भोर की पहली किरण की तरह आता है जिंदगी में पहला प्रेम और पूरे वजूद को इस तरह जकड़ लेता है जैसे आकाश में परिंदों का एक अंतहीन काफिला हमें उड़ाता लिए चला जा रहा हो। कोई नहीं जानता कि यह कब, क्यों और कैसे होता है, लेकिन जिसके जीवन में पहला प्रेम आता है उसके लिए ही नहीं दुनिया के किसी भी कवि-साहित्यकार के लिए इसे शब्दों में बांधना और उसका वर्णन करना बेहद मुश्किल होता है। बावजूद इसके अनेक रचनाकारों ने अपने प्रथम प्रेम को कविता, कहानी और उपन्यासों में बहुत सुंदर ढंग से बयान किया है। पहले प्यार को लेकर दुनिया की तमाम भाषाओं में लिखा भी गया है और हजारों की तादाद में फिल्में भी बनी हैं और आज भी ये पहले जितनी ही लोकप्रिय हैं। लेकिन हेलन केलर की यह बात अपनी जगह आज भी कायम है कि पहले प्रेम जैसी दुनिया की सबसे खूबसूरत चीजों को देख-सुन कर नहीं, दिल की अतल गहराइयों से ही महसूस किया जा सकता है। आस्थावान लोग इसे खुदा की सबसे अनूठी ईजाद कहते हैं और इसीलिए दुनिया के महानतम सूफी कवियों ने खुदा को ही अपने महबूब के रूप में मानकर अपनी शायरी में उसके रूप-सौंदर्य और महत्व को सिरजा है। जैसे बुल्ले शाह ने कहा है ‘अरे लोगों तुम्हारा क्या्, मैं जानूं मेरा खुदा जाने।’ पहला प्यार उस जादू का नाम है, जिसे बहुत-से लोग पता नहीं क्यों जीवन में महसूस करने से वंचित रह जाते हैं। इस जादू की माया ऐसी है कि जब यह पैदा होता है तो दिल, दिमाग और समूची चेतना यह मानने को तैयार नहीं होते कि एक दिन इसका अंत भी आएगा। प्रथम प्रेम के बारे में महान उपन्यासकार ऑस्कर वाइल्ड ने एक अद्भुत और सटीक बात कही है कि पुरुष हमेशा किसी स्त्री का पहला प्यार बनने के सपने देखता है और स्त्रियां पहले प्रेम को अंतिम मानकर चलती हैं। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि स्त्रियों के लिए पहला प्रेम ही अंतिम होता है, इसमें उनको खुशी मिलती है वो अनिर्वचनीय होती है और पहले प्रेम के साथ ही प्रेम में उनकी खुशियां समाप्त हो जाती हैं। इसके बाद वाले सारे प्रेम स्त्रियों के लिए एक हद तक निरर्थक होते हैं।
जिंदगी में कुछ चीजें कभी लौटकर वापस नहीं आतीं, जैसे किशोरावस्था या जवानी में कदम रखते ही पहले प्रेम का अनुभव। उसकी स्मृति बार-बार पलट कर आती है और एक मीठे-से दर्द की लहर हमारे वजूद को हिलाकर रख देती है। नब्बे फीसदी से अधिक मामलों में पहला प्रेम नाकाम होता है और यह नाकामयाबी जिंदगी के मायने बदलकर रख देती है। तभी जाकर समझ में आता है कि क्यों फैज अहमद फैज ने लिखा था, ‘हैं और भी गम जमाने में मुहब्बत के सिवा।’ जॉर्ज बर्नार्ड शॉ ने इसीलिए पहले प्रेम के लिए कहा है कि ‘पहला प्यांर एक ऐसी मूर्खता है जिसमें जिज्ञासाओं का एक अनंत सिलसिला होता है और कोई भी सच्चीम स्वाभिमानी स्त्री इस चक्कर में नहीं पड़ती।’ जिंदगी की राह में आगे चलने पर वो सारी मूर्खताएं याद आती हैं, जिसमें एक नजर दीदार के लिए बेकरारी बेपनाह होती है, किसी ना किसी बहाने से प्रिय को खुश रखने के जतन पर जतन किए जाते हैं, भूख-प्यास, दिन रात किसी का खयाल नहीं रहता और जमाने भर को अपनी प्यारी-सी बेवकूफियों के लिए भुला दिया जाता है। कितना पछतावा होता है, जब उन अजीब हरकतों को जिंदगी के कठोर अनुभवों के बाद याद करते हुए खुद पर हंसी भी आती है और रोना भी।
असल में पहला प्यार एक खास उम्र में शारीरिक बदलावों के कारण विपरीत यौनाकर्षण से पैदा होता है। कहने में यह जितना आसान है, दरअसल है नहीं, क्योंकि महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन तक ने कहा है, ‘नहीं नहीं, यह तरीका नहीं चलेगा... पृथ्वी पर पहले प्यार जैसे जैवविज्ञानी पहलू को रसायन और भौतिकशास्त्र की शब्दांवली में तुम क्यों समझाने जा रहे हो।’ चलिए हम नहीं मानते कि इसे विज्ञान से सिद्ध किया जाए, लेकिन पहले प्रेम के कारण बहुत सी ऐसी चीजें जिंदगी में घटती हैं, जिनका इलाज आगे चलकर मनोविज्ञान को करना पड़ता है, क्योंकि पहले प्रेम की अतिशय स्मृति युवा दिलो-दिमाग को बहुत व्यथित करती है और वो इस बात को मानने के लिए तैयार ही नहीं होता कि इसका अवसान होगा। इसीलिए सर्बियाई लेखक ब्रेनिस्लाव न्यूजिक कहते हैं कि पहला प्यार तभी खतरनाक होता है जब वो आखिरी भी हो जाए।
बहरहाल इस दुनिया में बहुत से ऐसे लोग भी हैं जिनके जीवन में पहला प्रेम विवाह के बाद ही पैदा होता है और भारतीय समाज में तो यह एक बहुत बड़ा सच है। हमारे यहां तो कम उम्र में शादी का रिवाज आज भी जारी है। इस रिवाज की बदौलत ही शायद हमारे यहां विवाह जैसी संस्था इतनी कामयाब है, क्योंकि जिस उम्र में यौनाकर्षण जागृत होता है, उसी समय मां-बाप शादियां तय कर देते हैं और इस वजह से संभवत: पहले प्रेम का स्वाभाविक आकर्षण भावी जीवन साथी के प्रति पनप जाता है और यही विवाह के बाद दांपत्य् को मजबूती देता है। पहले प्रेम और भावी पति-पत्नी के लिए हमारे लोक जीवन में बहुत से लोकगीत, कहावतें और खेल बने हुए हैं। मुझे याद आता है कि बचपन में जब सावन के झूले लगते थे तो भाभियां अपनी नणदों से उनके भावी पति का नाम लेने के लिए खूब चुहल किया करती थीं और जब तक नाम नहीं बता दिया जाता था, तब तक झोटे देते हुए संटियां मारी जाती थी। नणदें भी भाभियों से अपने भैय्या का नाम पूछती थीं और इस तरह खूब मजे लिए जाते थे। अब वो पुराने रीति रिवाज खत्म होने के बाद परिदृश्य बदल गया है और प्राय: प्रथम प्रेम अब स्कूल और कॉलेज या घर, परिवार और रिश्तेदारियों में पनपने लगा है। बहरहाल हमारे लोक मानस में पहले प्रेम की अनेकों लोक कथाएं प्रचलित हैं, जिनमें ढोला-मरवण, जेठवा-ऊजळी, मूमल-महेंद्र, हीर-रांझा, सोहणी-महिवाल, ससी-पुन्नू, जसमा ओड़न आदि प्रमुख हैं।
पहले प्रेम की शुरुआत आजकल टेलीविजन, सिनेमा, क्रिकेट आदि लोकप्रिय माध्यमों के सितारों के जरिये होती है। एक जमाना था, जब हिंदी सिनेमा के नायक-नायिका ही हिंदी क्षेत्र में पहले प्रेम के पात्र हुआ करते थे। लड़कियां राजेश खन्ना के पोस्टरों से गंधर्व विवाह कर लिया करती थीं और नौजवान हेमा मालिनी, रेखा और मधुबाला आदि की तस्वीरें तकिए के नीचे दबाकर उनके सपनों में जीते थे। आजकल ज्यादातर किशोर और युवा अपना पहला प्रेम इन सेलिब्रिटी सितारों से करते हैं, लेकिन वास्तखविक पहला प्रेम दूसरी जगहों पर संभव होता है। पहला प्रेम प्राय: चेहरे की खूबसूरती, बातचीत, रहन-सहन के स्तर और अतिरिक्त प्रतिभा या मेधा के कारण पैदा होने वाले आकर्षण से पनपता है। वस्तुत: पहला प्रेम किसी भी इंसान के जीवन की पहली सबसे बड़ी परिघटना है, क्योंकि यह व्यक्ति को एक ऐसा अलौकिक और अवर्णनीय अहसास देकर जाता है, जिससे उसके बचपन और कैशोर्य का लगभग समापन होता है और अजीब उमंग व उत्साह से जीवन भरा-भरा लगने लगता है। आंखें बोलने लगती हैं और देह का अंग-अंग कुछ कहने लगता है, प्रकृति के सारे रंग एक नया अर्थ लेकर सामने आते हैं। मन काव्यमय हो जाता है और कुछ ना कुछ गुनगुनाने लगता है। चांद, सितारे, पेड़-पौधे, परिंदे, सुबह-शाम, दिन-रात सब कुछ इशारे करते नजर आते हैं और इंसान हरेक में अपने प्रिय को खोजने लगता है। जैसा कि कवयित्री एलिजाबेथ कहती हैं, ‘जब आप किसी से प्रेम करने लगते हैं तो आपकी तमाम इच्छाएं और हसरतें उसके लिए बाहर आने लगती हैं, आप सारी दुआओं में अपने प्रिय को याद करते हैं।’ बाकी दुनिया की नजरों में भले ही आपका प्रिय प्रेमपात्र अत्यंत साधारण और तुच्छ क्यों ना हो, आपके लिए संसार में उससे सुंदर कोई नहीं होता, क्यों कि आपका प्रेम ही उसे सौंदर्य देता है। इसीलिए किसी कवि ने कहा है कि आप उस स्त्री से इसलिए प्रेम नहीं करते हैं कि वह बेहद सुंदर है, बल्कि वह इसलिए खूबसूरत है कि आप उससे प्रेम करते हैं।
पहला प्रेम एक प्रकार से व्यक्ति को पूरी तरह बदल देता है। कुछ बदलाव सकारात्मक तो कुछ नकारात्मक भी होते हैं। जीवन में पहली बार परिवार से इतर किसी के प्रति आकर्षण व्यंक्ति को समाज के प्रति प्रेमिल बनाता है और प्रेम के रूप में एक ऐसा उपहार मिलता है, जिससे उसके भाव जगत में संवेदनाओं को विस्फोट होता है। कायनात की बहुत-सी चीजों को लेकर भावनात्मक रिश्ता विकसित होता है, जो आगे चलकर कई किस्म की कलात्मंक अभिरूचियों में तब्दील होता है और व्यक्ति को संवेदनशील कलाकार जैसे संस्कार मिलते हैं। पहले प्रेम की सबसे खराब बात यह होती है कि यह अत्यंत क्षणिक आवेग की तरह आता है और इसमें मूर्खता और मासूमियत का इस कदर घालमेल होता है कि कम उम्र में यह चिड़चिड़ा बना देता है और एक अजीब-सी दीवानगी पैदा कर देता है, जो परिवार के लिए चिंताजनक हो जाता है। इसीलिए नीत्शे की बात सही लगती है कि प्रेम में हमेशा कुछ हद तक पागलपन होता है, लेकिन दूसरी तरफ देखें तो हर पागलपन के भी कुछ कारण होते हैं। इस पागलपन ने हमें उच्च कोटि के कलाकार और रचनाकार दिए हैं। बहुत-से लेखकों का कहना है कि उन्होंने आरंभ में अपने प्रिय प्रेमपात्र को प्रभावित करने के लिए ही लिखना शुरु किया था।
पहले प्यार और पहले आकर्षण के बारे में चाहे कुछ भी कहा जाए, यह मनुष्य जीवन का सबसे अनमोल उपहार है, जो जिसको नसीब होता है, वो भी रोता है और जिसे नहीं मिलता वह भी। जिंदगी के किसी ना किसी मोड़ पर प्रथम प्रेम की स्नेहिल और मासूम स्मृति हमेशा एक नया अहसास देकर जाती है और यूं लगता है जैसे खुश्बुओं का एक जबर्दस्त झोंका दिलो-दिमाग को तरोताजा कर गया हो। अपनी ही एक कविता याद आती है:
पहला चुंबन और पहला आलिंगन
कभी नहीं भूलता कोई
भूलने के लिए और भी बहुत-सी चीजें हैं
मसलन बहुत सारे सुख
जो हमने साथ-साथ भोगे
उन दु:खों को नहीं भूलना प्रिय
जो हमने साथ-साथ काटे।
यह आलेख डेली न्यूज़, जयपुर के रविवारीय परिशिष्ट 'हम लोग' की आवरण कथा के रूप में 13 फरवरी, 2011 को प्रकाशित हुआ।
जिंदगी में कुछ चीजें कभी लौटकर वापस नहीं आतीं, जैसे किशोरावस्था या जवानी में कदम रखते ही पहले प्रेम का अनुभव। उसकी स्मृति बार-बार पलट कर आती है और एक मीठे-से दर्द की लहर हमारे वजूद को हिलाकर रख देती है। नब्बे फीसदी से अधिक मामलों में पहला प्रेम नाकाम होता है और यह नाकामयाबी जिंदगी के मायने बदलकर रख देती है। तभी जाकर समझ में आता है कि क्यों फैज अहमद फैज ने लिखा था, ‘हैं और भी गम जमाने में मुहब्बत के सिवा।’ जॉर्ज बर्नार्ड शॉ ने इसीलिए पहले प्रेम के लिए कहा है कि ‘पहला प्यांर एक ऐसी मूर्खता है जिसमें जिज्ञासाओं का एक अनंत सिलसिला होता है और कोई भी सच्चीम स्वाभिमानी स्त्री इस चक्कर में नहीं पड़ती।’ जिंदगी की राह में आगे चलने पर वो सारी मूर्खताएं याद आती हैं, जिसमें एक नजर दीदार के लिए बेकरारी बेपनाह होती है, किसी ना किसी बहाने से प्रिय को खुश रखने के जतन पर जतन किए जाते हैं, भूख-प्यास, दिन रात किसी का खयाल नहीं रहता और जमाने भर को अपनी प्यारी-सी बेवकूफियों के लिए भुला दिया जाता है। कितना पछतावा होता है, जब उन अजीब हरकतों को जिंदगी के कठोर अनुभवों के बाद याद करते हुए खुद पर हंसी भी आती है और रोना भी।
असल में पहला प्यार एक खास उम्र में शारीरिक बदलावों के कारण विपरीत यौनाकर्षण से पैदा होता है। कहने में यह जितना आसान है, दरअसल है नहीं, क्योंकि महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन तक ने कहा है, ‘नहीं नहीं, यह तरीका नहीं चलेगा... पृथ्वी पर पहले प्यार जैसे जैवविज्ञानी पहलू को रसायन और भौतिकशास्त्र की शब्दांवली में तुम क्यों समझाने जा रहे हो।’ चलिए हम नहीं मानते कि इसे विज्ञान से सिद्ध किया जाए, लेकिन पहले प्रेम के कारण बहुत सी ऐसी चीजें जिंदगी में घटती हैं, जिनका इलाज आगे चलकर मनोविज्ञान को करना पड़ता है, क्योंकि पहले प्रेम की अतिशय स्मृति युवा दिलो-दिमाग को बहुत व्यथित करती है और वो इस बात को मानने के लिए तैयार ही नहीं होता कि इसका अवसान होगा। इसीलिए सर्बियाई लेखक ब्रेनिस्लाव न्यूजिक कहते हैं कि पहला प्यार तभी खतरनाक होता है जब वो आखिरी भी हो जाए।
बहरहाल इस दुनिया में बहुत से ऐसे लोग भी हैं जिनके जीवन में पहला प्रेम विवाह के बाद ही पैदा होता है और भारतीय समाज में तो यह एक बहुत बड़ा सच है। हमारे यहां तो कम उम्र में शादी का रिवाज आज भी जारी है। इस रिवाज की बदौलत ही शायद हमारे यहां विवाह जैसी संस्था इतनी कामयाब है, क्योंकि जिस उम्र में यौनाकर्षण जागृत होता है, उसी समय मां-बाप शादियां तय कर देते हैं और इस वजह से संभवत: पहले प्रेम का स्वाभाविक आकर्षण भावी जीवन साथी के प्रति पनप जाता है और यही विवाह के बाद दांपत्य् को मजबूती देता है। पहले प्रेम और भावी पति-पत्नी के लिए हमारे लोक जीवन में बहुत से लोकगीत, कहावतें और खेल बने हुए हैं। मुझे याद आता है कि बचपन में जब सावन के झूले लगते थे तो भाभियां अपनी नणदों से उनके भावी पति का नाम लेने के लिए खूब चुहल किया करती थीं और जब तक नाम नहीं बता दिया जाता था, तब तक झोटे देते हुए संटियां मारी जाती थी। नणदें भी भाभियों से अपने भैय्या का नाम पूछती थीं और इस तरह खूब मजे लिए जाते थे। अब वो पुराने रीति रिवाज खत्म होने के बाद परिदृश्य बदल गया है और प्राय: प्रथम प्रेम अब स्कूल और कॉलेज या घर, परिवार और रिश्तेदारियों में पनपने लगा है। बहरहाल हमारे लोक मानस में पहले प्रेम की अनेकों लोक कथाएं प्रचलित हैं, जिनमें ढोला-मरवण, जेठवा-ऊजळी, मूमल-महेंद्र, हीर-रांझा, सोहणी-महिवाल, ससी-पुन्नू, जसमा ओड़न आदि प्रमुख हैं।
पहले प्रेम की शुरुआत आजकल टेलीविजन, सिनेमा, क्रिकेट आदि लोकप्रिय माध्यमों के सितारों के जरिये होती है। एक जमाना था, जब हिंदी सिनेमा के नायक-नायिका ही हिंदी क्षेत्र में पहले प्रेम के पात्र हुआ करते थे। लड़कियां राजेश खन्ना के पोस्टरों से गंधर्व विवाह कर लिया करती थीं और नौजवान हेमा मालिनी, रेखा और मधुबाला आदि की तस्वीरें तकिए के नीचे दबाकर उनके सपनों में जीते थे। आजकल ज्यादातर किशोर और युवा अपना पहला प्रेम इन सेलिब्रिटी सितारों से करते हैं, लेकिन वास्तखविक पहला प्रेम दूसरी जगहों पर संभव होता है। पहला प्रेम प्राय: चेहरे की खूबसूरती, बातचीत, रहन-सहन के स्तर और अतिरिक्त प्रतिभा या मेधा के कारण पैदा होने वाले आकर्षण से पनपता है। वस्तुत: पहला प्रेम किसी भी इंसान के जीवन की पहली सबसे बड़ी परिघटना है, क्योंकि यह व्यक्ति को एक ऐसा अलौकिक और अवर्णनीय अहसास देकर जाता है, जिससे उसके बचपन और कैशोर्य का लगभग समापन होता है और अजीब उमंग व उत्साह से जीवन भरा-भरा लगने लगता है। आंखें बोलने लगती हैं और देह का अंग-अंग कुछ कहने लगता है, प्रकृति के सारे रंग एक नया अर्थ लेकर सामने आते हैं। मन काव्यमय हो जाता है और कुछ ना कुछ गुनगुनाने लगता है। चांद, सितारे, पेड़-पौधे, परिंदे, सुबह-शाम, दिन-रात सब कुछ इशारे करते नजर आते हैं और इंसान हरेक में अपने प्रिय को खोजने लगता है। जैसा कि कवयित्री एलिजाबेथ कहती हैं, ‘जब आप किसी से प्रेम करने लगते हैं तो आपकी तमाम इच्छाएं और हसरतें उसके लिए बाहर आने लगती हैं, आप सारी दुआओं में अपने प्रिय को याद करते हैं।’ बाकी दुनिया की नजरों में भले ही आपका प्रिय प्रेमपात्र अत्यंत साधारण और तुच्छ क्यों ना हो, आपके लिए संसार में उससे सुंदर कोई नहीं होता, क्यों कि आपका प्रेम ही उसे सौंदर्य देता है। इसीलिए किसी कवि ने कहा है कि आप उस स्त्री से इसलिए प्रेम नहीं करते हैं कि वह बेहद सुंदर है, बल्कि वह इसलिए खूबसूरत है कि आप उससे प्रेम करते हैं।
पहला प्रेम एक प्रकार से व्यक्ति को पूरी तरह बदल देता है। कुछ बदलाव सकारात्मक तो कुछ नकारात्मक भी होते हैं। जीवन में पहली बार परिवार से इतर किसी के प्रति आकर्षण व्यंक्ति को समाज के प्रति प्रेमिल बनाता है और प्रेम के रूप में एक ऐसा उपहार मिलता है, जिससे उसके भाव जगत में संवेदनाओं को विस्फोट होता है। कायनात की बहुत-सी चीजों को लेकर भावनात्मक रिश्ता विकसित होता है, जो आगे चलकर कई किस्म की कलात्मंक अभिरूचियों में तब्दील होता है और व्यक्ति को संवेदनशील कलाकार जैसे संस्कार मिलते हैं। पहले प्रेम की सबसे खराब बात यह होती है कि यह अत्यंत क्षणिक आवेग की तरह आता है और इसमें मूर्खता और मासूमियत का इस कदर घालमेल होता है कि कम उम्र में यह चिड़चिड़ा बना देता है और एक अजीब-सी दीवानगी पैदा कर देता है, जो परिवार के लिए चिंताजनक हो जाता है। इसीलिए नीत्शे की बात सही लगती है कि प्रेम में हमेशा कुछ हद तक पागलपन होता है, लेकिन दूसरी तरफ देखें तो हर पागलपन के भी कुछ कारण होते हैं। इस पागलपन ने हमें उच्च कोटि के कलाकार और रचनाकार दिए हैं। बहुत-से लेखकों का कहना है कि उन्होंने आरंभ में अपने प्रिय प्रेमपात्र को प्रभावित करने के लिए ही लिखना शुरु किया था।
पहले प्यार और पहले आकर्षण के बारे में चाहे कुछ भी कहा जाए, यह मनुष्य जीवन का सबसे अनमोल उपहार है, जो जिसको नसीब होता है, वो भी रोता है और जिसे नहीं मिलता वह भी। जिंदगी के किसी ना किसी मोड़ पर प्रथम प्रेम की स्नेहिल और मासूम स्मृति हमेशा एक नया अहसास देकर जाती है और यूं लगता है जैसे खुश्बुओं का एक जबर्दस्त झोंका दिलो-दिमाग को तरोताजा कर गया हो। अपनी ही एक कविता याद आती है:
पहला चुंबन और पहला आलिंगन
कभी नहीं भूलता कोई
भूलने के लिए और भी बहुत-सी चीजें हैं
मसलन बहुत सारे सुख
जो हमने साथ-साथ भोगे
उन दु:खों को नहीं भूलना प्रिय
जो हमने साथ-साथ काटे।
यह आलेख डेली न्यूज़, जयपुर के रविवारीय परिशिष्ट 'हम लोग' की आवरण कथा के रूप में 13 फरवरी, 2011 को प्रकाशित हुआ।
एक बेहतर आलेख...
ReplyDeleteaanand aayaa.news paper men chuk gaye. yahaan ghadi pakad lee.
ReplyDeleteप्रेम का हर रंग समेटा आपने ...सार्थक लेख
ReplyDeleteपहले प्रेम पर अच्छा आलेख !
ReplyDeleteभाई साब प्रणाम !
ReplyDeleteसच है की मानव पे सर्व प्रथम '' प्रेम ही हावी होता है , चाहे किसी भी रूप में हो . ''' प्रेम बिन सब सून जग में '' अबोली बच्चे का पहला स्पर्श ही प्रेम होता है . बेहद सुंदर पोस्ट है , साधुवाद
सादर
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