Monday, 15 February 2010

कोई सरहद ना इसे रोके...

प्राय: सभी देशों में पुरूष-स्त्री से एकनिष्ठ प्रेम की मांग करते हैं किंतु मौका मिलने पर विवाहेत्तर संबंधों से गुरेज नहीं करते और स्त्री ऎसा कर ले, तो झट से तलाक दे देते हैं। किंतु आधुनिक विचारों ने अब महिलाओं को जन्म-जन्मांतर की कैद वाले दकियानूसी विचारों से निजात दिला दी है।

शिक्षा, तकनीक और वैश्वीकरण ने जिस प्रकार पूरी दुनिया को "विश्व ग्राम" में बदल दिया है, उसमें अब देशों की सीमाएं समाप्त हो रही हैं और स्त्री-पुरूष संबंधों की एक नई और वैश्विक प्रेम की दुनिया विकसित हो रही हैं। धर्म, जाति, समाज, गांव, शहर, गोत्र, भाषा और प्रांत से युगों आगे बढ़कर प्रेम की दुनिया तमाम बंधनों से आगे चली आई है और दुनिया के हर हिस्से में व्यापक होती जा रही है। इस नई वैश्विक दुनिया को बनाने में सबसे बड़ा योगदान आधुनिक शिक्षा का है, जिसने लोगों के दिलों में यह बात बहुत गहरे से पैबस्त कर दी है कि मनुष्य-मनुष्य में कोई भेद नहीं होता और जहां दिल मिले वहीं प्रेम और विवाह करना चाहिए। इस विचार को पहले औद्योगिक क्रांति के दौर में यूरोप-अमेरिका में मान्यता मिली और नस्ल व जाति के भेद खत्म हुए तो सही मायने में एक समतावादी समाज विकसित करने के लिए लोगों ने प्रेम को विवाह में परिणत करना शुरू किया। हालांकि पश्चिम में विवाह और संतानोत्पत्ति के बीच लंबे समय से कोई संबंध नहीं माना जाता रहा है, क्योंकि वहां एकल मातृत्व को भी सहज रूप में स्वीकार कर लिया जाता है। पश्चिमी समाज स्त्री-पुरूष संबंधों के मामले में बेहद खुला समाज है और भारतीय उपमहाद्वीप जैसे देशों के बंद समाजों के बाशिंदों को वह संभवत: इसी वजह से आकर्षित भी करता है। इसी के साथ एक सच यह भी है कि पश्चिमी समाज भारतीय उपमहाद्वीप की वैवाहिक परंपराओं और लंबे गृहस्थ जीवन के आदर्श का आदर करते हुए अनुकरणीय मानता है। तकनीक के इस युग में लगभग हर देश में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रेम संबंध विकसित हो रहे हैं और विवाह की वेदी तक पहुंच रहे हैं।

दूरसंचार के क्षेत्र में इंटरनेट-क्रांति ने दुनिया भर के लोगों को एक-दूसरे के नजदीक ला दिया है। ई-मेल, नेटवर्किंग साइट्स और चैटिंग की सुविधा ने लोगों को इस कदर परस्पर एक कर दिया है कि अपनी पसंद का साथी दुनिया के किसी भी कोने से चुना जा सकता है। उससे बातचीत कर एक-दूसरे को गहराई से जाना जा सकता है और उचित लगे, तो प्रेम और विवाह भी किया जा सकता है। इंटरनेट पर बहुत से मैरिज-ब्यूरो संचालित हो रहे हैं, जहां किसी भी देश से वर-वधू का चुनाव किया जा सकता है। आज के वैश्वीकरण के माहौल में युवा वर्ग उच्च शिक्षा के लिए दुनिया के विभिन्न देशों में जाते हैं। फिर वहीं रोजगार भी प्राप्त कर लेते हैं। अकेले युवक-युवतियों की सहपाठी और सहकर्मियों से मित्रता होती है, और ये मैत्रियां कई मामलों में प्रेम और विवाह में परिणत हो जाती हैं। हिंदी के प्रसिद्ध कवि-साहित्यकार अनिल जनविजय स्कॉलरशिप पर मास्को गए, वहीं नौकरी मिल गई, तो सहपाठी रूसी कन्या से प्रेम हुआ, जो अंतत: विवाह तक पहुंचा। ऎसे हजारों उदाहरण भारतीय युवक-युवतियों के मिल जाएंगे। एक समय ऎसा भी था, जब इस प्रकार के अंतर्राष्ट्रीय विवाह सिर्फ शाही खानदानों में ही हुआ करते थे, जो कि प्रेम-विवाह कम राजनैतिक और कूटनीतिक विवाह अघिक हुआ करते थे।

साम्यवादी व्यवस्था के पतन के बाद रूस में जिस प्रकार भयानक आर्थिक कंगाली आई, उससे सबसे ज्यादा रूसी महिलाएं प्रभावित हुईं। रूसी महिलाएं ही क्या, दुनिया के लगभग तमाम देशों की महिलाएं आजन्म वैवाहिक संबंधों को तरजीह देती हैं, किंतु आधुनिक विचारों ने अब महिलाओं को जन्म-जन्मांतर की कैद वाले विचारों से निजात दिला दी है। एक रूसी महिला ईव के अनुसार वह भी अपनी मां की तरह आजन्म विवाह का रिश्ता चाहती थी, किंतु उसे अपने क्रूर पिता जैसा पति नहीं चाहिए था। ईव की निगाह में विवाह एक स्थायी प्रेम संबंध कायम करने का नाम है। इसके लिए उसने दुनिया भर में इंटरनेट के माध्यम से अपने लिए उपयुक्त वर की तलाश की। ईव जैसी लाखों-करोड़ों महिलाएं हैं, जिन्हें अपने लिए उपयुक्त वर के स्थान पर स्थायी प्रेमी की तलाश है, जिसकी परिणति लोक-कथाओं और किंवदंतियों के प्रेमी जैसी त्रासदीपूर्ण ना हो। रूसी स्त्रियां अंतर्राष्ट्रीय विवाह करने में पहले स्थान पर हैं।

चीन में एक संतान के प्रतिबंध के कारण लोग कन्याओं को गर्भ में मार डालते हैं, इसलिए वहां लिंगानुपात भयानक रूप से गड़बड़ा गया है और मांग उठने लगी है कि चीनियों को विदेशी नागरिकों से विवाह की अनुमति दी जानी चाहिए। यही हाल जापान का है, जहां पुरूष अत्यघिक काम करने और शराबनोशी की वजह से परिवार की तरफ ध्यान नहीं देते, इसलिए जापानी युवतियां विदेशी पुरूषों से विवाह करने को प्राथमिकता देती हैं। इसी वजह से जापानी पुरूषों में भी विदेशी युवतियों से विवाह करने की दर तेजी से बढी है। दक्षिण कोरिया, फिलीपींस, थाईलैंड और वियतनाम में भी विदेशी विवाहों में पिछले एक दशक में जबर्दस्त वृद्धि दर्ज की गई है।

अमेरिका जैसे देश में श्वेत-अश्वेत के बीच विवाह संबंध अत्यंत सामान्य बात है और अमेरिकन स्त्री-पुरूष दुनिया के विभिन्न देशों के नागरिकों से विवाह कर रहे हैं। भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के हजारों युवक-युवतियां अमेरिकियों से विवाह कर रहे हैं। पश्चिमी समाज में विवाह प्रेम को स्थायित्व देने के लिए किया जाता है, जबकि पूर्वी देशों में जीवन के स्थायित्व के लिए विवाह किया जाता है। एक ऑनलाइन सर्वेक्षण में 52 प्रतिशत चीनियों ने यह राय जाहिर की। यूरोप के विभिन्न देशों के नागरिकों में आपस में प्रेम और विवाह करने की प्रवृत्ति यूरोपियन यूनियन बनने के बाद बढ़ गई है।

अंतर्राष्ट्रीय विवाह में बहुत से देशों में कानूनी दिक्कतें पेश आती हैं। अगर कानूनी बाधाओं से पार पा भी लिया जाए, तो सांस्कृतिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। धार्मिक और नैतिक संस्कार ऎसे विवाहों में आगे चलकर बहुत कटु वातावरण को जन्म दे सकते हैं। यह देखा गया है कि प्राय: सभी देशों में पुरूष-स्त्री से एकनिष्ठ प्रेम की मांग करते हैं किंतु मौका मिलने पर विवाहेत्तर संबंधों से गुरेज नहीं करते और स्त्री ऎसा कर ले, तो झट से तलाक दे देते हैं। जिन देशों में धार्मिक कट्टरपंथी ताकतें हावी रहती हैं, वहां के नागरिकों से प्रेम और विवाह भारी मुसीबतें खड़ी कर सकता है।

ग्लोबल हुए संत वेलेंटाइन
प्रेम के संत वेलेंटाइन भी ग्लोबल संत हो गए हैं। बाजार की आपाधापी में संत वेलेंटाइन का मानवतावादी प्रेम का संदेश कहीं पीछे चला गया है और मॉल संस्कृति हावी हो गई है। लेकिन इसी बाजार ने मनुष्य-मनुष्य के बीच सहयोग, सद्भावना और मानवीय प्रेम के एक नये संसार की असंख्य खिड़कियां खोल दी हैं, जहां लोग तमाम दकियानूसियों को दरकिनार करते हुए "विश्व ग्राम" में प्रेम की अपनी चाहतों के गुलशन खिला सकते हैं और दुनिया को सही मायनों में एक प्यार भरी दुनिया बना सकते हैं। इस नई दुनिया में पुरानी दुश्मनियां नहीं होंगी और अतीत की शत्रुताओं को प्रेम के बाणों से बींधकर एक नया इतिहास लिखने की कोशिशें की जाएंगी। आमीन!!!

डेली न्‍यूज़, जयपुर के रविवारीय परिशिष्‍ट 'हम लोग' में रविवार, 14 फरवरी, 2010 के 'प्रेम अंक' में प्रकाशित।

4 comments:

  1. वैश्वीकरण के इस दौर में यह लाज़मी है..हर समाज और संस्कृति की कुछ खूबियाँ है तो कुछ खामियाँ.

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  2. ''कविरा ये घर प्रेम का ............''
    बहुत बड़े परिप्रेक्ष में आपने प्रेम की व्याख्या की है ....
    सुखद लगा पढ़कर .

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  3. सीस उतारे भुइं धरे तब पैठेहि घर माहिँ ....फिर भी ग्लोबल हों रहा है प्रेम और संस्कृतियों को एक दूसरे में घुला रहा है ...यह बहुत सुखद है.

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