साप्ताहिक पत्रिका ‘शुक्रवार’ में मेरी तीन कविताएं प्रकाशित हुई हैं। आज से ब्लॉग का सिलसिला फिर शुरू करते हैं।
सिक्के तल में पड़े रह जाते हैं
नदियां समंदर तक पहुंच जाती हैं
आस्था नदियों में है कि जल में
मालूम नहीं
पर श्रद्धा में अर्पित किए गए सिक्के
नदी के तल में हैं
आस्था का मूल्य
अगर एक सिक्का है
तो तल में जाने के बाद
आस्था खो देती है अपनी मूल्यवत्ता
निष्प्राण पत्थर
जल प्रवाह में किसी किनारे पहुंचकर
बन जाते हैं
आस्था के शालिग्राम
और सिक्के नदी तल में पड़े रह जाते हैं।
सिक्के तल में पड़े रह जाते हैं
नदियां समंदर तक पहुंच जाती हैं
आस्था नदियों में है कि जल में
मालूम नहीं
पर श्रद्धा में अर्पित किए गए सिक्के
नदी के तल में हैं
आस्था का मूल्य
अगर एक सिक्का है
तो तल में जाने के बाद
आस्था खो देती है अपनी मूल्यवत्ता
निष्प्राण पत्थर
जल प्रवाह में किसी किनारे पहुंचकर
बन जाते हैं
आस्था के शालिग्राम
और सिक्के नदी तल में पड़े रह जाते हैं।
आस्था नदियों में है कि जल में
ReplyDeleteमालूम नहीं
पर श्रद्धा में अर्पित किए गए सिक्के
नदी के तल में हैं...
अच्छी लगी...
यदि आस्था नदिया में है तो वह तो समुद्र में जा मिलती है और अगर जल में है तो श्रृध्दा से ""फैके गये"" सिक्के पानी के तले में पडे रह जाते है। यदि आस्था का मूल्य सिक्का है तो सिक्का तो अपना मूल्य खो देता है आपने चित्र में जो सिक्के बतलाये है वे या तो बन्द हो चुके या एक जुलाई से बन्द होने वाले है।अच्छा और नदी के जो पत्थर है वे धिसते धिसते गोल होजाते है और सालिग्राम के रुप में पूजे जाते है फिर उन पर पैसे चढाये जाते है और पत्रम पुष्पम के साथ पैसे भी नदी में विसर्जित कर दिये जाते है । फिर बात वही से शुरु कि आस्था नदिया में---------
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ............... जयपुर में ही यह बालक आपके दर्शन का अभिलाषी है !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ..
ReplyDeleteबंधुवर प्रेमचंद गांधी जी
ReplyDeleteसादर नमस्ते !
सिक्के तल में पड़े रह जाते हैं
नदियां समंदर तक पहुंच जाती हैं …
अद्भुत ! लक्ष्मी का चंचला स्वरूप यहां तो गतिमान नहीं है फिर :)
सुंदर भाव शिल्प की श्रेष्ठ रचना के लिए आभार !
साथ ही
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत सुन्दर रचना!
ReplyDeleteसोचने को बाध्य करती हुई!