन्होंने तो बस इतना ही कहा, तुम्हें पता है, हमें कोई कारण बताने की जरूरत नहीं हैं। यही तो जंगल का कानून है। और तुम भी तो इसी में विशवास करते हो, करते हो ना? जैसे हम करते हैं। तुम कहते हो कि तुम एक शेर हो, लेकिन हमें किसी ने बताया कि तीन पीढी पहले, तुम्हारी पड़दादी एक हिरण थी, इसलिए तुम एक हिरण हो। और यही तुम्हारे भीतर छुपी हुई आग है, जिसे हमने अब ठण्डा कर दिया है। फिर उन्होंने मुझे बताया कि वे मेरे प्रति थोड़ी दया और करुणा दिखा सकते हैं और मेरी जिंदगी बख्श सकते हैं। उन्होंने मुझसे कहीं दूर भाग जाने और वापस लौटकर नहीं आने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि मैं अपनी दुकान, अपने घर और अपनी संपत्ति को बिल्कुल भूल जाउं। उन्होंने कुल मिलाकर बस इतना ही कहा।


आपको नहीं लगता कि यह सरासर अन्याय है। नहीं लगता? हैं? नहीं, प्लीज! आप मुंह मोड़कर क्यों जा रहे हैं? आप समझ क्यों नहीं रहे? कहीं ना कहीं कोई गलती हुई है... क्या ऐसा नहीं लगता? आप सुन क्यों नहीं रहे? उनके पास मुझे पीटने का कोई कारण नहीं था। मेरे भीतर कोई छुपी हुई आग नहीं थी। अगर वो मुझे पीट सकते हैं तो आपको भी पीट सकते हैं, नहीं...नहीं कृपया सुनिए तो। आपको मेरी बात सुननी चाहिए...मेरी बात आपको सुननी पड़ेगी। मैं आपके भले के लिए ही कह रहा हूं...मेरा इश्वास कीजिए! अगर यह मेरे साथ हो सकता है तो आपके साथ भी हो सकता है...( रोशनी कम होने लगती है) प्लीज मेरी बात सुनिए, प्लीज। आपके भले की ही बात है, मेरे बारे में बिल्कुल भी मत सोचिए। और यूं मुह चुराकर भागिए भी मत। यूं हंसिए नहीं और इस तरह सिर भी मत हिलाइये। मेरी बात सुनिए, प्लीज, सुनिए तो सही... ( रोशनी और आवाजें धीरे धीरे कम होने लगती हैं और आखिर में लाल रोशनी का एक नुकीला टुकड़ा उसके सीने पर आकर ठहर जाता है।) मैं आपको फिर से पीछे लिए चलता हूं, जैसा कि मैंने पहले कहा था। मुझे लगता है कि मैं गलत था, अंधा हो गया था, मैं असहिष्णु हो गया था। लेकिन यह सब इसलिए हुआ कि मैं समझता नहीं था। इसीलिए मैं आपसे गुजारिश कर रहा हूं कि मेरी बात सुनिए। यह तो आपके ही हित की बात है, नहीं, सुनिए यूं मुंह मोड़कर भागिए मत...प्लीज...सुनिए॥सुनिए तो सही...प्लीज... (थोड़ा सा प्रकाश भी समाप्त हो जाता है।)

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