Sunday, 10 May 2009

विजय दान देथा 'बिज्जी' की कहानी नाहरगढ़



भारतीय साहित्य के गौरवशाली रचनाकार विजयदान देथा उर्फ ‘बिज्जी’ की कहानियों में एक तरफ लोक का जादुई आलोक है तो दूसरी तरफ सहज चिंतन और गहरे सामाजिक सरोकारों से ओतप्रोत एक सजग रचनाकार का कलात्मक एवं वैचारिक स्पर्श। भारतीय मेधा का उत्कृष्ट रूप अगर आपको देखना हो तो आपको बिज्जी की कहानियों से एक बार रूबरू होना ही पडे़गा। उनकी कहानियों पर पहेली, परिणति और दुविधा जैसी फिल्में बन चुकी हैं और हबीब तनवीर विश्विख्यात नाटक ‘चरणदास चोर’ दुनिया भर में प्रदर्शित कर चुके हैं। बिज्जी के कथालोक में ‘नाहरगढ’ एक अनूठी कहानी है, जो जानवरों के माध्यम से मानवीय जगत की बुराइयों और उसके तमाम अच्छे-बुरे पहलुओं की तरफ संकेत करती है।
एक बडे धनी सेठ ने लक्खी बंजारे से 108 मोहरों में एक खूंखार सिंधी कुत्ता खरीदा, जिसका नाम था नाहर। यथा नाम तथा गुण नाहर ने सेठ की दौलत की ऐसी रखवाली की कि चोर-डाकू सेठ की ड्योढी की तरफ आते हुए भी डरते। नाहर ने कइयों को यमलोक पहुंचा दिया। सेठ के तीन लडकों में सबसे बडा शादीशुदा था और उसकी बीवी गहनों की शौकीन। बीवी ने पति के ऐसे कान भरे कि एक दिन वह चोरों के साथ मिलकर पिता की सारी दौलत ले उड़ा। लड़के ने एक पखवाड़े तक नाहर को रोज आधी रात को चूरमा खिलाना शुरू किया और सोलहवीं रात खिलाते-खिलाते नाहर को प्यार से सहलाते हुए उसके मुंह पर तारों की छींकी बांध दी और उसके चारों पैर रस्सी से बांध दिये। बंधनों में जकडा़ नाहर कुछ ना कर सका और उसकी आंखों के सामने ही चोर और सेठ का बेटा सारी दौलत साफ कर गये।
सुबह उठकर सेठ-सेठानी ने जो देखा तो दोनों के होश उड गये। उन्होंने इसके लिए नाहर को ही दोषी ठहराया। सेठ ने नाहर को बहुत मारा, लेकिन वह यह सोचकर सह गया कि मालिक बिचारा तमाम दौलत लुट जाने से दुखी है। नाहर ने सेठ-सेठानी से अपनी सफाई में जो भी हो सकता था वो कहा लेकिन दोनों ने उसकी एक ना सुनी और उसे घर से बाहर कर दिया। नाहर को उन्होंने रोटी देना भी बंद कर दिया। नाहर को रोटी से ज्यादा इस बात की चिंता थी कि उस पर ही तोहमत लगाई गई और बेटे की करतूत पर सेठ को बिल्कुल भी गुस्सा नहीं आया। सेठ ने मानाकि नाहर की मिली भगत के बिना कोई परिंदा भी उसकी दौलत की तरफ पर नहीं मार सकता था। सात दिन तक नाहर को ना रोटी मिली ना पानी। वह दुबला गया और भूख के मारे चिंतन करते नाहर को जैसे एक नई दिशा मिल गई। सातवें दिन वह एकदम उछलकर खडा हो गया और पांच-सात बार जोर-जोर से भोंका। गुस्साए सेठ-सेठानी बाहर आए तो नाहर ने कहा, ‘कसम खाता हूं कि आइंदा किसी इंसान की चौखट नहीं चढूंगा और कोशिश करूंगा कि कोई कुत्ता इंसान के तलवे ना चाटे। अब तो इस दुखी कौम के उद्धार के लिए ही मेरी जिंदगी है।’
सेठ की ड्योढी छोडकर नाहर निकला तो कौम के कुत्तों से संवाद हुआ। नाहर ने सबको समझाया कि इंसान से अलग एक नई बस्ती बसाने का वक्त आ गया है, जहां वे अपनी अलग दुनिया में रहेंगे और एक आजाद जिंदगी जीएंगे। कुत्तों को पहले तो नाहर की बातें समझ ही नहीं आईं कि आखिर इंसान के बिना कुत्ते रह कैसे सकते हैं। लकडबग्घे उन्हें कभी भी मार डालेंगे। नाहर ने एक-एक कुत्ते को सौ-सौ बार समझाया तब जाकर कुछ के समझ में आया। नाहर की मेहनत से आखिरकार सूने जंगल में ग्यारह हजार कुत्तों की एक अलग बस्ती बसाई गई और नाहर के नाम पर उसका नामकरण किया गया ‘नाहरगढ’। कुत्तों की आदतों में हुए बदलाव और उनके बीच एकता की परख करने के लिए नाहर उन्हें गंगा स्नान कराने के लिए ले गया और वापसी में पाया कि कुत्ते सचमुच बदल गए हैं। कुत्तों की इस बस्ती का जल्द ही दूर-दूर तक डंका बजने लगा। इंसान डर के मारे सीधा हो गया। लकडबग्घे दूर भाग गये। नाहर ने एक आदेश निकाला कि हर गांव से दो-दो मोतबर आदमी नाहरगढ आकर बातचीत करें।
नाहर के बुलावे पर तीन सौ लोग आए, जिनमें सेठ और उसका लडका भी शामिल था। नाहर ने फरमान सुनाया कि अगले पांच साल तक इस बस्ती के तमाम कुत्तों के रहने, खाने-पीने और पहनने-ओढने का बंदोबस्त करना है। यह युगों की गुलामी का हर्जाना है। गेहूं का दलिया, गुड, घी और नारियल की गिरी, खाने के लिए बडे थाल और पचास टहलुए, जो हरदम सेवा में रहें। गांव वालों ने हिसाब-किताब लगाकर सब इंतजाम करने का वचन दिया। इंसानी हाथ और बुद्धि के कौशल से सबके लिए अलग-अलग झोपडियां बनीं और बीचोंबीच एक शानदार गढ बनाया गया। सरदी से बचाव के लिए सबकों ऊनी झूल दी गई। बस्ती का सारा काम सहज गति से चलने लगा। नाहर ने कौम के लिए एकनिष्ठ सहवास का जो नियम बनाया उससे पहले तो परेशानी हुई लेकिन आखिर सबको मानना पडा। हर पूनम की रात सभा जुटती जिसमें नाहर एक ही बात कहता कि इंसान के अलावा हमें किसी से खतरा नहीं है। इंसान इस बस्ती की तरक्की से जल रहा है और वो कोई ना कोई षडयंत्र रचने में लगा होगा, इसलिए हमेशा सावधान रहना।
नाहर को बस्ती के एकछत्र राजा होने के कारण कुछ अभिमान भी हो गया था। होशियार कुत्तों ने नाहर को खुश रखने के लिए अपनी बीवियों को उसके पास भेजा। नाहर पहले तो कडा रहा लेकिन जब नरम पडने लगा तो ऐसा पडा कि उसने कुत्ते-कुत्ते में फर्क करना शुरू कर दिया। सत्ता के अहंकार ने नाहर में दूसरी बुराइयां भी पैदा कर दीं, वह सुबह सोचता कि सूरज उग जाना चाहिए और थोडी देर में सूरज उग जाता। उसे लगने लगा कि दुनिया में जो कुछ हो रहा है, सब उसी की इच्छा और मर्जी के कारण होता है। बारिश, बादल, हवा, चांदनी, दिन, रात सब उसकी वजह से होते हैं।
अगले साल बस्ती की आबादी बीस गुना बढ गई तो पचास आदमियों की तादाद इतनी बडी आबादी के लिए झोंपडी बनाने के लिए कम पडने लगी। आदमी बढाने की बात नाहर को ठीक नहीं लगी, अगर ज्यादा आदमी हो गये तो वो बस्ती को बर्बाद कर देंगे। उसने नया आदेश निकाला कि एक परिवार में एक ही पिल्ला रहेगा, बाकी खाने के काम आएंगे और आदेश के साथ ही हजारों पिल्ले मारे गये। गलियों में पिल्लों के खून की नदियां बह गईं।
नाहर बस्ती को विश्‍वास दिलाता कि इंसान उनका दुश्‍मन नंबर एक है। भरोसेमंद भेदिये पक्की खबर लाए हैं कि एक लाख लक्कडबग्घों की फौज नाहरगढ पर हमला करने की तैयारी में है। बस्ती को एक रहना है। बस्ती के कुछ कुत्तों को इंसान ने तोड लिया है। ऐसे कुत्तों से होशियार रहना है। नाहरगढ की गलियों में मुनादी गूंजने लगी। हेलिया नामक कुत्ते के यह बात गले नहीं उतरी और उसने धीरे-धीरे कुत्तों को अपने साथ लेना शुरू कर दिया, हेलिया के समर्थक बढने लगे। नाहर को उसकी भनक लग चुकी थी। उसने तय किया कि मौका आने पर वह हेलिया को ठिकाने लगा देगा। और जल्द ही वह मौका आ गया।
एक सुबह एक बैलगाडी पर एक आदमी भींटोरा लेकर जा रहा था। नाहर की गर्जना से बस्ती इकट्ठी हो गई। नाहर ने कहाकि जिस चीज का डर था वह आ गई है। उसने कहाकि बैलगाडी पर काली मौत आ रही है, इसलिए सब जोर से भौंको। बैलगाडी के नजदीक आने पर हेलिया ने कहाकि यह मौत नहीं है, यह तो दरअसल झरबेरियों के झाड हैं, जिनसे इंसान बाड बनाते हैं, इससे कोई खतरा नहीं। नाहर को हेलिया का यह अंदाज नागवार गुजरा। उसने हेलिया को खूब भला-बुरा कहा। हेलिया कुछ कहता इससे पहले ही नाहर ने सबको जोर से भौंकने का आदेश दे दिया। कुत्ते भोंकते रहे और बैलगाडी चुपचाप चली गई। हेलिया ने कहाकि नाहरगढ के भाग्य से यह खतरा टल गया है फिर भी सावधान रहने की जरूरत है। नाहर ने कहाकि खतरा टला नहीं छुप गया है, रात को अचानक हमला हो सकता है। यह कहकर वह खतरे को देखने के लिए बैलगाडी की तरफ चल दिया।
बहुत दूर तक चलने के बाद नाहर को लगा कि कोई खास खतरा नहीं है, इसलिए वह बैलगाडी के नीचे चलने लगा। बैलगाडी के साथ चलते-चलते उसे लगा कि बैलगाडी उसी की वजह से चल रही है, जब वह रूकता तो बैलगाडी भी रूक जाती। उसे लगा बैलगाडी क्या यह सारी दुनिया उसी के भरोसे चल रही है। इस अहसास के साथ वह वापस लौट आया। चबूतरे पर खडे होकर उसने घोषणा की कि डरने की कोई जरूरत नहीं, मेरे होते हुए नाहरगढ पर कोई खतरा नहीं है। मेरे कारण वह बैलगाडी चलती रही, मैं रूकता तो वह भी रूक जाती। इस पर हेलिया ने कहा कि आप बस एक शंका का समाधान कर दें कि बैलगाडी यहां तक कैसे आई और अब जब आप यहां हैं, वह कैसे चल रही है। नाहर को लगा यही ठीक समय है और उसने हेलिया के खिलाफ ऐसा धुंआधार बोलना शुरू किया कि नाहर के विश्‍वासपात्र कुत्तों ने हेलिया और उसके समर्थकों के चिथडे-चिथडे कर डाले। जब चार-पांच कुत्ते हेलिया की खोपडी पर झपटकर उसका भेजा खाने लगे तो नाहर ने उन्हें रोक दिया, ‘खबरदार जो इस गद्दार का भेजा खाया, इसे खाकर तुम्हारा भी दिमाग खराब हो जाएगा।’ सब वहां से हट गये। वह खोपडी आज भी वहीं पडी है, खाने के लिए सबका मन ललचाता है, लेकिन किसी की हिम्मत नहीं होती। एक कडकती आवाज फिजाओं में गूंजती रहती है-खबरदार! खबरदार!!
बिज्जी की इस कहानी में अनेक स्तरों पर नए-नए अर्थ ध्वनित होते हैं। एक तरफ यह मनुष्य द्वारा अपने पालतू कुत्ते के प्रति बिना वजह अविश्‍वास करने के कारण उपजी परिस्थितियों में कुत्ते के मानसिक विचलन और मनुष्य जाति से ही मुक्ति की कथा है तो दूसरी तरफ नाहरगढ बस्ती के बहाने मनुष्य जगत की कमजोरियों का कुत्तों के माध्यम से प्रत्याख्यान है। संक्षेप में कहें तो किसी भी जाति की मुक्ति अकेले नहीं हो सकती, इसी बात को यह कहानी रेखांकित करती है। मुक्ति चाहे मजलूमों की हो या जानवरों की वह साहचर्य और सामूहिक रूप से ही संभव है। दरअसल कुत्ता यहां एक प्रतीक भर है जिसे आप किसी भी वंचित समुदाय से जोडकर देख सकते हैं, जो अज्ञान के अंधेरे में मुक्ति की कामना करता है।

कहानी अंश
खून के आंसू रोते नाहर बोला, ‘ऐसा क्या किया मैंने! बेटे के अकरम का गुस्सा मुझ पर निकालते हो! अपने बाप से घात करने वाला मुझे कब छोडता! पैसा तो आदमी के हाथ का मैल है। फिर कमाया जा सकता है। पर मेरा यह कलंक तो मरकर भी नहीं मिटेगा। मुझे आपसे यह उम्मीद नहीं थी।’
सेठानी के होशोहवास ने जवाब दे दिया था। ताली बजाकर जोर से हंसी। बोली, ‘तू क्या समझता है, अपने जाए बेटे से मुझे यह उम्मीद थी! हम इंसान तो पैसों के लिए एक-दूसरे का गला काट सकते हैं, पर तुझे तो पैसों का लोभ नहीं। तेरी नीयत क्यूं खराब हुई?’
वो सुबकते बोला, ‘इस तोहमत से तो अच्छा है आप मुझे मार डालें।’
ःःःःःःःःःःःःःः
सबका मांस नोचने के बाद जब चार-पांचेक कुत्ते हेलिया की खोपडी पर झपटे तो नाहर उन्हें होशियार करते दहाड़ा, ‘खबरदार! इस गद्दार का भेजा मत खाना, वरना तुम्हारा दिमाग भी बिगड़ जाएगा।यह बहुत खतरनाक छूत की बीमारी है, जो मौत से पहले ही मार डालती है। खबरदार, जो किसी ने इसकी ओर देखा तो।’

13 comments:

  1. bahut hi badiya kahani hai aur aapki smeeksh chand shabdon me hi kahani ka nichod prastut kar deti hai vijey dan dethaa ji ka poora parichay dete to achha tha

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  2. शुक्रिया आपका

    बिज्‍जी की यह कहानी पढवाने के लिए

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  4. बहुत अच्छी लगी कहानी
    शुक्रिया जनाब

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  5. कथा बहुत रोचक और जटिल है।

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  6. BAHUT HI DHAARDAAR KAHANEE HAI....
    DHANYWAAD AAPKA.....

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  7. Ek bahut hi achhi kahani padhne ko mili

    aapka bahut bahut dhanyvaad

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  8. नाहरगढ़ के बारे में अच्छी कहानी जानकारी के साथ . आभार.

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  9. बिज्जी की इस कहानी एक मुख्य संदेश यह भी है कि सत्ता पाकर व्यक्ति का आचरण भी बदल जाता है, एक वफादार, चरित्रवान व्यक्ति भी सत्ता पाकर कुत्ता हो जाता है, महत्वाकांक्षा नहीं होने पर ही वह सदचरित्र रह सकता है। पद और स्थान का से अप्रभावित व्यक्ति ही आदर्श हो सकता है।

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  10. बहुत ही अच्छी कहानी पढने को मिली

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  11. बहुत बढ़िया.....धन्यवाद उपलब्ध करवाने के लिए

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  12. वाह बिज्जी की लेखनी का जबाब नहीं ..

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  13. लाजवाब !!

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