अरबी साहित्य के इतिहास में पहला और अब तक का अंतिम नोबल पुरस्कार मिस्त्र के नजीब महफूज को 1988 में मिला। लेकिन नजीब इस पुरस्कार से तीन दशक पहले ही अरबी भाषा के इतिहास में वो मुकाम बना चुके थे, जिसमें वे बाल्जाक, तोलस्तोय और चार्ल्स डिकेंस के समकक्ष नजर आते हैं। उनके उपन्यासों को लेकर माना जाता है कि आधुनिक अरबी में उपन्यास विधा की शुरूआत संभवत उन्होंने ही की है। उनके उपन्यासों पर अरबी में अनेक चर्चित फिल्मों का निर्माण हुआ है और उन्हें आधुनिक अरबी साहित्य का विश्व में सर्वश्रेष्ठ लेखक माना जाता है। हालांकि बाहरी विश्व में उनको नोबेल पुरस्कार मिलने के बाद ही पहचाना गया और दुनिया की कई भाषाओं में उनकी कृतियों का अनुवाद हुआ। नोबेल पुरस्कार मिलने की कई वजहों में से एक यह भी रही कि नजीब महफूज ने इस्लामिक जगत में सलमान रूश्दी के खिलाफ दिए गए फतवे की जबर्दस्त भर्त्सना की और 'सैटेनिक वर्सेज' के लिए रूश्दी की भी कडी आलोचना की। यद्यपि इसी कारण से उनकी कई कृतियों को मध्य-पूर्व के कई देशों में प्रतिबंधित भी कर दिया गया और उन पर जानलेवा हमले भी हुए। लेकिन इस साहसी लेखक ने अविचलित रहते हुए कट्टरपंथियों के आगे कभी घुटने नहीं टेके।
11 दिसंबर, 1911 को कैरो के एक उपनगर में निम्न मध्यवर्गीय परिवार में जन्में नजीब सात भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। बचपन में मां ने खूब पढने और संग्रहालय दिखाने के बहाने इतिहास से परिचय कराने का जो सिलसिला चलाया वह आगे चलकर साहित्य के संस्कारों में परिणत हुआ। प्रारंभिक शिक्षा के बाद दर्शनशास्त्र में स्नातकोत्तर करने पर पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए नजीब महफूज भी प्रशासनिक सेवा में चले गए। इस बीच उन्होंने ढेरों किताबें लिखीं, जिनमें उपन्यास, कहानियां, संस्मरण, इतिहास, वृतांत आदि शामिल हैं। नगीब अखबारों के लिए नियमित स्तंभ लिखते थे और उनके कई उपन्यास अखबारों में धारावाहिक प्रकाशित हुए। उन्होंने अनेक फिल्मों की पटकथा और कहानियां लिखीं, जो खासी प्रसिद्ध हुई। नजीब महफूज चाहते थे कि वे मिस्त्र का आधुनिक इतिहास उपन्यासों के रूप में लिखें, इसलिए प्रारंभ में उन्होंने 30 उपन्यासों की शृंखला पर काम करते हुए तीन उपन्यास लिखे, लेकिन बाद में इस परियोजना को बदल कर खुद को इतिहास के बजाय वर्तमान पर केंद्रित कर लिया। इस क्रम में उन्होंने एक उपन्यास त्रयी लिखी जो बेहद मशहूर हुई। इस त्रयी में नजीब ने 'पैलेस वाक', 'पैलेस ऑफ डिजायर' और 'शुगर स्ट्रीट' उपन्यास लिखे। इन उपन्यासों में प्रथम विश्वयुद्ध से लेकर 1950 तक तीन पीढियों का जीवंत इतिहास था। इस बीच सत्ता परिवर्तन से विचलित नगीब ने अपनी रचनाएं प्रकाशित करना बंद कर दिया और सात साल बाद प्रकाशन की दुनिया में वापस लौटै। इसके बाद उन्होंने 'चिटचैट ऑन द नील' उपन्यास लिखा, जो काफी लोकप्रिय हुआ । इस्लाम, यहूदी और ईसाई धर्म के विविध पक्षों की कडी आलोचना करने वाले उपन्यास 'चिल्ड्रेन ऑफ अवर ऎली' को सिवाय लेबनान के समूचे अरब जगत में प्रतिबंधित कर दिया गया और आरोप में कहा गया कि नजीब ने इन धर्मो का कथित तौर पर अपमान किया है। नजीब महफूज ने अपने बाद के तमाम उपन्यास और कहानियों के केंद्र में धर्म की पारंपरिक व्याख्या और आधुनिक विचारों को एक मंच पर लाने का प्रयास करते हुए यह सोच रखी है कि आधुनिक विचारों के साथ सामंजस्य बिठाए बिना किसी भी धार्मिक विश्वास को आगे ले जाना मुश्किल है। जब मिस्त्र ने इजराइल से अमरीका की साक्षी में कैंप डेविड शांति संधि पर हस्ताक्षर किए तो नजीब पहले लेखक थे, जिन्होंने उस संधि का समर्थन किया और पूरी अरब दुनिया से दुश्मनी मोल ली। इस वजह से उनकी किताबों को प्रतिबंध का भी सामना करना पडा, लेकिन वे इस सबसे बिल्कुल भी विचलित नहीं हुए।
मिस्त्र के बाल्जाक कहे जाने वाले नजीब महफूज ने हालांकि कभी मिस्त्र के बाहर की दुनिया नहीं देखी, लेकिन उनकी रचनाओं में आने वाले विचार बताते हैं कि वे कितनी बडी और महान वैश्विक सोच के लेखक हैं। उनकी रचनाओं में दुनिया के श्रेष्ठतम विचार समाहित हैं और यूरोपीय और आधुनिकतावादी विचारों से उनका साहित्य लबरेज है। अपने दृढ विचारों के कारण नजीब महफूज हमेशा अतिवादियों की हिटलिस्ट में रहे, लेकिन उन्होंने अपनी वैचारिक दृढता में कभी कमी नहीं आने दी। 30 अगस्त, 2006 को नजीब महफूज ने अंतिम सांस ली।
राजस्थान पत्रिका के रविवारीय परिशिष्ट में 21 फरवरी, 2010 को 'विश्व के साहित्यकार' स्तंभ में प्रकाशित।
राजस्थान पत्रिका के रविवारीय परिशिष्ट में 21 फरवरी, 2010 को 'विश्व के साहित्यकार' स्तंभ में प्रकाशित।
नगीब महफूज से परिचय कराने का आभार.
ReplyDeleteनगीब ने मिस्त्र से बाहर की दुनिया नहीं देखी ...लेकिन उनकी रचनाएँ बताती हैं कि वे कितनी बड़ी विश्विक सोच के मालिख है ...मनन कर रही हूँ इस पर ....
ReplyDeleteआभार ...!!
mumkin ho to unke likhe kuchh tukde bhi chipka deejiye
ReplyDeleteआपने इतने बड़े लेखक के बारे में लिखाकर बहुत अच्छा किया . .शुक्रिया
ReplyDeleteआपके इस पोस्ट ने 'नजीब मह्फूज' को पढ़ने की इच्छा जागृत कर दी है.
ReplyDelete..परिचय करने के लिए आभार.