Sunday 18 July, 2010

सत्‍ता के मानवीयकरण की हिमायत

नोबल पुरस्कार के इतिहास में साहित्य में सर्वाधिक पुरस्कार जर्मन भाषा के हिस्से में हैं, लेकिन बहुत-से ऐसे जर्मनभाषी लेखकों को भी मिले, जो जर्मनी मूल के नहीं थे या अपने मूल वतन से विस्थापित होकर किसी अन्य देश में रहे। दक्षिण-पूर्वी यूरोप के छोटे-से देश बल्गारिया को साहित्य में एक मात्र नोबल पुरस्कार 1981 में एलियास कैनेटी को 1981 में मिला। 25 जुलाई, 1905 को बल्गारिया के डेन्यूब नदी किनारे एक छोटे से नगर में कैनेटी का जन्म हुआ। सफल यहूदी व्यापारी माता-पिता के सबसे बड़े बेटे कैनेटी के बचपन के मात्र छह साल बल्गारिया में गुजरे और फिर परिवार इंग्लैंड चला गया। लेकिन यहां आते ही कैनेटी के पिता का अचानक निधन हो गया और मां परिवार को लेकर विएना चली आईं। यहीं से कैनेटी की आरंभिक शिक्षा प्रारंभ हुई। मां ने जर्मन भाषा पर जोर दिया, जो उस माहौल में अनिवार्य था। कुछ साल विएना में रहने के बाद परिवार ज्यूरिख चला गया और वहां से अंततः फ्रेंकफर्ट, जहां कैनेटी ने हाई स्कूल पास की। कैनेटी ने ग्यारह बरस की उम्र में लिखना आरंभ कर दिया था और 16 साल की उम्र में तो पहला काव्यनाटक ‘जूनियस ब्रूटस’ प्रकाशित भी हो गया था। उच्च अध्ययन के लिए कैनेटी एक बार फिर विएना गए, जहां उनके लेखन की नई शुरुआत हुई। हालांकि कैनेटी दर्शनशास्त्र और साहित्य पढना चाहते थे, किंतु दाखिला लिया रसायन विज्ञान में। विएना के साहित्यिक हलकों में उनका परिचय का सिलसिला आगे बढ़ता गया और वे लिखने लगे। राजनैतिक रूप से उनका झुकाव वामपंथ की तरफ था, इसीलिए 1927 के मशहूर जुलाई विद्रोह में भी कैनेटी ने सक्रिय भाग लिया और गिरफ्तार हुए। ब्लैक फ्राइडे के नाम से मशहूर इस विद्रोह का कैनेटी की मानसिकता पर गहरा प्रभाव पड़ा, इसी को आधार बनाकर कालांतर में जब कैनेटी ने अपने लेखन में मुख्य स्थान दिया तो उनकी ख्याति अंतर्राष्ट्रीय हो गई। राजनीति और लेखन के साथ पढ़ाई चलती रही और 1929 में उन्होंने रसायनशास्त्र में पी.एच.डी. की डिग्री लेकर विज्ञान को अलविदा कह दिया। इसके बाद अमेरिकी लेखक अप्टॉन सिंक्लेयर के उपन्यासों का अनुवाद करते हुए और रंगमंच के लिए हास्य और प्रयोगधर्मी एब्सर्ड नाटक लिखते हुए कैनेटी ने अपनी विराट रचनात्मकता को बरकरार रखा।

अपने विद्यार्थी जीवन में कैनेटी एक बार बर्लिन गए, जहां बर्तोल्त ब्रेख्त और आइजैक बाबेल जैसे कई मशहूर नाटककारों से मुलाकात हुई। तभी कैनेटी ने तय कर लिया था कि वे मनुष्य के हास्यास्पद पागलपन को केंद्र में रखकर उपन्यासों की शृंखला लिखेंगे। करीब सात साल बाद इस विचार को ‘डाई ब्लैंगडंग’ उपन्यास में कैनेटी ने मूर्त रूप दिया। किस तरह राष्ट्रवाद के नाम पर लोगों को बरगला कर बेवकूफ बनाया जाता है और जनता भी धर्म और सत्ता की चकाचौंध में पगला जाती है, इसे ऐतिहासिक घटनाक्रमों और काल्पनिक कथा के माध्यम से कैनेटी ने विलक्षण ढंग से दर्शाया। यह उपन्यास अपने समय से पहले प्रकाशित हुआ, इसलिए तत्काल इस पर ध्यान नहीं गया, लेकिन दूसरे विश्‍वयुद्ध की समाप्ति के बाद और खास तौर पर अंग्रेजी में अनुवाद के बाद इसकी ख्याति विश्‍वव्यापी हुई। नाजी सरकार ने उपन्यास को प्रतिबंधित कर दिया था। बाद में अनुवाद होने पर टॉमस मान और आइरिश मर्डोक जैसे आलोचक साहित्यकारों ने इस उपन्यास को ‘क्राउड सायक्लोजी’ का विश्‍वसाहित्य का बेहतरीन उपन्यास बताया था।

जब नाजी जर्मनी ने ऑस्ट्रिया को अपने कब्जे में ले लिया तो कैनेटी देश छोड़कर पहले पेरिस और फिर इंग्लैंड चले गए और वहीं रहने लगे। नाटक, डायरी, यात्रा विवरण और निबंध लिखते हुए कैनेटी ने 1960 में अपनी एक और अत्यंत महत्वपूर्ण पुस्तक पूरी की, ‘क्राउड्स एण्ड पावर।’ इस पुस्तक के आरंभ में वे यहां से अपना विश्‍लेषण शुरु करते हैं कि भीड़ की मानसिकता आदिकाल से ही बचे रहने के लिए संघर्ष की होती है और किसी के भी बचने का सबसे आसान उपाय है दूसरे की हत्या कर देना। कैनेटी विस्तार से बताते हैं कि भीड़ क्यों और कैसे हिटलर जैसे नेतृत्व के आदेशों की पालना करती है। उनकी मान्यता है कि अगर नेतृत्व को मानवीय बनाया जाए तो भीड़ द्वारा होने वाले नरसंहारों से बचा जा सकता है। लेकिन कैनेटी यह नहीं बता पाते कि नेतृत्व को कैसे मानवीय बनाया जाए।

दरअसल कैनेटी के लेखन की केंद्रीय चिंता यही है कि सत्ता को कैसे अत्यधिक मानवीय बनाया जाए, ताकि अवाम के बीच भेदभाव ना पनप सकें और लोग सामूहिक रूप से एक दूसरे को मारने पर उतारू ना हो जाएं। और अपनी इस चिंता को वे जिस कलात्मक सौंदर्य के साथ व्यक्त करते हैं, वह विश्‍वसाहित्य में दुर्लभ है। मृत्यु और मानवीय संवेदना से ओतप्रोत समाज की कल्पना करते हुए कैनेटी काफ्का के साहित्य का अनूठा विश्‍लेषण करते हैं, जो ‘काफ्का’ज अदर ट्रायल: द लैटर्स टू फेलिस’ में सामने आता है। पत्र शैली में लिखी इस किताब में कैनेटी काफ्का के दुतरफा संघर्ष को बताते हैं, जिसमें सिर्फ दो विकल्प हैं, या तो मध्यवर्गीय आरामतलब जिंदगी के मजे लो अन्यथा वैयक्तिक निर्वासन भोगो। काफ्का जीवन और रचना दोनों में कैसे यह संघर्ष कर रहे थे, इसे कैनेटी ने काफ्का की प्रेमिका फेलिस के नाम काल्पनिक पत्रों के माध्यम से बताने का सराहनीय काम किया। ‘द कंसाइंस ऑफ द वर्ड’ में कैनेटी कहते हैं कि इस दुनिया को बचाने, नया अर्थ देने और अधिक मानवीय बनाने में लेखक की बहुत बड़ी भूमिका होती है। कैनेटी को नोबल पुरस्कार के अलावा विश्‍व साहित्य में करीब दर्जन भर प्रतिष्ठित पुरस्कारों और सम्मानों से समादृत किया गया। 13 अगस्त, 1994 को ज्यूरिख में मृत्यु से पूर्व एलियास कैनेटी ने तीन खण्डों में अपनी वृहद् आत्मकथा और यात्रा संस्मरणों की एक पुस्तक भी लिखी।

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