Sunday, 13 November 2011

प्रेम का अंकशास्‍त्र


नौ ग्रहों में सबसे चमकीले शुक्र जैसी है उसकी आभा
आवाज़ जैसे पंचम में बजती बांसुरी
तीन लोकों में सबसे अलग वह
दूसरा कोई नहीं उसके जैसा

नवचंद्रमा-सी दर्शनीय वह
लुटाती मुझ पर सृष्टि का छठा तत्‍व प्रेम

नौ दिन का करिश्‍मा नहीं वह
शाश्‍वत है हिमशिखरों पर बर्फ की मानिंद

सात महासागरों के जल से निखारा है
कुदरत ने उसका नव्‍यरूप

खत्‍म हो जाएं दुनिया के सातों आश्‍चर्य
वह लाजिमी है मेरे लिए
जिंदगी में सांस की तरह
पृथ्‍वी पर हवा-पानी-धूप की तरह।

Monday, 7 November 2011

कराची में बकरा मण्‍डी

2005 में अपनी पहली पाकिस्‍तान यात्रा के दौरान कराची देखने का अवसर मिला। शहर कराची को लेकर कुछ कविताएं लिखी थीं। उनमें से एक कविता यहां प्रस्‍तुत कर रहा हूं। सब दोस्‍तों को ईद की दिली मुबारकबाद के साथ सबकी सलामती की कामनाओं के साथ।

न जाने कितनी दूर तक चली गई है
यह बल्लियों की बैरीकैडिंग
जैसे किसी वीवीआईपी के आने पर
सड़कें बांध दी जाती हैं हद में

आधी रात के बाद
जब पहली बार इधर से गुज़रे तो लगा
बकरे मिमिया रहे हैं
यहां इस विशाल अंधेरे मैदान में
और बकरीद आने ही वाली है

इस मण्‍डी से कुछ फर्लांग के फासले पर
हाईवे से गुज़रते हुए
कभी नहीं दिखा कोई बकरा
न सुनाई दी उसकी हलाल होती चीख़
एक ख़ामोशी ही बजती थी हवा में
कसाई के छुरे की तरह

एक सुबह मण्‍डी के पास से गुजरते हुए मालूम हुआ
बकरा मण्‍डी सिर्फ बकरों की नहीं
यहां भेड़, गाय, भैंस, ऊंट सब बिकते हैं

बुज़ुर्ग मेज़बान ने
बड़े दुख के साथ कहा,
'चारा नहीं है
मवेशी जिबह किये जा रहे हैं और
चाय के लिए पाउडर दूध इस्‍तेमाल होता है.
मसला यह नहीं कि मवेशी कम हो रहे हैं
मसला यह कि शहर कराची
इंसान और जानवर दोनों की मण्‍डी है।'