Tuesday, 6 April 2010

बातों का बाजार

बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो ना थी

जैसी अब है तेरी महफिल कभी ऐसी तो ना थी।

अहमद फराज के इस मशहूर शेर के पहले मिसरे में ‘मुश्किल’ की जगह ‘आसान’ कर लीजिए, क्योंकि हिंदुस्तान के टेलीकाम बाजार में काल रेट का युद्ध अब बेहद रोमांचक होता जा रहा है। वीडियोकान ने काल रेट को प्रति सैकण्ड एक पैसे से भी कम पर करने की घोषणा के साथ प्रवेश कर बाजार में तहलका मचा दिया है। पुराने मोबाइल उपभोक्ताओं को वो दौर भी याद होगा जब मोबाइल पर बात सुनने के भी पैसे लगते थे और घण्टी बजते ही पी.सी.ओ. या लैण्डलाइन की तरफ रूख करना पड़ता था। लेकिन भला हो ट्राई का जिसने आम उपभोक्ता के हितों के लिए निरंतर नई से नई योजनाएं और नियम-शर्तें लगाकर कंपनियों को विवश कर दिया कि वे अपना बाजार बनाए रखने और विस्तार करने के लिए लगातार आकर्षक योजनाएं पेश करती रहें ताकि उपभोक्ताओं को ज्यादा से ज्यादा फायदा हो। यूं वीडियोकान से पहले ही लगभग सभी कंपनियां इस किस्म की कई योजनाएं लागू कर चुकी हैं, जिनमें उपभोक्ताओं को प्रति सैकण्ड एक पैसे से भी कम पर बात करने की सुविधा उपलब्ध है। लेकिन यह सुविधा कुछ सीमित नंबरो या उसी कंपनी के नंबरों पर उपलब्ध होती है। इस प्राइस वार ने उपभोक्ता को लगातार आपरेटर बदलने की छूट दी तो तमाम कंपनियों को दूसरों के मुकाबले बेहतर काल रेट लागू करने के कलए मजबूर होना पड़ा। आज लगभग तमाम कंपनियां नित नई योजनाएं लागू कर अपने उपभोक्ता को कहीं और जाने नहीं देना चाहतीं।

बातूनी समाज के कई चेहरे
स्व. राजीव गांधी जब संचार क्रांति की जब शुरुआत कर रहे थे, तब किसी ने यह कल्पना भी नहीं की थी कि भारतीय समाज इतने बातूनी समाज के रूप में सामने आएगा। वो भी क्या जमाना था, जब एक फोन कनेक्शन के लिए सांसदों के चक्कर काटने पड़ते थे और भाग्यषाली लोगों को ही फोन कनेक्षन मिल पाता था। फोन की ललक के उस दौर में हम सोच भी नहीं सकते थे कि दूरसंचार विभाग में काम करने वाला हमारा कोई रिश्‍तेदार भविष्य में लगभग अप्रासंगिक हो जाएगा। पुराने लोगों को याद होगा कि एक वो भी जमाना था जब मोहल्ले में जिसके यहां फोन होता था, वो सुनने के भी पैसे लेता था, पी.सी.ओ. पर तो यह बाकायदा रिवाज था, जिसे हम आज भी पुरानी हिंदी फिल्मों में देख सकते हैं। आज लगभग प्रत्येक सामान्य भारतीय के पास किसी ना किसी रूप में मोबाइल फोन है और बहुत से ऐसे भी हैं जिनके पास एक से अधिक फोन हैं। जरा-जरा सी बात पर मोबाइल खटखटाना आम आदत है। बात बिना बात फोन करना एक खास भारतीय आदत में शुमार है। बीवी और कुछ नहीं तो आफिस से घर लौटते पति से सब्जी की पसंद ही पूछ लेती है। पतिदेव स्कूल से आए बच्चों के बारे में पूछते हैं। ससुराल में बिटिया से बात करना माताओं का प्रिय शगल है तो खाली वक्त में दोस्तों से गप्प लड़ाना भी आम है।

बात करने से बात बनती है
जी हां, एक लोकप्रिय मोबाइल कंपनी के विज्ञापन की यह पंक्ति हिंदुस्तानी समाज पर पूरी तरह लागू होती है। क्योंकि संचार क्रांति के बाद पारिवारिक और सामाजिक संबंधों में मधुरता बढ़ रही है। बात ना करना बुरा माना जाता है। आपके किसी से चाहे जितने विवाद हों, झगड़े हों, एक मोबाइल फोन की घण्टी आपके संबंधों को सहज बना सकती है। पर्व-उत्सव के अवसरों पर संबंध सामान्य करने में मोबाइल बेहद असरकारक है। पुराने जमाने की चिट्ठी की जगह अब मोबाइल ने पूरी तरह ले ली है। दूर बसे संबंधियों से निरंतर संवाद का सबसे सहज साधन मोबाइल ही है। बॉस हों या दोस्त अथवा रिश्‍तेदार, मोबाइल आपको उनके स्नेह का पात्र बनाता है। आजकल झूठ बोलने में भी मोबाइल आपका मददगार होता है, आप कोई ना कोई बहाना बनाकर डांट-फटकार से बच सकते हैं और सतर्क रहते हुए भविष्य में संबंधों को सुधारने की कोशिश कर सकते हैं।

संदेसे आते हैं संदेसे जाते हैं
चिट्ठी-पत्री का अपना महत्व है, लेकिन सामान्य तौर पर महंगी पड़ने वाली डाक और कूरियर व्यवस्था के दौर में मोबाइल पर संक्षिप्त संदेश भेजना सहज, सस्ता और सुलभ साधन है। आप देश-विदेश से कहीं भी कभी भी संदेश भेजकर अपनी भावनाएं और जानकारियां अपने लोगों के साथ बांट सकते हैं। अब तो मोबाइल और इंटरनेट की जोड़ी ने मिलकर संदेश भेजना मुफ्त कर दिया है। लेकिन मोबाइल कंपनियां भी इंटरनेट के दाखिले के बाद अपने ग्राहकों के लिए राष्ट्रीय व स्थानीय संदेश भेजने की दरों में आश्‍चर्यजनक रूप से कमी कर रही हैं। अब दस पैसे में एक संदेश का जमाना खत्म हुआ, आप चाहें तो देश में कहीं भी महीने भर रोजाना पांच सौ संदेश भेजने के लिए सिर्फ पचास-साठ रूपये खर्च करने होंगे। जल्द ही अंतर्राष्ट्रीय संदेश भी सस्ते हो सकते हैं, क्योंकि भारत की कई मोबाइल कंपनियां बहुराष्ट्रीय स्तर पर अपनी सेवाओं में विस्तार कर रही हैं।

सब कुछ मोबाइल पर
आज आप कहीं भी जाएं आपसे हर जगह मोबाइल नंबर लिखने के लिए कहा जाता है। देश के कई बड़े बैंक अपने ग्राहकों को मोबाइल बैंकिंग अपनाने के लिए कह रहे हैं। अगर आपका बैंक खाता आपके मोबाइल से संचालित होने लग जाए तो आपके लिए इससे बेहतर कुछ नहीं। आप बिना किसी परेशानी के अपने तमाम भुगता मोबाइल के जरिए सहज और सुरक्षित ढंग से कर सकते हैं। आप बिना बैंक गए अपने खाते से जुड़ी समस्त जानकारियां मोबाइल पर हासिल कर सकते हैं। अगर आप शेयर बाजार में रूचि रखते हैं तो मोबाइल के जरिए अपने पास रखे शेयरों की ताजा जानकारियां भी हासिल कर सकते हैं। दुनिया भर के समाचार जान सकते हैं, अपना ई-मेल अकाउंट चैक कर सकते हैं, दोस्तों से चैटिंग कर सकते हैं। टेलीफोन, बिजली और पानी के बिल भुगतान कर सकते हैं। रेल, बस या हवाई जहाज में आरक्षण करा सकते हैं। अपने बीमा प्रीमियम की किश्‍त चुकानी हो या खुद का या किसी का भी मोबाइल रिचार्ज करना हो या टेलीविजन का डी.टी.एच. रिचार्ज कराना हो, आप अपने बैंक खाते से बिल्कुल सुरक्षित ढ़ंग से ये सारे काम कहीं भी कर सकते हैं। बैंक फिलहाल इन सेवाओं का कोई शुल्क नहीं ले रहे हैं।

अगर मोबाइल पर इतना कुछ उपलब्ध है तो लोग इन सेवाओं का इस्तेमाल क्यों नहीं कर रहे? दरअसल, हम लोग बहुत भयभीत रहते हैं कि कहीं कोई हमारा मोबाइल चुराकर सब कुछ हजम ना कर जाए। आशंका निर्मूल नहीं है, लेकिन यह भी सच है कि मोबाइल बैंकिंग के लिए बैंकों ने सुरक्षा के पूरे मानक अपनाए हैं, फिर भी इस्तेमाल करने वालों को किंचित सावधानी से अपना पासवर्ड या पिन नंबर चुनना चाहिए और किसी अन्य को नहीं बताना चाहिए।






3 comments:

  1. jordar!
    ek kahawt thi ki"bat ke kya dam lagte hain ?" ye kahawat aaj nakara ho gaiiab to ek ek second ki bat ke dam lagte hain par bat ban aasani se jati hai.
    badhiya post ke liye badhai!

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  2. बातें ..बातें ...सिर्फ बातें ....लोग इतनी बाते कैसे कर लेते हैं ....
    उसकी बजाय टाइप करना ज्यादा आसान है ...:)
    बातों की बातों पर अच्छा आलेख ...!!

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