उस दुनिया की कल्पना करना कितना भयावह है, जिसे किताबों के बिना जीना पडता है। लेकिन सच्चाई यही है, आज भी विश्व की करीब पचास फीसद जनता पुस्तकविहीन अंधकारमय जीवन जीने के लिए विवश है। लेकिन यह भी इतना ही बडा सच है कि ऐसे अज्ञान और अंधकार भरे समाज के लिए किताब पहुंचाने की कोशिशें भी वैश्विक स्तर पर जारी हैं। देश में चल रहे ‘सर्वशिक्षा अभियान’ जैसे प्रयास दुनिया के तमाम निर्धन देशों में चल रहे हैं। हालांकि ऐसा मानने वाले लोगों की भी कमी नहीं है कि बिना किताबों के भी ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है और यह एक हद तक सच भी है। हमारे पुरखों ने ज्ञान के नाम पर अपने समय में जो कुछ प्राप्त किया वह जीवनानुभवों का ही सार है, जिसके बिना किताब भी संभव नहीं होती, क्योंकि किताब भी आखिरकार एक व्यक्ति के अनुभूत ज्ञान और संचित जीवनानुभवों का ही तो समुच्चय है।
इस दुनिया को आज हम जिस रूप में देख रहे हैं, उसके पीछे किताबों की बहुत बडी भूमिका है। दुनिया के तमाम धर्मों में एक या अधिक किताबों की जरूरत हमेशा से रही है, जिनसे उनके अनुयायियों को धर्म की राह पर चलने के लिए एक रास्ता मिलता है। आज भी लोगों के लिए किताब अगर एक पवित्र किस्म की चीज है तो वह इसीलिए कि प्रारंभ में किताब का अर्थ धार्मिक किताब ही होता था, जिसके पैर से छू जाने या गिर जाने से अनर्थ की आशंका होती थी और धर्म का अपमान लगता था। मजहबी किताबें दुनिया में सबसे ज्यादा बिकने वाली किताबें हैं और शायद हमेशा रहेंगी। वजह यह कि पढना आये या ना आये अपने धर्म की किताब हर व्यक्ति घर में जरूर रखना चाहता है। सुख-दुख के अवसरों पर इनकी महत्ता रहती है, घर को ये एक किस्म की पवित्रता प्रदान करती हैं। व्यक्ति को ऐसी किताबों के अध्ययन और श्रवण से आत्मिक संतोष मिलता है। इसीलिए सभी धर्मों में आप देखेंगे कि धार्मिक किताबों के समय-समय पर पाठ आयोजित करने की परंपरा है, फिर वह चाहे गुरूग्रंथ साहिब का पाठ हो या रामायण का, कुरानख्वानी हो या बाइबिल का पाठ।
धार्मिक किताबों का महत्व इस मायने में स्वीकार किया जाना चाहिए कि इन्हीं की वजह से शिक्षा का प्रसार भी हुआ। आज भी बहुत से लोग अगर लडकियों को पढने स्कूल भेजते हैं तो यही समझकर कि चलो कम से कम वह कुरान, रामायण या गुरूग्रंथ साहिब का पाठ तो कर लेगी और अपने बच्चों को ठीक-ठाक संस्कार दे सकेगी। लेकिन किताबों की दुनिया का यह एक बहुत बडा सच है कि यह एक प्रकार से मनुष्य में संक्रामक रोग भी पैदा करती है, अर्थात जिसे पढना आ गया वह एक के बाद दूसरी किताब पढने की ओर आगे बढता है। और पढने की इस चाहत ने ही किताबों की दुनिया को परवान चढाया है। जिन लडकियों को धार्मिक किताबें पढने के लिए पाठशाला भेजा गया, वे आगे चलकर दूसरी किताबें पढकर खुद लेखिकाएं बन गईं, ऐसे हमारे समाज में सैंकडों उदाहरण हैं।
आज के तेजी से बदलते संचार क्रांति के युग में बहुत से लोग कहते हैं कि अब किताबें अप्रासंगिक हो जाएंगी, वजह यह कि किताबों की जगह लेने के लिए बाजार में बहुत सी चीजें आ गई हैं और किताबों का स्वरूप भी बदल गया है। सीडी, डीवीडी, ई-बुक, और इसी किस्म की बहुत सी ईजादों ने किताब का स्थान लेने की कोशि की है, लेकिन पश्चिम के अघाये हुए समाज की मानें तो आज भी पन्ने पलटकर, कहीं भी बैठकर, लेटकर, यात्रा करते हुए यानी किसी भी तरह किताब पढने से बेहतर कुछ नहीं है। आधुनिक संसाधनों ने जो सबसे बडा काम किया वो यह कि किताबों की उम्र और पढने का दायरा बढा दिया। आज दुनिया के लाखों पुस्तकालय डिजिटलाइज्ड हो रहे हैं, आनलाइन हो रहे हैं, हजारों की तादाद में ऐसी वेबसाइटें मौजूद हैं जिन पर दुनिया भर की असंख्य किताबों के बारे में जानकारी ही हासिल नहीं की जा सकती, बल्कि डाउनलोड कर किताबें पढी भी जा सकती हैं। अभी तक अप्राप्य और दुर्लभ समझी जाने वाली असंख्य किताबें आज इंटरनेट की दुनिया में या तो उपलब्ध हैं या ऐसा करने के प्रयास वैश्विक स्तर पर चल रहे हैं। इस तरह संचार क्रांति किताबों की दुनिया के लिए वरदान सिद्ध हो रही है।
दुनिया बदल रही है और इस बदलती हुई दुनिया की यह एक बहुत बडी सच्चाई है कि दुनिया में आज मौजूद अनेक समस्याएं अज्ञान और अशिक्षा के कारण हैं। फिर वो चाहे आतंकवाद हो या मजहबी कटटरता के कारण पनपने वाला सांप्रदायिक विद्वेष, इन सबकी जड में अशिक्षा और अज्ञान ही है। किताबों की दुनिया ही हमारे समाज को बताती है कि सब धर्म एक परमात्मा तक पहुंचने के अलग-अलग रास्तों के सिवा कुछ नहीं हैं, मनुष्य का एकमात्र धर्म है मानवता की सेवा और सब धर्मों का मूल मकसद है इस धरती को सुंदर बनाना, मानव मात्र को सुखी बनाना। प्रत्येक धर्म की किताब यही सिखाती है, लेकिन कुछ लोग हैं जो उनका अलग अर्थ निकालकर लोगों को एक दूसरे खिलाफ भडकाते हैं और व्यर्थ में खून बहाते हैं। इस प्रक्रिया में ना जाने कितनी सभ्यताएं नष्ट हो चुकी हैं और नष्ट होंगी, फिर किताबें ही बताएंगी कि क्यों वे सभ्यताएं नष्ट हुईं।
इस दुनिया को आज हम जिस रूप में देख रहे हैं, उसके पीछे किताबों की बहुत बडी भूमिका है। दुनिया के तमाम धर्मों में एक या अधिक किताबों की जरूरत हमेशा से रही है, जिनसे उनके अनुयायियों को धर्म की राह पर चलने के लिए एक रास्ता मिलता है। आज भी लोगों के लिए किताब अगर एक पवित्र किस्म की चीज है तो वह इसीलिए कि प्रारंभ में किताब का अर्थ धार्मिक किताब ही होता था, जिसके पैर से छू जाने या गिर जाने से अनर्थ की आशंका होती थी और धर्म का अपमान लगता था। मजहबी किताबें दुनिया में सबसे ज्यादा बिकने वाली किताबें हैं और शायद हमेशा रहेंगी। वजह यह कि पढना आये या ना आये अपने धर्म की किताब हर व्यक्ति घर में जरूर रखना चाहता है। सुख-दुख के अवसरों पर इनकी महत्ता रहती है, घर को ये एक किस्म की पवित्रता प्रदान करती हैं। व्यक्ति को ऐसी किताबों के अध्ययन और श्रवण से आत्मिक संतोष मिलता है। इसीलिए सभी धर्मों में आप देखेंगे कि धार्मिक किताबों के समय-समय पर पाठ आयोजित करने की परंपरा है, फिर वह चाहे गुरूग्रंथ साहिब का पाठ हो या रामायण का, कुरानख्वानी हो या बाइबिल का पाठ।
धार्मिक किताबों का महत्व इस मायने में स्वीकार किया जाना चाहिए कि इन्हीं की वजह से शिक्षा का प्रसार भी हुआ। आज भी बहुत से लोग अगर लडकियों को पढने स्कूल भेजते हैं तो यही समझकर कि चलो कम से कम वह कुरान, रामायण या गुरूग्रंथ साहिब का पाठ तो कर लेगी और अपने बच्चों को ठीक-ठाक संस्कार दे सकेगी। लेकिन किताबों की दुनिया का यह एक बहुत बडा सच है कि यह एक प्रकार से मनुष्य में संक्रामक रोग भी पैदा करती है, अर्थात जिसे पढना आ गया वह एक के बाद दूसरी किताब पढने की ओर आगे बढता है। और पढने की इस चाहत ने ही किताबों की दुनिया को परवान चढाया है। जिन लडकियों को धार्मिक किताबें पढने के लिए पाठशाला भेजा गया, वे आगे चलकर दूसरी किताबें पढकर खुद लेखिकाएं बन गईं, ऐसे हमारे समाज में सैंकडों उदाहरण हैं।
आज के तेजी से बदलते संचार क्रांति के युग में बहुत से लोग कहते हैं कि अब किताबें अप्रासंगिक हो जाएंगी, वजह यह कि किताबों की जगह लेने के लिए बाजार में बहुत सी चीजें आ गई हैं और किताबों का स्वरूप भी बदल गया है। सीडी, डीवीडी, ई-बुक, और इसी किस्म की बहुत सी ईजादों ने किताब का स्थान लेने की कोशि की है, लेकिन पश्चिम के अघाये हुए समाज की मानें तो आज भी पन्ने पलटकर, कहीं भी बैठकर, लेटकर, यात्रा करते हुए यानी किसी भी तरह किताब पढने से बेहतर कुछ नहीं है। आधुनिक संसाधनों ने जो सबसे बडा काम किया वो यह कि किताबों की उम्र और पढने का दायरा बढा दिया। आज दुनिया के लाखों पुस्तकालय डिजिटलाइज्ड हो रहे हैं, आनलाइन हो रहे हैं, हजारों की तादाद में ऐसी वेबसाइटें मौजूद हैं जिन पर दुनिया भर की असंख्य किताबों के बारे में जानकारी ही हासिल नहीं की जा सकती, बल्कि डाउनलोड कर किताबें पढी भी जा सकती हैं। अभी तक अप्राप्य और दुर्लभ समझी जाने वाली असंख्य किताबें आज इंटरनेट की दुनिया में या तो उपलब्ध हैं या ऐसा करने के प्रयास वैश्विक स्तर पर चल रहे हैं। इस तरह संचार क्रांति किताबों की दुनिया के लिए वरदान सिद्ध हो रही है।
दुनिया बदल रही है और इस बदलती हुई दुनिया की यह एक बहुत बडी सच्चाई है कि दुनिया में आज मौजूद अनेक समस्याएं अज्ञान और अशिक्षा के कारण हैं। फिर वो चाहे आतंकवाद हो या मजहबी कटटरता के कारण पनपने वाला सांप्रदायिक विद्वेष, इन सबकी जड में अशिक्षा और अज्ञान ही है। किताबों की दुनिया ही हमारे समाज को बताती है कि सब धर्म एक परमात्मा तक पहुंचने के अलग-अलग रास्तों के सिवा कुछ नहीं हैं, मनुष्य का एकमात्र धर्म है मानवता की सेवा और सब धर्मों का मूल मकसद है इस धरती को सुंदर बनाना, मानव मात्र को सुखी बनाना। प्रत्येक धर्म की किताब यही सिखाती है, लेकिन कुछ लोग हैं जो उनका अलग अर्थ निकालकर लोगों को एक दूसरे खिलाफ भडकाते हैं और व्यर्थ में खून बहाते हैं। इस प्रक्रिया में ना जाने कितनी सभ्यताएं नष्ट हो चुकी हैं और नष्ट होंगी, फिर किताबें ही बताएंगी कि क्यों वे सभ्यताएं नष्ट हुईं।
एक फ्रांसिसी दार्शनिक ने म्रत्यु शैया पर कहा था, ‘जो कुछ हम जानते हैं वह बहुत थोडा है, जो नहीं जानते वह बहुत अधिक है।‘ किताबों की दुनिया हमारे लिए उस अजाने संसार के दरवाजे खोलती है, जिसे हम एक जीवन में प्राप्त नहीं कर सकते। प्रत्येक विद्धान, मनीषी यही कहता है कि मैं तो एक विद्यार्थी मात्र हूं। किताबें ही यह विनम्रता का बोध पैदा करती हैं और मनुष्य को महामानव बनाती हैं। मनुष्य जीवन में किताबों का महत्व सदा से किसी ना किसी रूप में मौजूद रहा है और धरती के नष्ट होने तक रहेगा। इस दुनिया में किताब की ताकत का अंदाज आप इसी से लगा सकते हैं कि बहुत से आततायी और हिंसक लोगों ने सिर्फ डर की वजह से न केवल किताबें, बल्कि पूरी की पूरी लाइब्रेरियां जला डालीं।
(विश्व पुस्तक दिवस २१ अप्रेलको जयपुर 'डेली न्यूज़' में आलेख.)
सही कहा आपने पुस्तकें तो आदमी की सच्ची साथी और मार्ग दर्शक भी होती हैं 1 आने वाली पीढियों के लिये अतीत का आईना होती हैं पुस्तके इन की अहमियत को कुछ शब्दों मे नही बाँधा जा सकता आभार्
ReplyDeleteसत्य वचन......अच्छा कहन
ReplyDeleteआप ने बहुत सही लिखा है। यह आलेख समाचार पत्र के लिए ठीक है। समाचार पत्र या पत्रिका में पाठक के साथ संवाद की स्थिति न्यूनतम या बिलकुल नहीं होती। जब कि ब्लॉगरी में पाठक से संवाद महत्वपूर्ण है। इस कारण इसे तदनुरूप होना चाहिए। ऐसा, जैसे आप सीधे पाठक से बात कर रहे हों। एक शब्द में उसे उपनिषद् कहा जा सकता है। ऐसा करने के लिए आलेख के रूप में परिवर्तन आवश्यक है। मैं चाहता हूँ कि आप का आप के पाठकों के साथ संवाद स्थापित हो।
ReplyDeletebadhiya lekh!
ReplyDeleteपुस्तकें मनुष्य की सच्ची साथी है. मनुष्य के वैयक्तिक चिंतन एवं उसके जीवन के अनुभवों के सार को शब्दों के माध्यम से दूसरों को अवगत कराने का यह सस्ता साधन रहा है जिसे सामने वाला अपनी सुविधानुसार पड़ कर उसका रसास्वादन कर सके. विज्ञानं एवं संचार क्रांति ने दुर्लभ ज्ञान को सबके लिए सुलभ तो बना दिया है परन्तु आवश्यकता है लोगों की ज्ञान पिपासा जाग्रत करने की ताकि इस संसार से अज्ञान दूर हो एवं सभी सभ्य तथा सुसंस्कृत होकर प्रेम व् भाईचारे के साथ इस दुनिया को और सुन्दर बनावें. आलेख अत्यंत सुन्दर है. बधाई.
ReplyDeleteआपने एक संवाद आयोजित किया था, "पुस्तक प्रकाशन और हिन्दी लेखक" ब्लाग के लिये उस संवाद पर भी कुछ लिखिये। मैं उस संवाद में मौजूद था, लेकिन पूरे संवाद में उपस्थित नहीं रहने का दोषी हूँ। आपके विचार जानने के बाद उस पर मैं भी कुछ लिखना चाहूँगा।
ReplyDeleteआपने पुस्तकों के महत्व का मुद्दा सही तरह से सही वक़्त पर उठाया है. बहुत उम्दा आलेख के लिए बधाई. एक बात तो मैं यह कहना चाहता हूं कि हम जिस नई तकनीक को पुस्तकों के लिए खतरे की तरह देखते हैं, वह पुस्तक के लिए खतरा नहीं बल्कि पुस्तक का विस्तार ही है. अगर कोई किताब इण्टरनेट से डाउनलोड करके पढी जाती है या डिजिटाइज़ होती है तो है तो अंतत: वह किताब ही. अपनी-अपनी सुविधा की बात है. और इससे हमें दुखी क्यों होना चाहिए? बल्कि मुझे तो लगता है कि भारत जैसे देश के सन्दर्भ में तो यह तकनीक और भी अधिक प्रासंगिक है, जहां किताबों की सुलभता और उपलब्धता बहुत कम है. आपको अगर किसी किताब की तुरंत ज़रूरत है और वह किताब आपके शहर में उपलब्ध नहीं है तो या तो आप उसके बगैर काम चलाइये, या अगर वह डिजिटाइज़्ड रूप में उपलब्ध है, तो उसका इस्तेमाल कीजिए. इधर अमरीका में एक नई चीज़ आई है किण्डल. यह एक छोटा-सा उपकरण है जिसपर कीमत चुका कर किताब डाउनलोड की जा सकती है. यह उपकरण बहुत लोकप्रिय हो रहा है. एक तरह से यों समझें कि पहले आप गाने सुननने के लिए ग्रामोफोन रिकॉर्ड खरीदते थे, फिर कैसेट खरीदने लगे, फिर सीडी-डीवीडी और अब आइ पॉड पर वे ही गाने डाउनलोड करके सुन लेते हैं. तकनीक बदली है, संगीत तो नष्ट नहीं हुआ. यही बात किताब के सन्दर्भ में है. महत्व किताब का जितना नहीं है, उतना विचार का है, और विचार का वहन तो तो नई तकनीक भी कर रही है. हां, हमारी चिंता विचार के विस्थापन की अवश्य होनी चाहिए.
ReplyDeleteकिताबों की दुनिया हमारे लिए उस अजाने संसार के दरवाजे खोलती है, जिसे हम एक जीवन में प्राप्त नहीं कर सकते।.....
ReplyDeleteBADHAI MITRA....
भाई प्रेम चंद जी आपने पहचाना नहीं हम और आप बैंक में साथ ही थे. और मैं २००३ मैं ट्रेनी ऑफिसर होके चला गया था. मेरे ब्लॉग पर आने का आभार.
ReplyDeleteआपके विचार अच्छे लगे....!!
ReplyDeleteIt helped me for my project. Thank you!
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