Sunday 19 April, 2009

दो परदेसी दोस्त और उनके साथ बिताये पल


कुछ दोस्‍त जिंदगी में कभी कभी मिलते हैं और जिंदगी का हिस्‍सा हो जाते हैं। कहते तो ये हैं कि ‘परदेसियों से ना अंखियां मिलाना’, लेकिन कभी मिल जाए तो बहुत सुकून होता है। कुछ दिन पहले दो परदेसी दोस्‍तों से एकाध मुलाकात हुई और बातों का सिलसिला ऐसा चला कि एक गहरी दोस्‍ती ने जन्‍म लिया। एक आस्‍ट्रेलिया से है और एक अमेरिका से। पहले ये दोनों आपस में दोस्‍त बने और फिर हमारी मण्‍डली में दाखिल हुए। मैं बात कर रहा हूं आस्‍ट्रेलिया के डेनियल और अमेरिका की एलन की। डैनी चित्रकार है और एलन हिंदी की छात्रा के रूप में आयरिश और भारतीय सिनेमा का अध्‍ययन कर रही है। डैनी एक बार पर्यटक के रूप में जयपुर आए तो यहीं के होकर रह गये। पिछले तीन सालों से उनका और जयपुर का रिश्‍ता लगातार गहरा होता जा रहा है। उनकी मित्र मण्डली में सबसे पहले चित्रकार एकेश्‍वर जुडे और फिर यह सिलसिला चल निकला। आज जयपुर में डैनी के दोस्‍तों की तादाद सैंकडों में हैं और इनमें सिर्फ चित्रकार और बुद्धिजीवी ही नहीं, शहर के आटो चालक, रिक्‍शा चालक, फल बेचने वाले और अडोस पडोस के बहुत से लोग शामिल हैं, जिनसे डैनी का रोज वास्‍ता पडता है।
डैनी आस्‍ट्रलिया में स्‍पेनिश पढाते थे। यूं वे कला के विद्यार्थी रहे हैं और जयपुर में कलाकर्म ही कर रहे हैं। पोर्टेट बनाने में उनका कोई सानी नहीं। छोटे से लेकर पूरी दीवार के आकार के पोर्टट वे सहजता से बना लेते हैं और उनमें कला की तमाम खूबियों से लेकर उनके हाथ की कुशलता को सहज ही देखा जा सकता है। प्रयोग में भी वे पीछे नहीं रहते और विभिन्‍न तरह के प्रयोग करते रहते हैं। वे कई कला प्रदर्शनियों में भाग लेते रहे हैं और कई कलाशिविरों में भी अपना कौशल दिखा चुके हैं।


डैनी से एक दिन अचानक भाई रामकुमार सिंह के साथ मुलाकात हुई। उस वक्‍त डैनी की बहन आई हुई थी, वो हमें बहन से मिलाने ले गये। बातों का सिलसिला ऐसा चला कि हमें यही नहीं पता चला कि कब हम बेतकल्‍लुफ हो गए और नाचने गाने लगे, जिसे डैनी की बहन मैगी ने अपने कैमरे में कैद कर लिया। इस तरह मुलाकातों का एक सिलसिला गति पकडता रहा। अभी 14 अप्रेल को डैनी और उसके पांच मित्रों की एक सामूहिक कला प्रदर्शनी थी। उस दिन एलन से दूसरी मुलाकात हुई। पहले अमित कल्‍ला और हिमांशु व्‍यास की प्रदर्शनी में एलन से मुख्‍तसर सी मुलाकात हो चुकी थी। इस बार थोडी खुलकर बातें हुईं।
एलन आयरिश मूल की अमेरिकी युवती है। उसे भारत और भारतीय सिनेमा से गहरा लगाव है। हिंदी फिल्‍मों की वह जबर्दस्‍त प्रशंसक है। इसी लगाव के चलते उसने पी.एच.डी. के लिए विषय चुना-‘बंटवारे पर बनी आयरिश और भारतीय फिल्‍मों का तुलनात्‍मक अध्‍ययन’। उसके अध्‍ययन में नवें दशक के बाद का सिनेमा ही शामिल है, लेकिन उसने तमाम पुरानी फिल्‍में भी देख रखी हैं। यहां तक कि पाकिस्‍तान में बंटवारे पर बनी फिल्‍में भी उसने देखी हैं। एक दिन डैनी ने कहा कि वह 22 अप्रेल को छह महीने के लिए आस्‍ट्रेलिया जा रहा है, क्‍योंकि वीजा नियमों के कारण वह और नहीं रूक सकता। उधर एलन का भी कोर्स पूरा हो गया है औ उसे भी दो सप्‍ताह बाद जाना है। डैनी ने कहा कि वह हम तीन दोस्‍तों के साथ एक शाम गुजारना चाहता है। यानी मैं, एलन और रामकुमार के साथ।
पहले यह बता दूं कि एलन और डैनी की मुलाकात कैसे हुई। ये दोनों सलमान खान की निर्माणाधीन फिल्‍म ‘वीर’ के सैट पर मिले थे। दोनों को विदेशी होने कारण छोटे से रोल मिले थे। वहां हुई इनकी मुलाकात गहरी दोस्‍ती में बदल गई और दोस्‍ती का एक विशाल दायरा बनता गया। इसमें हम भी शामिल हो गए। अभी जोधपुर में एक कला शिविर में भाग लेकर डैनी लौटा तो उसके सीने पर स्‍वामी विवेकानंद का एक बैज था। मैंने उससे विवेकानंद के बारे में बात की, वह ज्‍यादा कुछ नहीं जानता था। इस बार की मुलाकात में मैंने डैनी को रोम्‍यां रौलां की लिखी विवेकानंद की जीवनी और स्‍वामी जी के चुनिंदा भाषणों की किताबें भेंट कीं। उसकी खुशी देखने लायक थी।



तो हम चार दोस्‍त एक शाम मिले। करीब तीन घण्‍टे तक खाने-पीने का दौर चला, जिसमें खुलकर ठहाके लगे, एक दूसरे की पसंद नापसंद वाली फिल्‍मों से लेकर विश्‍व सिनेमा तक की बातें हुई। एक मस्‍त और मजेदार शाम गुजरी। उस शाम बहुत सी बातें हुईं, जिन्‍हें मैं लिखना चाहता हूं, लेकिन फिलहाल इसे एक परिचयात्‍मक विवरण ही समझें, बाकी बातें विस्‍तार से कभी लिखूंगा। अभी तो यही चिंता खाए जा रही है कि इन दो अच्‍छे दोस्‍तों के बिना रहने की आदत डालनी पडेगी।

8 comments:

  1. दोस्ती कभी सीमाओं में नहीं बांधी जा सकती।

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  2. ....bandhan insaano ke liye hain....

    ...aur jo bandhan tod deta hai wo insaniyat se bhi upar uth jata hai...

    ...chahei wo dharm, jati, desh ,umr kisi ke bhi bandhan hoon...

    ..accha lekh !!

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  3. आपने अपने वृत्तांत को उस जगह लाकर छोड़ा है जहां से उसे आगे पढने की इच्छा बहुत तीव्र होने लगती है. यही एक लेखक का कौशल है कि अपने पाठक को प्यासा छोड़ दे. जल्दी लिखिए अगली कड़ी. मुझे बेसब्री से इंतज़ार है.

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  4. mera manna hai ki ma ke baad agar koi rishta hai to dosti ka apki ye dosti yoon hi bani rahe dost kaa paas yaa door rehna utna mahatav nahi rakhta jitna us dosti ki bhavna mahatav rakhti hai apka ye vritant bahut achha laga age bhi intjar rahega

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  5. prem G pehli baar apke blog par aaya hu. apki lekhni main ek bahut khoobsurat baat hai. vo ye ki apke lekh main ek ravangi hai. lekh ke khatam hone tak bani rehti hai. mujhe bahut ashi lagi. kher dosto ke bina zindgi katni mushkil hai.
    maine punjabi main dosti par ek rachna likhi hai "narazgi" agar kabhi mauka lage to padh dekhiyega.
    vijaymaudgill.blogspot.com

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  6. प्रेम भाई इतनी विविध बातें एक स्थान par पढ़ मज़ा आया .. डैनी वास्तव में अद्भुत मित्र है .. ! आतिश वाली पुस्तक के बारे में लिखने हेतु आभार ...! कमाल है दुनिया...
    आता रहूंगा..

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