यायावरी और लेखनकला का लिखित इतिहास लगभग दो हजार साल पुराना है। विश्व इतिहास में हमें पहली किताब प्राचीन यूनान के यात्री पावसानियास की 'डेस्क्रिप्शन आफ ग्रीस’ मिलती है, जिसमें दूसरी शताब्दी के यूनान के बारे में प्राथमिक किस्म की जानकारियां मिलती हैं। पावसानियास के काम को साहित्य और पुरातत्व का मिलाजुला दस्तावेज माना जाता है। एक अनुमान के मुताबिक वह लीडिया का रहने वाला था और उसने प्राचीन यूनान ही नहीं रोम और मिश्र की भी यात्रा की थी। उसने मिश्र के पिरामिड, एम्मान का मंदिर, मैसिडोनिया में आरफियस का गुंबद, इटली से गुजरते हुए कंपानिया शहर और ट्राय शहर के अवशेष देखे। लिखित इतिहास में पावसानियास के बाद ईरान के नासिर खुसरो की ‘सफरनामा’ का भी खासा महत्व है। नासिर खुसरो का जन्म आज के अफगानिस्तान में सन 1004 में हुआ था। वह एक कवि, दार्शनिक और इस्लामी विद्वान था, जिसे गणित, चिकित्साशास्त्र और ज्योतिष-खगोलशास्त्र का भी अच्छा ज्ञान था। उसने मध्य-पूर्व और भारत तक की यात्रा की थी। सन 1046 से 1052 के बीच नासिर खुसरो ने करीब सात साल में उन्नीस हजार किमी की यात्रा की। उसने मक्का, कैरो, बगदाद, सीरिया, यरूशलम, लाहौर, मुल्तान और सिंध की यात्रा की। खुसरो के बाद स्पेन के कवि इब्न जुबैर का यात्रा वृतांत ‘द ट्रेवल्स आफ इब्न जुबैर’ मिलता है, जिसने सन 1183 से 1185 के बीच स्पेन से समुद्री यात्रा शुरू की और मिश्र, अलेक्जेंड्रिया, कैरो, मक्का, मदीना, यरूशलम, बगदाद और सिसिली की यात्रा की।
तेरहवीं शताब्दी के विश्वप्रसिद्ध यात्री मार्को पोलो से सब परिचित हैं। उसने लौटकर अपनी यात्रा का जो वृतांत पश्चिमी दुनिया के सामने रखा, उस पर लोग विश्वास भी नहीं करते थे। मार्को पोलो पहला पश्चिमी यात्री था, जिसने चीन की यात्रा की। वह चंगेज खां के पडपोते कुबला खान से मिला था और उसी ने पूर्व और पश्चिम के बीच व्यापार की शुरूआत की थी। मार्को पोलो के बाद इब्न बतूता की भारत यात्रा इतिहास में बहुत प्रसिद्ध है। मोरक्को के इस अदभुत यात्री ने अपनी जिंदगी के 65 बरसों में करीब तीस साल तक यात्राएं की। उसने ईराक, ईरान, अफ्रीका, मध्य एशिया, दक्षिण एशिया, चीन, भारत, बांग्लादेश, बर्मा, अल्जीरिया, माले, टयूनिशिया, सुमात्रा, फिलीपींस, मलेशिया, सीरिया, मिश्र, अरब के सभी देशों सहित तुर्की और पूर्वी यूरोप के कई देशों की यात्राएं की। इब्न बतूता के बाद इतिहास में अंग्रज लेखक रिचर्ड हकलेविट की अमरिका यात्रा का वर्णन भी अपना खास मुकाम रखता है। उसने उत्तरी अमेरिका और कई ब्रिटिश उपनिवेशों की खोजपूर्ण यात्राएं कीं और दो महत्वपूर्ण किताबें लिखीं। सत्रहवीं शताब्दी में फ्रांस के फ्रेंकोइस डी ला बूले ले गूज ने भारत, इर्रान, मिश्र, यूनान, मध्य पूर्व, इंग्लैंड, जर्मनी और अनेक यूरापीय देशों की यात्रा की और फ्रेंच में मशहूर यात्रा विवरण लिखा। भारत को लेकर लिखे गये यात्रा संस्मरणों में अफनासी निकीतीन की भारत यात्रा विश्वप्रसिद्ध है। इस रूसी यात्री ने भारत की सामाजिक, आर्थिक व्यवस्था और उस वक्त होने वाले युद्धों का रोचक और विश्वसनीय विवरण लिखा। उसी ने पहली बार पश्चिमी जगत को बताया कि भारत में हाथी जैसा जानवर होता है, जिस पर बैठकर युद्ध लडे जाते हैं।
इतिहास में यात्रा और लेखन को लेकर बात करें तो सैंकडों क्या हजारों लेखकों की बात की जा सकती है। और दरअसल देखा जाए तो लेखन अंतत: एक किस्म की यात्रा ही है। कालिदास का मेघदूत एक काव्यात्मक यात्रा संस्मरण ही तो है। कर्नल जेम्स टाड और एल.पी. टैस्सिटोरी का काम भी यात्रा विवरण ही है। भारत को लेकर अल बरूनी की किताब एक रोमांचक यात्रा संस्मरण है। लेकिन भारत के महानतम यायावरों की बात की जाए तो महापंडित राहुल सांकृत्यायन का नाम सबसे उपर आएगा। राहुल जी ने भारत के विभिन्न स्थ्ालों की ही नहीं श्रीलंका, तिब्बत, चीन और मध्य एशिया की बेहद लंबी और खेजपूर्ण पैदल यात्राएं की। वे अपनी यात्राओं में दुर्लभ और ऐतिहासिक महत्व के प्राचीन ग्रंथों को बर्बाद होने से बचने के लिए खच्चरों पर लादकर भारत लाए। राहुलजी ने देश के युवाओं को घुमक्कडी की शिक्षा देने के लिए कई किताबें लिखीं और कहा कि भारत के प्रत्येक सामर्थ्यवान और साहसी युवक को यायावर हो जाना चाहिए, तभी देश की उन्नति हो सकती है।
इतिहासप्रसिद्ध यायावरों की किताबों को आज इतिहास माना जाता है, लेकिन ये अपने समय के सर्वश्रेष्ठ यात्रा संस्मरण हैं। हम एक काल में यात्रा करते हैं और उसके बारे में लिखते हैं। आगे चलकर वही इतिहास हो जाता है। हम कहीं की भी यात्रा करें, अगर उस जगह के बारे में हमें पहले से कुछ जानकारी हो तो सच मानिए यात्रा का मजा दोगुना हो जाता है। वजह यह कि हम अपनी जानकारी से उस जगह का एक दिमागी नक्शा बना लेते हैं और फिर वहां जाकर जो देखते हैं तो एक दूसरी तस्वीर बनती है, वह आपको रोमांचित कर देती है।
लेखक और यायावरी का चोली दामन जैसा साथ होता है। बिना यायावरी के श्रेष्ठ लेखन संभव नहीं। एक दायरे में कैद होकर लिखना आसान है, लेकिन दुनिया के तमाम अदेखे अनजाने पक्षों को यायावरी करके ही लिखा जा सकता है। यायावरी लेखक की कल्पनाशीलता को नए आयाम प्रदान करती है। नई जगह देखने और समझने की जो सुविधा देती है, वह लेखक की खुराक होती है। इसीलिए आप पाएंगे कि लगभग हर लेखक यायावर होता है। लेकिन हर यायावर लेखक हो यह जरूरी नहीं। फिर भी इतिहास में हमें ऐसे यायावर लेखक मिलते हैं, जिन्होंने जिंदगी में एक ही किताब लिखी और वो भी यायावरी की। मराठी में विष्णुभटट गोडसे की ‘माझा प्रवास’ ऐसी ही किताब है। धार्मिक वृत्ति के गोडसे 1857 में महाराष्ट्र से पैदल उत्तर भारत की यात्रा के लिए चल पडे और गदर में फंस गए। लौटकर उन्होंने इसका रोचक विवरण लिखा। यह किताब अम़ृत लाल नागर को मिली और उन्होंने इसका हिंदी में अनुवाद किया ‘आंखों देखा गदर’। इस किताब से जाना जा सकता है कि धार्मिक पर्यढन भी किस कदर ऐतिहासिक महत्व का हो सकता है। इस लिहाज से अज्ञेय द्वारा कुंभ मेले को लेकर लिखे गये विवरण अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इसी प्रकार हिंदी और भारतीय भाषाओं में ऐसे हजारों उदाहरण मिलेंगे। अमृतलाल वेगड ने हिंदी में नर्मदा की यात्रा करके जो संस्मरण लिखे हैं, उनमें नर्मदा मैया के प्रति श्रद्धा और प्रकृति का मोहक विवरण पढकर मन तृप्त हो जाता है। कथाकार गोविंद मिश्र ने गोवर्धन परिक्रमा को लेकर एक शानदार पुस्तक लिखी है।
जीवन एक प्रकार से यात्रा ही है और हर पल हम सफर में रहते हैं। लेकिन इसका विवरण लिखना जितना सहज लगता है वैसा होता नहीं और उस यात्रा को लिखना जिस पर आप होकर आए हैं उसे तुरंत लिखना भी संभव नहीं होता। बहुत से ऐसे लेखक हैं जिन्होंने यात्रा के कई बरस बाद जाकर यात्रा वृतांत लिखा। हालांकि कुछ ऐसे लेखक भी होते हैं जो किसी जगह बिना गए ही विश्वसनीय यात्रा विवरण लिख देते हैं या दोस्तों को सुनाते हैं। यायावरी और लेखन का एक रोमांचक इतिहास है, जिसकी यात्रा किताबों को पढकर ही की जा सकती है।
तेरहवीं शताब्दी के विश्वप्रसिद्ध यात्री मार्को पोलो से सब परिचित हैं। उसने लौटकर अपनी यात्रा का जो वृतांत पश्चिमी दुनिया के सामने रखा, उस पर लोग विश्वास भी नहीं करते थे। मार्को पोलो पहला पश्चिमी यात्री था, जिसने चीन की यात्रा की। वह चंगेज खां के पडपोते कुबला खान से मिला था और उसी ने पूर्व और पश्चिम के बीच व्यापार की शुरूआत की थी। मार्को पोलो के बाद इब्न बतूता की भारत यात्रा इतिहास में बहुत प्रसिद्ध है। मोरक्को के इस अदभुत यात्री ने अपनी जिंदगी के 65 बरसों में करीब तीस साल तक यात्राएं की। उसने ईराक, ईरान, अफ्रीका, मध्य एशिया, दक्षिण एशिया, चीन, भारत, बांग्लादेश, बर्मा, अल्जीरिया, माले, टयूनिशिया, सुमात्रा, फिलीपींस, मलेशिया, सीरिया, मिश्र, अरब के सभी देशों सहित तुर्की और पूर्वी यूरोप के कई देशों की यात्राएं की। इब्न बतूता के बाद इतिहास में अंग्रज लेखक रिचर्ड हकलेविट की अमरिका यात्रा का वर्णन भी अपना खास मुकाम रखता है। उसने उत्तरी अमेरिका और कई ब्रिटिश उपनिवेशों की खोजपूर्ण यात्राएं कीं और दो महत्वपूर्ण किताबें लिखीं। सत्रहवीं शताब्दी में फ्रांस के फ्रेंकोइस डी ला बूले ले गूज ने भारत, इर्रान, मिश्र, यूनान, मध्य पूर्व, इंग्लैंड, जर्मनी और अनेक यूरापीय देशों की यात्रा की और फ्रेंच में मशहूर यात्रा विवरण लिखा। भारत को लेकर लिखे गये यात्रा संस्मरणों में अफनासी निकीतीन की भारत यात्रा विश्वप्रसिद्ध है। इस रूसी यात्री ने भारत की सामाजिक, आर्थिक व्यवस्था और उस वक्त होने वाले युद्धों का रोचक और विश्वसनीय विवरण लिखा। उसी ने पहली बार पश्चिमी जगत को बताया कि भारत में हाथी जैसा जानवर होता है, जिस पर बैठकर युद्ध लडे जाते हैं।
इतिहास में यात्रा और लेखन को लेकर बात करें तो सैंकडों क्या हजारों लेखकों की बात की जा सकती है। और दरअसल देखा जाए तो लेखन अंतत: एक किस्म की यात्रा ही है। कालिदास का मेघदूत एक काव्यात्मक यात्रा संस्मरण ही तो है। कर्नल जेम्स टाड और एल.पी. टैस्सिटोरी का काम भी यात्रा विवरण ही है। भारत को लेकर अल बरूनी की किताब एक रोमांचक यात्रा संस्मरण है। लेकिन भारत के महानतम यायावरों की बात की जाए तो महापंडित राहुल सांकृत्यायन का नाम सबसे उपर आएगा। राहुल जी ने भारत के विभिन्न स्थ्ालों की ही नहीं श्रीलंका, तिब्बत, चीन और मध्य एशिया की बेहद लंबी और खेजपूर्ण पैदल यात्राएं की। वे अपनी यात्राओं में दुर्लभ और ऐतिहासिक महत्व के प्राचीन ग्रंथों को बर्बाद होने से बचने के लिए खच्चरों पर लादकर भारत लाए। राहुलजी ने देश के युवाओं को घुमक्कडी की शिक्षा देने के लिए कई किताबें लिखीं और कहा कि भारत के प्रत्येक सामर्थ्यवान और साहसी युवक को यायावर हो जाना चाहिए, तभी देश की उन्नति हो सकती है।
इतिहासप्रसिद्ध यायावरों की किताबों को आज इतिहास माना जाता है, लेकिन ये अपने समय के सर्वश्रेष्ठ यात्रा संस्मरण हैं। हम एक काल में यात्रा करते हैं और उसके बारे में लिखते हैं। आगे चलकर वही इतिहास हो जाता है। हम कहीं की भी यात्रा करें, अगर उस जगह के बारे में हमें पहले से कुछ जानकारी हो तो सच मानिए यात्रा का मजा दोगुना हो जाता है। वजह यह कि हम अपनी जानकारी से उस जगह का एक दिमागी नक्शा बना लेते हैं और फिर वहां जाकर जो देखते हैं तो एक दूसरी तस्वीर बनती है, वह आपको रोमांचित कर देती है।
लेखक और यायावरी का चोली दामन जैसा साथ होता है। बिना यायावरी के श्रेष्ठ लेखन संभव नहीं। एक दायरे में कैद होकर लिखना आसान है, लेकिन दुनिया के तमाम अदेखे अनजाने पक्षों को यायावरी करके ही लिखा जा सकता है। यायावरी लेखक की कल्पनाशीलता को नए आयाम प्रदान करती है। नई जगह देखने और समझने की जो सुविधा देती है, वह लेखक की खुराक होती है। इसीलिए आप पाएंगे कि लगभग हर लेखक यायावर होता है। लेकिन हर यायावर लेखक हो यह जरूरी नहीं। फिर भी इतिहास में हमें ऐसे यायावर लेखक मिलते हैं, जिन्होंने जिंदगी में एक ही किताब लिखी और वो भी यायावरी की। मराठी में विष्णुभटट गोडसे की ‘माझा प्रवास’ ऐसी ही किताब है। धार्मिक वृत्ति के गोडसे 1857 में महाराष्ट्र से पैदल उत्तर भारत की यात्रा के लिए चल पडे और गदर में फंस गए। लौटकर उन्होंने इसका रोचक विवरण लिखा। यह किताब अम़ृत लाल नागर को मिली और उन्होंने इसका हिंदी में अनुवाद किया ‘आंखों देखा गदर’। इस किताब से जाना जा सकता है कि धार्मिक पर्यढन भी किस कदर ऐतिहासिक महत्व का हो सकता है। इस लिहाज से अज्ञेय द्वारा कुंभ मेले को लेकर लिखे गये विवरण अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इसी प्रकार हिंदी और भारतीय भाषाओं में ऐसे हजारों उदाहरण मिलेंगे। अमृतलाल वेगड ने हिंदी में नर्मदा की यात्रा करके जो संस्मरण लिखे हैं, उनमें नर्मदा मैया के प्रति श्रद्धा और प्रकृति का मोहक विवरण पढकर मन तृप्त हो जाता है। कथाकार गोविंद मिश्र ने गोवर्धन परिक्रमा को लेकर एक शानदार पुस्तक लिखी है।
जीवन एक प्रकार से यात्रा ही है और हर पल हम सफर में रहते हैं। लेकिन इसका विवरण लिखना जितना सहज लगता है वैसा होता नहीं और उस यात्रा को लिखना जिस पर आप होकर आए हैं उसे तुरंत लिखना भी संभव नहीं होता। बहुत से ऐसे लेखक हैं जिन्होंने यात्रा के कई बरस बाद जाकर यात्रा वृतांत लिखा। हालांकि कुछ ऐसे लेखक भी होते हैं जो किसी जगह बिना गए ही विश्वसनीय यात्रा विवरण लिख देते हैं या दोस्तों को सुनाते हैं। यायावरी और लेखन का एक रोमांचक इतिहास है, जिसकी यात्रा किताबों को पढकर ही की जा सकती है।
व्यक्ति यायावर न हो या रहा हो तो लेखक नही हो सकता।
ReplyDeleteaapke is lekh se bahut kuchh pata chala
ReplyDeleteमेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
यायावरी और लेखन पर प्रकाशित शोध पूर्ण आलेख अत्यंत सुन्दर एवं ज्ञानवर्धक है. आप इसी प्रकार विभिन्न विषयों पर रोचक तथा ज्ञानवर्धक जानकारी हिंदी चिटठा जगत के माध्यम से बाँट कर इसे समृद करते रहे. बहुत बधाई.
ReplyDeleteबहुत मेहनत से तैयार की गयी है यह पोस्ट .. अच्छी ज्ञानवर्द्धक पोस्ट है ये।
ReplyDeleteaapne sahi kaha hai lekhak ko yayavar hona hi chahiye tabhi uske lekhan me naya pan aayega
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