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Sunday, 22 March 2009

भगत सिंह:क्रांतिपथ की सहयात्री किताबें

शहीदे आजम भगत सिंह को लेकर आम-अवाम में यही धारणा प्रचलित है कि एक नौजवान, देशप्रेम और स्वाधीनता के युवकोचित जोश के चलते आजादी के महासमर में वीरगति को प्राप्त हुआ। धीरे-धीरे ही सही लोगों में भगत सिंह को लेकर बनी-बनाई धारणाएं टूट रही हैं और भगत सिंह से संबंधित साहित्य का इसमें अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान है। खुद भगत सिंह ने अपने प्रसिद्ध लेख ‘मैं नास्तिक क्यों हूं’ में लिखा है, ‘‘मैं 1925 तक एक रूमानी आदर्शवादी क्रांतिकारी ही था। तब तक हम सिर्फ दूसरों का अनुसरण ही करते थे। अब हमारे कंधों पर ही जिम्मेदारी आ गई...कुछ समय तक तो मुझे भी यही डर लगता रहा कि कहीं हमारा सारा कार्यक्रम ही तो निरर्थकता की ओर नहीं जा रहा। मेरे क्रांतिकारी जीवन में यही एक निर्णायक मोड़ था। मेरे दिलोदिमाग के गलियारों में यही गूंजता रहा ‘पढ़ो’। विरोधियों की तरफ से आने वाले सवालों से मुकाबला के लिए तैयार रहने के लिए पढो। खुद को अपनी राह के विचारों पर दृढ़ रहने के लिए पढ़ो। और फिर मैंने पढना शुरू कर दिया।’’ भगत सिंह के साथी और लाहौर षड़यंत्र केस के सहअभियुक्त जतींद्रनाथ सान्याल ने भगत सिंह की जीवनी में लिखा है कि भगत सिंह जबर्दस्त पढ़े हुए क्रांतिकारी थे और उनके अध्ययन के दायरे में समाजवाद से जुड़ा साहित्य प्रमुख था।
भगतसिंह के जीवन के विभिन्न आयामों की खोज करते हुए शोधकर्ताओं को जो जानकारी मिली है उसके मुताबिक अपने छोटे से जीवन काल में भगत सिंह ने क्रांतिकारी कामों में भाग लेते हुए सैंकडों पुस्तकें पढीं, जिनमें से तकरीबन तीन सौ किताबों की सूची बना ली गई है। इनमें भारतीय और विदेशी पुस्तकों की संख्या लगभग समान है। जेल में रहते हुए भगतसिंह जो किताबें पढते थे, उनसे उपयोगी और प्रेरक अंश वे एक डायरी में नोट कर लिया करते थे। कुछ वर्ष पूर्व ही यह जेल डायरी प्रकाश में आई और आते ही लोकप्रिय हो गई। इस जेल डायरी का प्रथम प्रकाशन जयपुर के विख्यात सामाजिक कार्यकर्ता और बुद्धिजीवी स्व. बी. हूजा ने किया था। भगतसिंह की इस डायरी को पढें तो पता चलता है कि उनकी रूचियों में कितनी विविधता रही। चार्ल्स डिकेंस की ‘पिकविक’ पढते हुए वे डायरी में नोट करते हैं, ‘मनुष्य जाति की सबसे रोमांचक और काबिलेमाफ कमजोरी है-प्रेम’। भगतसिंह की पढी कई किताबों के मामलों में तो यह भी देखा गया कि जिस पुस्तक या लेख से वे अत्यंत प्रभावित होते थे, उसका येनकेन प्रकारेण प्रचार-प्रसार करने में भी पीछे नहीं रहते थे। इसके लिए वे खुद ही अनुवाद भी कर देते थे और अपने साथियों को भी इसके लिए प्रेरित करते थे।
हमारे देखते देखते ही भगतसिंह को एक आदर्श क्रांतिकारी से पूजनीय महापुरूष बना दिया गया। भगतसिंह खुद इसके खिलाफ थे। उन्होंने जार्ज बर्नाड शा की पुस्तक ‘मैन एण्ड सुपरमैन पढते हुए अपनी डायरी में नोट किया, ‘एक मूर्ख राष्ट्र में प्रतिभाशाली व्यक्ति भगवान हो जाता है, हर कोई उसकी पूजा करता है, लेकिन कोई उसकी राह पर नहीं चलता।’ आज भी यही हो रहा है और होता रहेगा, अगर हम भगतसिंह को उसके विचारों के आधार पर स्वीकार कर लागू करने से भागेंगे तो यही होगा। लेकिन भगतसिंह को आजकल इसलिए भी खारिज किया जाता है कि उनके विचार जिस समाजवादी व्यवस्था का स्वप्न देखते थे, वह प्रयोग कुछ देशों में विफल हो चुका है। लेकिन हमें यह भी स्वीकार कर लेना चाहिए कि एक अच्छा वैज्ञानिक एक प्रयोग की विफलता से कभी प्रयोग बंद नहीं करता, वह लगातार अपनी खोज जारी रखता है।
भगतसिंह ने जो विदेशी पुस्तकें पढीं उनमें आयरलैंड के स्वाधीनता संघर्ष से जुडी डेढ दर्जन किताबें आजादी के आंदोलन को आगे बढाने वाली थीं। ब्रिटिष साहित्य में भगतसिंह ने कविता, कहानी, नाटक और उपन्यास के अलावा वैचारिक पुस्तकें पढीं। इनमें चार्ल्स डिकेंस की ‘पिकविक’ और ‘ए टेल आफ टू सिटीज’, हाल कैने के रोमांटिक-राजनैतिक उपन्यास, जार्ज बर्नाड शा का विपुल साहित्य, गोल्डस्मिथ, शेक्सपीयर, बर्ट्रेंड रसैल, आस्कर वाइल्ड, विलियम मौरिस और हर्बर्ट स्पेंसर जैसे अनेक लेखकों की कोई चार दर्जन किताबें शामिल हैं।
यूरोपीय साहित्य में कार्ल मार्क्स की ‘पूंजी’, ‘कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो’ और दो अन्य पुस्तकें, कार्लाइल की ‘फ्रेंच रिवोल्यूशन’, विक्टर ह्यूगो की ‘ला मिजरेबल’ और ‘नाइंटी थ्री’, रोजा लक्जमबर्ग, रूसो, हेगेल और जोसेफ मेजिनी की किताबों के अलावा नेपोलियन और गैरीबाल्डी की जीवनियां प्रमुख रूप से पढीं। अमेरिकी साहित्य में भगतसिंह ने अप्टोन सिंक्लेयर के आठ उपन्यास, जैक लण्डन का ‘आइरन हील’, एम्मा गोल्डमैन, स्काट नीरिंग, हेलेन केलर, जान डेवी और जान रीड की प्रसिद्ध किताब ‘टेन डेज देट शूक द वर्ल्ड’ सहित विभिन्न लेखकों की तीस से अधिक पुस्तकें पढीं।
रूसी साहित्य में भगतसिंह ने तोलस्तोय, गोर्की, दोस्तोयेव्स्की, बुखारिन, लेनिन, त्रात्स्की और स्टालिन जैसे लेखक, साहित्यकार, विचारक और राजनैतिक दर्शनशास्त्रियों और नेताओं की लगभग तीन दर्जन से अधिक किताबें पढीं। अपने आखिरी दिनों में वे लेनिन की जीवनी पढ रहे थे।

भारतीय साहित्य में भगतसिंह ने अंग्रेजी, हिंदी, उर्दू, पंजाबी और बांग्ला की कोई पांच दर्जन से अधिक पुस्तकों का अध्ययन किया। हिंदी, पंजाबी और उर्दू की नौ पत्रिकाओं से वे जुड़े रहे और उनमें लिखते रहे। भारतीय अंग्रेजी साहित्य में भगतसिंह ने पचास से अधिक पुस्तकें पढीं और वे गांधी जी की पत्रिका ‘यंग इण्डिया’ में भी रूचि लेते थे। हिंदी में उन्होंने साठ से अधिक पुस्तकें पढीं, जिनमें प्रेमचंद की ‘निर्मला’ और ‘सोजे वतन’, रामप्रसाद बिस्मिल, राधामोहन गोकुलजी, महात्मा गांधी, गणेश शंकर विद्यार्थी और लोकमान्य तिलक आदि की रचनाएं प्रमुख हैं। उर्दू और पंजाबी में वे मुख्य रूप से पत्रिकाएं पढते थे और जो किताबें उन्होंने पढीं, उनके रचनाकारों के बारे में जानकारी उपलब्ध नहीं है। अपने आखिरी वक्त तक भगतसिंह पढते रहे। जेल की कोठरी से फांसी के तख्ते तक जाते हुए भी वे लेनिन की जीवनी पढते रहे। जेलर के इस बाबत सवाल पूछने पर भगतसिंह ने कहा, ‘एक क्रांतिकारी दूसरे क्रांतिकारी से मिल रहा है।’