यह कहानी मेरी प्रिय प्रेम कहानियों में से एक है। पिछले दिनों प्रेम दिवस के पूर्व रविवार 13 फरवरी, 2011 को यह राजस्थान पत्रिका के रविवारीय संस्करण में प्रकाशित हुई। इस लंबी कहानी को अखबार के लिए कुछ संक्षिप्त किया गया है।
"उसने कहा है कि अगर मैं उसके लिए एक लाल गुलाब ले आऊँ तो वह मेरे साथ नृत्य करेगी! लेकिन मेरे बगीचे में तो एक भी लाल गुलाब नहीं है" अपने आप से बात करते हुए वह नौजवान रोने लगा।
बगल के दरख़्त पर घौसले में बैठी बुलबुल ने उसे रोते सुना और पत्तियों की तरफ देख वह आश्चर्यचकित हो उठी । वह रो रहा था और उसकी खूबसूरत आँखों के प्याले आँसुओं के मोतियों से भर गए! "ओह, जिंदगी में कभी-कभी खुशियाँ कितनी छोटी-छोटी चीजों पर टिकी होती हैं ! मेरा सारा ज्ञान और दर्शनशास्त्र का अध्ययन बेकार है। एक अदने से लाल गुलाब की चाहत ने मेरी जिंदगी नरक बना दी है।"
"कम से कम इस दुनिया में एक सच्चा प्रेमी तो है।" बुलबुल चहक उठी, "मैं रातों में जिस अनजान प्रेमी के लिए गाती थी, चांद-तारों को जिसकी कहानी सुनाती थी, वो आज मुझे मिल ही गया। इसके बाल लाल गुलाबी पारदर्शी फूल जैसे हैं, और होंठ जैसे सुर्ख गुलाब, ठीक वैसे ही जैसी उसकी चाहत है। लेकिन चेहरा कुम्हलाया हुआ, कांतिहीन, हाथी दांत जैसा पीला। दुःख और संताप की स्पष्ट छाप इसके माथे पर छपी है।"
नौजवान बुदबुदाया, ‘कल राजकुंवर ने नृत्य की शाम सजाई है। वो भी वहां होगी। काश अगर मैं उसे सुर्ख गुलाब ला दूं तो उसे अपनी बाँहों में भर सकूंगा , और वह मेरे काँधों पर अपना सर टिकाए रात भर मेरे साथ नाचेगी। लेकिन मेरे बगीचे में कोई सुर्ख गुलाब नहीं है, इसलिए मुझे अकेले ही बैठना होगा, और वह बाय कहती हुई मेरे करीब से गुज़र जायेगी।"
"यकीनन यह सच्चा प्रेमी है" , बुलबुल ने कहा। "इसके कष्ट पर मैं क्या गाऊँ ? क्या इसके दर्द में मेरा गाना वाजिब होगा? सच में प्रेम है ही ऐसी निराली चीज! यह मोती-माणिक से भी बड़ा है, ना तो इसे खरीद सकते और ना ही यह हाट-बाज़ारों में मिल सकता है।"
"साजिंदे गलियारे में अपनी जगहें लेते चले जायेंगे", नौजवान ने खुद से कहा, "वे अपने वाद्ययंत्रों के तंतुओं को छेड़ना शुरू करेंगे, और मेरी महबूबा उनकी धुनों पर तल्लीन होकर नाचने लगेगी। वह इस कदर नाचेगी कि उसके पांव जमीन को छुएंगे तक नहीं, और दरबार में मौजूद तमाम लोग अपनी चटकीली वेशभूषाओं में उसके चारों ओर मंडरा रहे होंगे। लेकिन वह मेरे साथ नहीं नाचेगी क्योंकि उसे देने के लिए लाल गुलाब जो नहीं है मेरे पास।" इतना कह कर वह निढाल हो घास पर गिर गया और अपना मायूस चेहरा हाथों में लेकर जार-जार रोने लगा।
हरे गिरगिट, सूर्य किरण के गिर्द मंडराती एक तितली और गुलबहार के फूल तक ने उस नौजवान से पूछा, ‘तुम क्यों रो रहे हो?’
"वह एक लाल गुलाब के लिए रो रहा है।" बुलबुल ने कहा।
"सिर्फ एक लाल गुलाब के लिए !!" सब चिल्लाये ! "कितना बेहूदा है यह रोना।" और नन्हा गिरगिट ठठा कर हँस पड़ा।
लेकिन बुलबुल उसके संताप का रहस्य जान चुकी थी। उसने अपना गीत बंद कर दिया और उस गूढ़ प्रेम के विषय में सोचने लगी। अचानक वह अपने साँवले बादामी परों को फैला कर आसमान में बहुत ऊँचे उड़ चली।
दरख्तों के पार एक घास के मैदान के बीचो-बीच एक खूबसूरत गुलाब का पौधा था। बुलबुल ने देखा और उसकी ओर उड़ गयी।
"मुझे एक लाल गुलाब दो" वह गिडगिडायी , "बदले में तुम्हारे लिए मैं अपना सबसे मीठा गीत दूंगी!"
लेकिन पौधे ने अपना सिर हिला दिया ! "मेरा गुलाब तो सफ़ेद हैं" उसने जवाब में कहा; "उतना ही सफ़ेद जितना समंदर का झाग होता है , और यह तो पहाड की चोटियों पर पड़ी बर्फ से भी ज्यादा सफ़ेद है ! लेकिन तुम धूपघड़ी के पास मेरे भाई के यहां जाओ, शायद वहां तुम्हारी चाहत पूरी हो जाए।"
जल्दी से उड़ती हुई बुलबुल उस गुलाब के पास गई और अपनी प्रार्थना दोहराई। गुलाब के इस पौधे ने कहा, ‘मेरे पास तो जलपरियों के बालों जैसे पीले फूल होते हैं। तुम्हें छात्रों की खिड़की के पास वाले मेरे भाई के यहां जाना होगा, शायद वह तुम्हारी मदद करे।’
बुलबुल ने उड़ान भरी और खिड़की के नीचे वाले गुलाब के पौधे के पास जाकर अपनी चाहत बताने लगी। पौधा बोला, ‘मेरे पास मूंगे से भी कई गुना लाल सुर्ख गुलाब हैं, लेकिन ठण्ड के मारे मेरी नसें जम गई हैं और पाले ने तो सर्दियों की शुरुआत में ही मेरी सारी कलियां नष्ट कर दी थीं। तूफान से मेरी सारी टहनियां टूट गई हैं। अब पूरे साल मुझ पर कोई फूल नहीं खिलेगा।’
दुखी बुलबुल दर्द से कराहती हुई चीखी, ‘मुझे सिर्फ एक लाल गुलाब चाहिए। क्यां किसी भी तरह से एक लाल गुलाब मिल सकता है?’ पौधे ने जवाब में कहा, ‘एक रास्ता है, लेकिन बहुत खतरनाक है। वो मैं तुम्हें नहीं बता सकता।’ बुलबुल बोली, ‘बताओ, मैं नहीं डरूंगी।’ गुलाब के पौधे ने कहा, ‘सुनो अगर तुम्हें लाल गुलाब चाहिए तो चांदनी रात में तुम्हें अपने संगीत और दिल के खून से मुझे सींचना होगा। रात भर तुम मेरे लिए गाओगी और तुम्हारे कलेजे में मेरा कांटा चुभा रहेगा। तुम्हारा लहू मेरी नसों में बहेगा और मेरा हो जाएगा।’ बुलबुल ने कहा, ‘एक लाल गुलाब के लिए जिंदगी का दांव बहुत बड़ा है।’... दुनिया की तमाम खूबसूरत चीजों की तरह जिंदगी सभी को प्यारी होती है, बावजूद इसके प्यार जिंदगी से बेहतर है, बड़ा है। बुलबुल उड़कर वापस अपने शाहबलूत के दरख्त वाले घोंसले के लिए उड़ चली।
वो नौजवान अभी भी घास पर लेटा हुआ था। बुलबुल बोली, ‘अब खुश हो जाओ, तुम्हें तुम्हांरा लाल गुलाब मिल जाएगा। मैं चांदनी रात में अपने गीत से उसे पैदा करूंगी और अपने कलेजे के लहू से उसे सींचूंगी। मैं यही कहने आई हूं कि तुम्ही सच्चे प्रेमी हो। प्रेम ही ईश्वर है।’
युवक ने देखा और सुना, लेकिन वह कुछ भी नहीं समझ सका। वह तो सिर्फ किताबों में पढ़ी बातें ही जानता था, बुलबुल की बात वह कैसे समझता। लेकिन शाहबलूत का वह बूढ़ा दरख्त़ समझ गया था, जिस पर बुलबुल का आशियाना था। उसने बुलबुल से कहा, ‘मेरी खातिर आखिरी बार गाओ मेरी प्यारी बुलबुल... तुम्हारे जाने के बाद मुझे बहुत अकेलापन महसूस होगा।’ और बूढ़े दरख्त की बातें सुन कर बुलबुल उसके लिए गाने लगी। जैसे ही उसने गाना बंद किया, वो नौजवान उठा और चल दिया। रास्ते में चलते हुए भी वह अपनी महबूबा के बारे में सोचता रहा। इसी सोच में वह अपने कमरे में गया और बिस्तर पर लेट गया। सोचते सोचते वह सपनों की मीठी नींद में चला गया।
आकाश में चांद दिखते ही बुलबुल उड़कर गुलाब के पौधे के पास पहुंच गई। बिना वक्त गंवाए उसने गुलाब की टहनी का लंबा सा कांटा अपने सीने में पैबस्त कर लिया और गाने लगी। सबसे पहले उसने युवा प्रेमियों के दिलों में पनपने वाले प्रेम का गीत गाया। पौधे के माथे पर एक खूबसूरत गुलाब खिल उठा। बुलबुल जैसे-जैसे गाती रही, गुलाब की पंखुडि़यां खुलती चली गईं। अभी गुलाब के फूल का रंग कोहरे की मानिंद था, रंगहीन सफेद सरीखा। उधर पौधा बुलबुल से बार-बार कह रहा था, ‘प्यारी बुलबुल, कांटे को अपने दिल में कस कर दबाओ, कहीं ऐसा ना हो कि फूल पूरा होने से पहले ही दिन निकल आए।’ बुलबुल ने पूरी ताकत से कांटे को कस लिया और गाना तेज कर दिया। अब वह दो आत्माओं में पनपने वाले अमर प्रेम के गीत गा रही थी।
फूल पर अब गुलाबी रंग छाने लगा था। हालांकि उसका अंदरूनी हिस्सा अभी भी सफेद ही था। अब तो सिर्फ बुलबुल के दिल का लहू ही उसे सुर्ख रंग दे सकता था। इसलिए पौधे ने फिर बुलबुल से जोर लगाने के लिए कहा। बुलबुल ने अपना पूरा दम लगा दिया और आखिरकार कांटा उसके दिल तक पहुंच गया। बुलबुल को भयानक दर्द हुआ और वह दर्द के मारे जोरों से गाने लगी। अब वह उस प्रेम के गीत गा रही थी जो मृत्यु पर जाकर खत्म होता है। बुलबुल की कोशिशें रंग लाईं और आखिरकार गुलाब पूरी तरह पूरब के आसमान जैसा सुर्ख लाल हो गया। बुलबुल की आवाज धीमी पड़ती जा रही थी। उसके पंख तेजी से फड़फड़ा रहे थे-आंखें बंद होती जा रही थीं। बुलबुल ने अब आखिरी तान छेड़ी। इसे सुनकर चांद बादलों में छिपना भूलकर एक जगह स्थिर हो गया। लाल गुलाब इसे सुनकर खुशी के मारे कांप उठा। उसने अपनी तमाम पंखुडियां खोल दीं। पूरे इलाके में एक चीख गूंज गई, जिसे सुनकर सपने देखते गडरिए जाग उठे।
पौधा मारे खुशी के चिल्लाया, ‘देखो, गुलाब पूरा हो गया, देखो।’ बुलबुल कुछ नहीं बोली। कांटा उसके कलेजे में गहरे धंसा हुआ था और वह घास पर मौत की गहरी नींद सो रही थी।
दोपहर में नौजवान ने खिड़की खोल कर देखा तो वह लगभग चीख ही पड़ा, ‘यह रहा मेरा लाल गुलाब, किस्मत का शानदार करिश्मा। मैंने जिंदगी में आज तक ऐसा खूबसूरत लाल गुलाब नहीं देखा।’ उसने झुक कर फूल तोड़ लिया।
हाथ में गुलाब लिए वह माशूका के घर की तरफ दौड़ चला। वहां दरवाजे पर बैठी महबूबा धागे की रील लपेट रही थी। वह चिल्लाया, ‘तुमने कहा था, अगर मैं लाल गुलाब ले आउं तो तुम मेरे साथ नाचोगी। यह दुनिया का सबसे खूबसूरत लाल गुलाब है। आज की रात तुम इसे छाती से लगाओगी। हमारे नाच के वक्ता गुलाब का यह फूल तुम्हें अहसास कराएगा कि मैं तुमसे कितना प्रेम करता हूं।’
लेकिन लड़की ने चंचला स्त्री की तरह मुंह बनाते हुए कहा, ‘हुंह.. मुझे लगता है यह मेरे कपड़ों के रंग से मेल नहीं खाता। यूं भी बड़े सरदार के भतीजे ने मेरे लिए असली माणिक और मोतियों के गहने भेजे हैं। और सब जानते हैं कि गहने और माणिक-मोती फूलों से ज्यादा कीमती होते हैं।’
नौजवान क्रोध में चीखा, ‘तुम बेवफा हो।’ कह कर उसने गुलाब का वह फूल गली में फेंक दिया, जहां वह एक नाली में जाकर गिरा। एक घोड़ागाड़ी आई और फूल को कुचलते हुए निकल गई।
लड़की ने कहा, ‘बेवफा?... हुंह... वैसे भी तुम हो क्या? एक स्टूडेंट ही ना? मैं क्यों वफा करूं? तुम्हारे जूतों में तो सरदार के भतीजे की तरह चांदी के बक्कल भी नहीं होंगे।’ कहकर वह उठी और घर के भीतर चली गई।
नौजवान अपने कमरे में लौटते हुए बुदबुदाया, ‘यह इश्क भी क्यां वाहियात चीज है? तर्कशास्त्र के मुकाबले में तो यह आधी भी उपयोगी चीज नहीं है, क्यों कि इससे कुछ भी सिद्ध नहीं किया जा सकता। जो चीजें नहीं होने वाली, उन्हीं को तो बताता है यह और क्या? इश्क हमें इस यकीन के लिए मजबूर करता है कि यह सच नहीं है, अवास्तविक है, अव्यावहारिक है और मेरी उम्र में तो व्यावहारिकता ही सब कुछ है। अब मैं वापस दर्शनशास्त्र की तरफ लौटूंगा और तत्व मीमांसा पढूंगा।
वह कमरे पर लौटा और धूल से अटी हुई एक पुस्तक उठाई और पढ़ने लग गया।
बहुत सुन्दर और मार्मिक !
ReplyDeleteFull of emotions.
ReplyDeleteBHAI SAAB , PRANAM !
ReplyDeleteVAAKAI DIL KO CHHUNE WALI HAI KAHANI , AAP DWARA HUME PADHENKO MILI , SADHUWAD .
SAADAR
एक बेहतर कहानी...
ReplyDeletebahut dinon baad itni sunder aur marmic rachna padhne ko mili , samvedansheelrachna....
ReplyDeleteSundar
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और मार्मिक !
ReplyDeleteYah kahani search krke pdhi h aaj qki 2011 me pdhi thi mene or socha ki shayad Google pr mil jaye.
ReplyDelete