अपने ही पांवों पर कुल्हाड़ी मार रहा है शहर
इस शहर में कुछ सडक़ें ऐसी हैं, जो विकास और सुविधाओं के नाम पर नग्न कर दी गई हैं। पहले कभी इन सडक़ों पर हरे-भरे पेड़ों की लंबी कतारें हुआ करती थीं, जिनकी शीतल छांव में थके हारे लोग पसीना सुखाते थे, परिन्दे आशियाना बसाते थे और जिनके पत्ते जानवरों का भोजन बनते थे। आज इन सडक़ों पर दूर-दूर तक पेड़-पौधों के नामोनिशान नजर नहीं आते।
बढ़ते ट्रैफिक दबाव से निपटने का आसान उपाय था, सडक़ों को ज्यादा से ज्यादा चौड़ा करना। इसके लिए राह में आने वाले तमाम पेड़-पौधों की निर्ममतापूर्वक बलि दे दी गई। सीकर रोड पर बी.आर.टी.एस. के लिए सडक़ क्या चौड़ी हुई, बेजुबान दरख्तों को समूल नष्ट कर दिया गया। आज हरमाड़ा से लेकर चौमूं पुलिया, झोटवाड़ा ओवरब्रिज से चांदपोल, पानीपेच से रेलवे स्टेशन, चिंकारा कैंटीन से ट्रांसपोर्ट नगर, सांगानेरी गेट से लेकर जोरावर सिंह गेट, चांदपोल से गलता गेट, नारायण सिंह सर्किल से ट्रांसपोर्ट नगर, अजमेरी गेट से सीतापुरा, गवर्नमेंट हॉस्टल से पुरानी चुंगी, अम्बेडकर सर्किल से सोडाला थाना, समूचा बी-टू बाइपास, इंदिरा मार्केट से घाटगेट तक और समूची चारदीवारी में सिर्फ गिनती के पेड़ बचे हैं। इन रास्तों पर अगर कहीं हरे दरख्त दिखते भी हैं तो अधिकांश सडक़ किनारे की इमारतों की बाउंड्री में हैं। मुख्य सडक़ों पर हरियाली के नाम पर सजावटी पौधे हैं।
हाल ही में हुए एक अंतरराष्ट्रीय मानकीकरण में जयपुर सिर्फ इसलिए देश के श्रेष्ठ शहरों में पिछड़ गया, क्योंकि यहां बसावट की तुलना में हरियाली बेहद कम है। जहां दरख्त होने चाहिएं वहां अल्पायु सजावटी पौधे हैं। सार्वजनिक पार्कों में से अधिकांश में मंदिर बना दिए गए हैं, जो पूरी तरह गैर-कानूनी हैं। अखबारों में तस्वीरें छप रही हैं कि कैसे चोर दिन-दहाड़े ट्री-गार्ड उखाडक़र ले जा रहे हैं। हमारे शहर के पर्यावरण के साथ बरसों से यह खिलवाड़ हो रहा है और कोई कुछ नहीं बोलता। लोगों को याद होगा, कुछ ही बरस पहले बीसलपुर पाइप लाइन के लिए कैसे विशाल वृक्षों की बलि दी गई और जनता की गाढ़ी कमाई के करोड़ों रुपए पाइप लाइन में फूंक दिए गए। हमने पहले रामगढ़ को बर्बाद किया और अब बीसलपुर को। कूकस के बांध में तो पानी आए पच्चीस साल हो गए। इस बांध में पानी आने का जो रास्ता था उस पर बड़े-बड़े स्टार क्लास होटल और रिसोर्ट बन गए हैं। मावठे को सूखे कई बरस बीत गए। तालकटोरा क्रिकेट का मैदान है। सरस्वती कुण्ड के नदी एरिया से लेकर पहाड़ के साथ-साथ जलमहल तक चलते जाइए, पहाड़ तक पर कॉलोनियां बस गई हैं। कभी यहां का बरसाती पानी तालकटोरा और जलमहल तक जाता था। नाहरी का नाका के बांध में तो अब बंधा बस्ती ही बस गई है। कहां तक गिनें, एक अंतहीन सिलसिला है इस शहर की बर्बादी का।
एक दिन मैंने चिंकारा कैंटीन से सांगानेरी गेट आते हुए सडक़ पर लगे दरख्ïतों को गिनने की कोशिश की तो गिनती बीस-तीस से आगे नहीं जा सकी। इसमें भी आश्चर्य की बात यह कि बाईं तरफ यानी जी.पी.ओ. की तरफ वाले हिस्से में तो शायद पांच-सात पेड़ ही बचे हैं। अभी एक दिन पांच बत्ती पर देखा कि नरसिंह बाबा के मंदिर के बाहर का विशाल दरख्त काटा जा रहा था। यानी अब इस सडक़ पर बचे-खुचे दरख्तों की भी खैर नहीं।
यह उस शहर में हो रहा है जहां तीन सौ बरस से बगीची और बागों की परंपरा रही है। पुरोहित जी का बाग, हाथी बाबू का बाग, मां जी का बाग, नाटाणियों का बाग, सेठानी का बाग और विद्याधर का बाग जैसे बाग शहर की चारदीवारी से बाहर थे तो चारदीवारी में बगीचियों की भरमार थी। मसलन कायस्थों की बगीची, अमरनाथ की बगीची, सवाई पाव की बगीची, सिद्धेश्वर की बगीची, पतासी वालों की बगीची और लगभग हर रास्ते में ऐसी बगीचियां हुआ करती थीं। आज बगीचियों और बागों के बस नाम रह गए हैं, हर तरफ रिहाइशी और व्यावसायिक इमारतें बन गई हैं। इसीलिए इस शहर में जहां कभी दस-बीस फीट पर कुओं में पानी निकल आता था, आज पूरा शहर डार्क जोन में चला गया है। शहर में अब पानी सिर्फ विद्याधर नगर जैसे गिने-चुने इलाकों में बचा है, जहां सैंकड़ों ट्यूबवेलों से चौबीसों घण्टे पानी निकाला जा रहा है। इरादा साफ है, इन इलाकों को भी डार्क जोन में भेज दो। फिर लोग मजबूर होकर कोका कोला वालों का पानी खरीदेंगे, जो कालाडेरा को रसातल में ले जा रहा है।
हटा दिया रास्ते से हरा पेड़... : पांच बत्ती पर नरसिंह बाबा के मंदिर के पास इस हरे पेड़ को रातों रात उड़ा दिया गया। कहते हैं कि कुछ होटल, दुकान वालों के लिए बाधा पैदा करता यह पेड़ आंख की किरकिरी बना हुआ था, इसलिए इसका सफाया कर दिया गया।
फोटो: अशोक शर्मा
नृसिंहजी मंदिर वाले पेड के बारे में हमें बताया गया कि रात को कोई टक ने टक्कर मारकर गिरा दिया
ReplyDeleteवैसे आपकी बात में ज्यादा दम नजर आता है
आपकी चिंता जायज है
प्रकृति हमारे अत्याचारों का बदला ले रही है
मौसम ही सुहाना हुआ है
बरखा रानी अब भी नदारद सी ही है
सड़कों का सौन्दर्यीकरण किया तो गया है मगर सजावटी पौधों से ...नीम जैसे उपयोगी पौधों को लगाने पर इतना ध्यान नहीं दिया गया है ...
ReplyDeleteप्रकृति का इतना उलटफेर देख कर भी सबक नहीं ले रहे लोगों को क्या कहा जाए ...!!
jab bhi kisi sadak ko badhani ho shehar ko soundary karan karna ho to bali sab se pehle bedhari pedo ki hoti hai .sadake bhele hi vikas deti ho magar prakari to jeevan deti hai,
ReplyDeleteआज दिनांक 20 जुलाई 2010 के दैनिक जनसत्ता में संपादकीय पेज 6 पर समांतर स्तंभ में आपकी यह पोस्ट पांवों पर कुल्हाड़ी शीर्षक से प्रकाशित हुई है, बधाई। स्कैनबिम्ब देखने के लिए जनसत्ता पर क्लिक कर सकते हैं। कोई कठिनाई आने पर मुझसे संपर्क कर लें।
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