ऐसा हरियल सावन जयपुर में कई बरस बाद आया है, जिसमें पूरा शहर लबालब हो रहा है। आषाढ़ में तरसती आंखों को दिली सुकून मिल रहा है और हर बार बादल को देखकर लगता है यह हमीं पर मेहरबान होकर बरसने वाला है। बावजूद तमाम टूटी-फूटी व्यवस्था के अरावली की मटमैली पहाड़ियों पर लहराती हरी लूगड़ी हर बाशिंदे की आंखों में भी हरापन भर रही है। किसी चौपड़ से देख लो या किसी इमारत पर जाकर, नाहरगढ़ से झालाना तक ऐसा हरा भरा नजारा देखने को कब से आंखें तरस रही थीं। सागर, मावठा और बीसलपुर में पानी आया तो लाखों कण्ठों ने परमात्मा का शुकराना अदा किया। जय हो इंद्र देव की जो इस नगर पर अपने आशीर्वाद की वर्षा की।
कवियों की क्या कहें यहां तो हर बाशिंदा कवि हो गया है। जब एक तरफ के आकाश पर काली घटाएं उमड़ घुमड़ कर उठती हैं तो लोगों के चेहरे इस कदर उल्लसित होते हैं कि अगर उनकी धड़कनों और बुदबुदाहट को सुना जाए तो पता चलेगा वे किसी ना किसी ‘राग मल्हार’ में मदमस्त हुए जा रहे हैं। नौजवान अपने प्रेमिल स्वप्नों की इमारत खड़ी कर रहे हैं, जिसमें अपने प्रिय के साथ बारिश में नहाने का कोई रूमानी सिनेमाई दृश्य रह रह कर तैरता रहता है। नर्म नाजुक अहसास बारिश में भीगकर रूई के फाहों की तरह उड़ते हुए बादलों के साथ प्रतियोगिता में दौड़े जा रहे हैं। ‘रिमझिम के गीत सावन गाए, गाए...।’
उम्रदराज लोगों के लिए यह महंगाई से राहत देने का जरिया बन गया है। यूं मन-मयूर तो उनका भी नाच रहा है लेकिन वो आयु बंधन की वजह से मन मसोस कर रह जाते हैं। उन्हें संतोष होता है बस गर्मागर्म पकौड़ों के साथ चाय की चुस्कियों से। शहर के हर गली-नुक्कड़ पर नमकीन-कचौरी-पकौड़ियों की दुकानों पर भारी भीड़ है। घरों में गृहिणियां रसोई में व्यस्त हैं और खुश्बुओं का सागर हिलोरें ले रहा है। कोई चिंता नहीं कि गीले कपड़े सूख नहीं पा रहे या कि सीलन के मारे तकलीफ हो रही है। भले ही सावन के झूले अब सिर्फ कल्पना में रह गए हों, लेकिन गृहिणियों के लिए यह बरखा के गीत गाने का मौसम है, लहरिया ओढ़ने और गाने के दिन हैं। ‘म्हारै लहरिया रा नौ सौ रुपिया रोकड़ा सा, म्हानै ल्या द्यो ल्या द्यो लहरियो सा।’ जिनके लिए शादी के बाद का यह पहला सावन है, उनके लिए यह आग लगाने वाला मौसम है, क्योंकि जयपुर की रिवायत है कि शादी के बाद पहलें सावन पति-पत्नी अलग रहेंगे। यही तो प्रेम की परीक्षा की ऋतु है। बारिश में ही तो पकता है प्रेम का शाश्वत फल। ‘रिमझिम बरसे बदरा मैं तेरे सपने देखूँ, मैं तेरे सपने देखूं।'
हवा में सराबोर सौंधी सौंधी महक जयपुर के आकाश में यूं नाच रही है जैसे गुलाबो। कई बरस बाद जयपुर के नागरिकों को पांचों इंद्रियों से बारिश का अनुभव हो रहा है। बारिश में लगातार नहाकर नाहरगढ़ का किला और जवान दिखाई दे रहा है। धाराधार बरसते पानी को देखना एक अद्वितीय अनुभव की तरह हमारे मन मस्तिष्क पर अंकित हो रहा है। बारिश में भीगने का सुख लेने वाले मदहोश होकर बाइक-स्कूटर-साइकिल पर या पैदल ही दौड़े जा रहे हैं। बारिश में भीगते हुए अमृतजल पीने से बड़ा सुख मां के आंचल में दूध पीना ही है। देखना, भीगना और सूंघ कर बारिश का मजा ले रहे लोगों में उन शहरियों को कैसे छोड़ दें जो बारिश के संगीत का आनंद ले रहे हैं। खिड़की के पास या बालकनी में कुर्सी डाल कर सावन का बरसता संगीत सुनने वालों से पूछिए, वो कितनी स्वर लहरियां एक साथ कितने बरस बाद सुन रहे हैं। बादलों की घड़घड़ाहट ऐसे लगती है जैसे इंद्रदेव आकाश में लगे स्पीकरों पर माइक टेस्टिंग कर रहे हों। बारिश का पहला आलाप यूं लगता है जैसे किशोरी अमोणकर ने आलाप लिया हो। पूरी लय और ताल में बरसती बारिश ऐसे लगती है जैसे बेगम अख्तर गा रही हों। रिमझिम बरसती है तो मेहदी हसन गाने लगते हैं और हद बेहद में कुमार गंधर्व। ‘आइये बारिशों का मौसम है...आज फरमाइशों का मौसम है।’
दिन-रात, सुबह-शाम-दोपहर, हर वक्त बरसती बारिश जयपुर के बाशिंदों को पागल किए जा रही है। हर एक का दिमाग सातवें आसमान पर है। पाचं साल तक सरकारी खर्चे पर हुई पूजा-अर्चना से तो इंद्र खुश नहीं हुए, अलबत्ता जयपुरवासियों की गुहार जरूर सुन ली। शहर के हालात इतने नाजुक हैं कि ‘डर है ना मार डाले, सावन का क्या ठिकाना।’ तालकटोरा में नौका विहार अब अतीत का हिस्सा है, लेकिन ऊलजलूल विकास ने ये हालात जरूर पैदा कर दिए हैं कि इस बारिश में जौहरी बाजार में कभी नाव चलती देखी जा सकेगी। हर कोई गा रहा है... 'बरखा रानी जरा जमके बरसो, मेरा दिल अभी भीग ना पाया जरा जोर से बरसो।’
वाह वाह क्या बारिश आई है । सावन का पूरा मजा दे दिया आपके लेख ने ।
ReplyDeleteसावन का महीना पवन करे शोर
जियरा रे झूमे ऐसे जैसे बनमा नाचे मोर ।
इस बार वर्षों बाद ही ऐसा बरसा है सावन गुलाबी नगरी में कि इसका रंग हरा हो गया है ...
ReplyDeleteईश्वर हमारे शहर पर ऐसा ही मेहरबान रहे ...!
‘म्हारै लहरिया रा नौ सौ रुपिया रोकड़ा सा, म्हानै ल्या द्यो ल्या द्यो लहरियो सा।’....................,
ReplyDeleteसावन ने राजस्थान का रुख किया है इसे पढ़कर हम भी भीग गए यहाँ बैठ बैठे ..... जयपुर तो वैसे ही गुलाबी था पहले से... उसपर हरियल बूटे ! वाह ! धरती ने धानी चूनर ओढ़ ली है तो बस उसे निहारने की खुशी अद्भुत है ।
काफी समय से अपने शहर जयपुर में नहीं हूँ। आपका लेख पढ़कर
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा। बीच में राजस्थानी के कुछ भावों ने मुझे सचमुच
सावन फुहारों में भिगो दिया.......शुक्रिया