शहीदो
मैं पूरे देश की ओर से
आपसे क्षमा चाहता हूँ
हमें माफ़ करना
हमारे भीतर आप जैसा
देश प्रेम का जज़्बा नहीं रहा
हमारे लिए देश
रगों में दौड़ने वाला लहू नहीं रहा
अंतराष्ट्रीय सीमाओं से आबद्ध
भूमि का एक टुकड़ा मात्र है देश
हमें माफ़ करना
हम भूल गये हैं
जन-गण-मन और
वंदे मातरम् का फ़र्क
नहीं जानते हम
किसने लिखा था कौनसा गीत
किसके लिए
हमें माफ़ करना
हमारे स्कूल-घर-दफ़्तरों में
आपकी तस्वीरों की जगह
संुदर द्दश्यावलियों
आधुनिक चित्रों और
फ़िल्मी चरित्रों ने ले ली है
हमें माफ़ करना
‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ गाते हुए
भले ही रुँध जाता होगा
लता मंगेशकर का गला
हमारी आँखों में तो कम्पन भी नहीं होता
हमें माफ़ करना
हम देशभक्ति के तराने
साल में सिर्फ़ दो बार सुनते हैं
हम पाँव पकड़कर क्षमा चाहतेे हैं
आपने जिन्हें विदेशी आक्रांता कहकर
भगा दिया था सात समुंदरों पार
उन्हीं के आगमन पर हमने
समुद्र से संसद तक
बिछा दिये हैं पलक-पाँवड़े
हमें माफ़ करना
हम परजीवी हो गये हैं
अपने पैरों पर खड़े रहने का
हमारे भीतर माद्दा नहीं रहा
हमारे घुटनों ने चूम ली है ज़मीन
और हाथ उठ गये हैं निराशा में आसमान की ओर
हमें माफ़ करना
आने वाली पीढ़ियों को
हम नहीं बता पायेंगे
बिस्मिल, भगतसिंह, अशफ़ाक़ उल्ला का नाम
हमें माफ़ करना
हमारे इरादे नेक नहीं हैं
हमें माफ़ करना
हम नहीं जानते
हम क्या कर रहे हैं
हमें माफ़ करना
हम यह देश
नहीं सँभाल पा रहे हैं
बहुत सटीक और मार्मिक माफ़ीनामा
ReplyDeletehttp://hariprasadsharma.blogspot.com/2010/03/blog-post_22.html
http://sharatkenaareecharitra.blogspot.com/2010/03/blog-post.html
आपका हाँथ तो जख्मी था ..यह पोस्ट किसने लिखी ?
ReplyDeleteब्लोगिंग जो न करवाए.. :-)
बहरहाल बढ़िया पोस्ट.
शाहजहांपुर एक बड़े वकील के साथ गया था. एक सज्जन शाहजहांपुर के भी साथ में थे. बातों बातों में मैंने पूछा कि आपको पता है कि बिस्मिल और अशफाक उल्ला खां साहब का घर कहां है? वह कोई उत्तर दे पाते इससे पहले ही वकील साहब ने कहा कि जरूरत भी क्या है जानने की. जिस देश के निवासियों की ऐसी सोच होगी उस देश का राष्ट्रीय चरित्र क्या होगा?
ReplyDeleteशहीदेआजम भगत सिंह ने कहा था -‘‘भारतीय मुक्ति संग्राम तब तक चलता रहेगा जब तक मुट्ठी भर शोषक लोग अपने फायदे के लिए आम जनता के श्रम को शोषण करते रहेंगे। शोषक चाहे ब्रिटिश हों या भारतीय।’’क्या कहीं भी यह भारतीय मुक्ति संग्राम अस्तित्व में है ?
ReplyDeleteदृष्टिकोण
www.drishtikon2009.blogspot.com
जिस देश में राष्ट्रीय पर्व पर विद्यालयों में होने वाले कार्यक्रमों तक में शहीदों को नहीं , शाहरुख़ और ऐश्वर्या को याद किया जाता हो , वहां आने वाली पीढ़ी में देशप्रेम और उसके लिए अपने आप को बलिदान कर दिए जाने का जज्बा कहाँ से आएगा .... और जो थोडा बहुत देशप्रेम बचा है ...सदनों में होने वाली उठापटक को देख कर जाता रहता है ..किसके लिए लड़ें ....क्यों लड़ें ...स्विस बैंक में जमा इनके धन और इनकी आरामदायक जिंदगी के लिए ...??
ReplyDeleteशहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले ,
ReplyDeleteवतन पर मरने वालों का यही बाक़ी निशां होगा .
गज़ब की रचना..हमारे नाकारेपन और स्वार्थ को हकीकत की रोशनी मे उघाडती हुई..खुद को भी अपराधियों की जमात मे खड़ा पाता हूँ..और क्या कहूँ
ReplyDelete