पुर्तगाल का भारत से गहरा रिश्ता रहा है और आज भी हमारी प्रचलित भाषा में गमला, गोभी, मस्तूल, आलमारी और गोदाम जैसे बहुत से शब्द हैं, जो पुर्तगाली मूल के हैं। पुर्तगाली भाषा की गरिमा को वैश्विक स्तर पर पहली बार तब पहचाना गया जब 1998 में जोस सारामागू को पुर्तगाली भाषा का पहला और अभी तक का आखिरी नोबल पुरस्कार दिया गया। गरीबी में पले-बढ़े इस महान रचनाकार को जब नोबल पुरस्कार की सूचना मिली तो उनकी पहली प्रतिक्रिया थी कि मैं इस यश के लिए पैदा नहीं हुआ था। जिसने अपने बचपन के दिन खुले आकाश में पेड़ की छांव में सोकर बिताए हों और अपने ननिहाल में अनपढ़ नाना-नानी के साथ सुअर पालते हुए बचपन जीया हो उस बालक के लिए नोबल पुरस्कार की कल्पना उतनी ही कठिन है, जितनी सारामागो के उपन्यासों की काल्पनिक दुनिया। सारामागो को सिर्फ आर्थिक अभावों के कारण प्रारंभ में भाषा और साहित्य के बजाय मैकेनिकगिरी सीखनी पड़ी। दो साल तक कार मैकेनिक का काम करने के बाद जोस सारामागो ने अनुवाद का काम किया। शुरूआती दौर में उन्हें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, कई नौकरियां छूटी, लेकिन अंतत: वे पूर्णकालिक लेखक हो ही गए। कविताओं से लेखन की शुरूआत कर सारामागो ने कहानियां लिखते हुए उपन्यास की दुनिया में प्रवेश किया तो पुर्तगाली भाषा को जैसे अपनी जड़ों से जुड़ा अद्भुत किस्सागो मिल गया। फंतासी रचने और उसे समकालीन बना देने का जैसा कौशल जोस सारामागो के पास वह विश्व साहित्य में दुर्लभ है। इसीलिए आलोचक उन्हें आज की दुनिया के सबसे प्रतिभावान जीवित उपन्यासकार कहते हैं। एक करोड़ की आबादी वाले पुर्तगाल में उनकी एक किताब की बीस लाख प्रतियां बिक जाती हैं, यह उनकी लोकप्रियता का एक और सबूत है।
जोस सारामागो पहली बार 1986 में पुर्तगाली भाषा से बाहर ‘बाल्टासर एंड ब्लिमुण्डा’ उपन्यास का अनुवाद होने से चर्चा में आए। यह एक जबर्दस्त फंतासी से सराबोर प्रेमकथा थी, जिसे यूरोप और अमेरिका-लेटिन अमेरिकी देशों में बेहद पसंद किया गया और उनकी तुलना गेब्रिएल गार्सिया मारक्वेज से की जाने लगी। इसके बाद ‘स्टोन राफ्ट’ उपन्यास अंग्रेजी में आया तो तहलका मच गया। इस उपन्यास में उन्होंने कल्पना की थी कि आईबेरिया प्रायद्वीप यूरोप से अलग होकर अटलांटिक महासागर में चला जाता है और फिर शुरू होता है वहां के लोगों के जीवन का एक विचित्र संघर्ष, जिसमें जीवन और संबंधों को बचाना महत्वपूर्ण हो जाता है। इसी बरस उनका उपन्यास ‘द ईयर आफ द डेथ आफ रिकार्डो रीस’ भी प्रकाशित होकर चर्चित हुआ, जिस पर उन्हें दो प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाजा गया। उनकी जबर्दस्त कल्पना शक्ति ने ‘ब्लाइंडनेस’ उपन्यास में एक ऐसे देश को प्रस्तुत किया, जहां सभी नागरिक अंधता की महामारी के शिकार हो जाते हैं। इसी प्रकार ‘डेथ विद इंटरप्शन्स‘ में वे एक ऐसे देश की चर्चा करते हैं, जहां सात महीने तक किसी की मृत्यु नहीं होती और लोग इस बात को सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक और आध्यात्मिक नजरियों देखते हुए चर्चा करते हैं कि अगर यही सब चलता रहा तो देश का भविष्य क्या होगा। लेकिन जोस सारामागो को विवादास्पद बनाया ‘द गोस्पेल अकॉर्डिंग टू जीसस क्राइस्ट’ उपन्यास ने। इसमें उन्होंने ईसा मसीह को दैवी चरित्र के बजाय एक साधारण मानव की तरह प्रस्तुत किया। इससे ईसाई समुदाय खासकर रोमन कैथोलिक चर्च के अनुयायी जबर्दस्त रूप से खफा हो गए और इसका परिणाम यह हुआ कि सरकार ने उपन्यास पर प्रतिबंध लगा दिया और जोस को पुर्तगाल छोड़कर स्पेन में शरण लेनी पड़ी। अभी भी वे स्पेन में ही रहते हैं और उनके साथ रहती हैं उनकी आधिकारिक अनुवादक पत्नी पिलर डेल रियो। स्पेनिश पत्रकार रियो से जोस ने 1988 में विवाह किया था। इससे पहले 1944 में ईदा रीस से विवाह किया था, इस विवाह से उन्हें एक बेटा हुआ।
अपने लेखन में मार्क्सवादी वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाते हुए सारामागो ने पुर्तगाल के लिखित इतिहास को मानवीय दृष्टि से अपने उपन्यास ‘द हिस्ट्री ऑफ द सीज ऑफ लिस्बन’ उपन्यास में फिर से लिखा और अपार लोकप्रियता हासिल की। यह उपन्यास कुछ साल पहले हिंदी में भी ‘लिस्बन की घेराबंदी का इतिहास’ शीर्षक से प्रकाशित हो चुका है। उनकी कुछ कहानियां भी हिंदी में आई हैं और उम्मीद है जल्द ही उनके अन्य उपन्यास भी हिंदी में प्रकाशित होंगे। अपनी तरह के इस अद्भुत किस्सागो के तमाम उपन्यासों में एक ऐसी काल्पनिक दुनिया देखने को मिलती है, जिसे हम बहुत करीब से जानते हैं, लेकिन यह लेखक की खासियत है कि वह उस जाने-पहचाने जगत को एक नई अज्ञात दुनिया की तरह पेश करता है। और जब पाठक उस दुनिया में दाखिल हो जाता है तो उसे समझ में आने लगता है कि लेखक ने यह काल्पनिक दुनिया क्यों बनाई और आखिर इस तरह वह क्या दिखाना चाहता है। दरअसल जोस का अधिकांश लेखन आज के नागर समाज में अकेले पड़ते जा रहे मनुष्य को लेकर है। वह मनुष्य जो आधुनिकता के मोहपाश में फंसा है और मनुष्य की स्वाभाविक सामाजिक होने की प्रवृत्ति के चलते अपने आसपास के लोगों से, समाज से और इतिहास व संस्कृति से जुड़ना चाहता है। यह उस अकेले पड़ गए एक मनुष्य की नहीं बल्कि पूरे नागर समाज की नियति है, जिसे सर्जनात्मक कल्पनाशीलता के साथ डील करते हुए जोस सारामागो हमारे समय के महाकाव्यात्मक उपन्यासों की रचना करते हैं। उनकी चिंता की केंद्रीय धुरी यह है कि क्या वर्तमान आर्थिक-राजनैतिक ढांचे के बाहर कहीं भी मनुष्य को कोई गरिमामय और अर्थवान जगह मिल सकती है।
जोस सारामागो कथा के लिहाज से ही प्रयोग नहीं करते बल्कि वो तो वाक्य विन्यास, पैरेग्राफ संरचना, संवादों की प्रस्तुति और संज्ञा, सर्वनाम तक में बहुत से प्रयोग करते हैं। उनके उपन्यासों में पैरेग्राफ बहुत लंबे होते हैं, कई बार तो एक पैरेग्राफ कई पृष्ठों का होता है। वे संवाद दर्शाने के लिए भी पैरा नहीं तोड़ते, जो कि एक आम चलन है, जोस तो बस वक्ता बदलने पर पहले अक्षर को कैपिटल कर देते हैं। संज्ञा या सर्वनाम की जगह वे पात्र की चारित्रिक विशेषताओं का सहारा लेते हैं।
जोस सारामागो पिछले 40 सालों से कम्युनिस्ट पार्टी के सक्रिय सदस्य हैं और लगातार यूरोपियन यूनियन और मुद्रा कोष की नीतियों की खिलाफत करते रहे हैं। फिलीस्तीन और लेबनान में इजराइल की गतिविधियों को लेकर सारामागो ने एक लंबा और अत्यंत विवादास्पद लेख लिखा, जिसमें इजराइल की यह कहकर खासी निंदा की कि इजराइल सिर्फ यहूदियों से घृणा के कारण यह सब कर रहा है। हाल ही में उन्होंने यूरोपियन यूनियन के चुनावों में हिस्सा लिया और हार गए। लेखन और राजनीति में समान रूप से सक्रिय जोस सारामागो जैसे लेखक हमारे समय में हैं यह विश्व साहित्य का सौभाग्य है, क्योंकि आज के वक्त में सच कहने वाले लेखक दिनोंदिन कम होते जा रहे हैं।
जोस सारामागो पहली बार 1986 में पुर्तगाली भाषा से बाहर ‘बाल्टासर एंड ब्लिमुण्डा’ उपन्यास का अनुवाद होने से चर्चा में आए। यह एक जबर्दस्त फंतासी से सराबोर प्रेमकथा थी, जिसे यूरोप और अमेरिका-लेटिन अमेरिकी देशों में बेहद पसंद किया गया और उनकी तुलना गेब्रिएल गार्सिया मारक्वेज से की जाने लगी। इसके बाद ‘स्टोन राफ्ट’ उपन्यास अंग्रेजी में आया तो तहलका मच गया। इस उपन्यास में उन्होंने कल्पना की थी कि आईबेरिया प्रायद्वीप यूरोप से अलग होकर अटलांटिक महासागर में चला जाता है और फिर शुरू होता है वहां के लोगों के जीवन का एक विचित्र संघर्ष, जिसमें जीवन और संबंधों को बचाना महत्वपूर्ण हो जाता है। इसी बरस उनका उपन्यास ‘द ईयर आफ द डेथ आफ रिकार्डो रीस’ भी प्रकाशित होकर चर्चित हुआ, जिस पर उन्हें दो प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाजा गया। उनकी जबर्दस्त कल्पना शक्ति ने ‘ब्लाइंडनेस’ उपन्यास में एक ऐसे देश को प्रस्तुत किया, जहां सभी नागरिक अंधता की महामारी के शिकार हो जाते हैं। इसी प्रकार ‘डेथ विद इंटरप्शन्स‘ में वे एक ऐसे देश की चर्चा करते हैं, जहां सात महीने तक किसी की मृत्यु नहीं होती और लोग इस बात को सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक और आध्यात्मिक नजरियों देखते हुए चर्चा करते हैं कि अगर यही सब चलता रहा तो देश का भविष्य क्या होगा। लेकिन जोस सारामागो को विवादास्पद बनाया ‘द गोस्पेल अकॉर्डिंग टू जीसस क्राइस्ट’ उपन्यास ने। इसमें उन्होंने ईसा मसीह को दैवी चरित्र के बजाय एक साधारण मानव की तरह प्रस्तुत किया। इससे ईसाई समुदाय खासकर रोमन कैथोलिक चर्च के अनुयायी जबर्दस्त रूप से खफा हो गए और इसका परिणाम यह हुआ कि सरकार ने उपन्यास पर प्रतिबंध लगा दिया और जोस को पुर्तगाल छोड़कर स्पेन में शरण लेनी पड़ी। अभी भी वे स्पेन में ही रहते हैं और उनके साथ रहती हैं उनकी आधिकारिक अनुवादक पत्नी पिलर डेल रियो। स्पेनिश पत्रकार रियो से जोस ने 1988 में विवाह किया था। इससे पहले 1944 में ईदा रीस से विवाह किया था, इस विवाह से उन्हें एक बेटा हुआ।
अपने लेखन में मार्क्सवादी वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाते हुए सारामागो ने पुर्तगाल के लिखित इतिहास को मानवीय दृष्टि से अपने उपन्यास ‘द हिस्ट्री ऑफ द सीज ऑफ लिस्बन’ उपन्यास में फिर से लिखा और अपार लोकप्रियता हासिल की। यह उपन्यास कुछ साल पहले हिंदी में भी ‘लिस्बन की घेराबंदी का इतिहास’ शीर्षक से प्रकाशित हो चुका है। उनकी कुछ कहानियां भी हिंदी में आई हैं और उम्मीद है जल्द ही उनके अन्य उपन्यास भी हिंदी में प्रकाशित होंगे। अपनी तरह के इस अद्भुत किस्सागो के तमाम उपन्यासों में एक ऐसी काल्पनिक दुनिया देखने को मिलती है, जिसे हम बहुत करीब से जानते हैं, लेकिन यह लेखक की खासियत है कि वह उस जाने-पहचाने जगत को एक नई अज्ञात दुनिया की तरह पेश करता है। और जब पाठक उस दुनिया में दाखिल हो जाता है तो उसे समझ में आने लगता है कि लेखक ने यह काल्पनिक दुनिया क्यों बनाई और आखिर इस तरह वह क्या दिखाना चाहता है। दरअसल जोस का अधिकांश लेखन आज के नागर समाज में अकेले पड़ते जा रहे मनुष्य को लेकर है। वह मनुष्य जो आधुनिकता के मोहपाश में फंसा है और मनुष्य की स्वाभाविक सामाजिक होने की प्रवृत्ति के चलते अपने आसपास के लोगों से, समाज से और इतिहास व संस्कृति से जुड़ना चाहता है। यह उस अकेले पड़ गए एक मनुष्य की नहीं बल्कि पूरे नागर समाज की नियति है, जिसे सर्जनात्मक कल्पनाशीलता के साथ डील करते हुए जोस सारामागो हमारे समय के महाकाव्यात्मक उपन्यासों की रचना करते हैं। उनकी चिंता की केंद्रीय धुरी यह है कि क्या वर्तमान आर्थिक-राजनैतिक ढांचे के बाहर कहीं भी मनुष्य को कोई गरिमामय और अर्थवान जगह मिल सकती है।
जोस सारामागो कथा के लिहाज से ही प्रयोग नहीं करते बल्कि वो तो वाक्य विन्यास, पैरेग्राफ संरचना, संवादों की प्रस्तुति और संज्ञा, सर्वनाम तक में बहुत से प्रयोग करते हैं। उनके उपन्यासों में पैरेग्राफ बहुत लंबे होते हैं, कई बार तो एक पैरेग्राफ कई पृष्ठों का होता है। वे संवाद दर्शाने के लिए भी पैरा नहीं तोड़ते, जो कि एक आम चलन है, जोस तो बस वक्ता बदलने पर पहले अक्षर को कैपिटल कर देते हैं। संज्ञा या सर्वनाम की जगह वे पात्र की चारित्रिक विशेषताओं का सहारा लेते हैं।
जोस सारामागो पिछले 40 सालों से कम्युनिस्ट पार्टी के सक्रिय सदस्य हैं और लगातार यूरोपियन यूनियन और मुद्रा कोष की नीतियों की खिलाफत करते रहे हैं। फिलीस्तीन और लेबनान में इजराइल की गतिविधियों को लेकर सारामागो ने एक लंबा और अत्यंत विवादास्पद लेख लिखा, जिसमें इजराइल की यह कहकर खासी निंदा की कि इजराइल सिर्फ यहूदियों से घृणा के कारण यह सब कर रहा है। हाल ही में उन्होंने यूरोपियन यूनियन के चुनावों में हिस्सा लिया और हार गए। लेखन और राजनीति में समान रूप से सक्रिय जोस सारामागो जैसे लेखक हमारे समय में हैं यह विश्व साहित्य का सौभाग्य है, क्योंकि आज के वक्त में सच कहने वाले लेखक दिनोंदिन कम होते जा रहे हैं।
ज़रूरी तथ्य
जन्म – 16 नवंबर, 1922 को एक भूमिहीन किसान परिवार में
शिक्षा – स्नातक
पेशा – कार मैकेनिक से शुरू होकर पूर्णकालिक लेखन तक पहुंचा
राष्ट्रीयता – पुर्तगाली
पुरस्कार – पुर्तगाली पैन क्लब अवार्ड, इंडिपेंडेंट फॉरेन फिक्शन अवार्ड और 1998 में नोबल पुरस्कार
मुख्य कृतियां – कुल करीब पचास कृतियां, जिसमें तीन कविता संग्रह, अठारह किताबें कहानी-उपन्यास की, एक डायरी, सात निबंध संग्रह, पांच नाटक संग्रह और एक दर्जन के करीब अन्य पुस्तकें प्रकाशित।
जन्म – 16 नवंबर, 1922 को एक भूमिहीन किसान परिवार में
शिक्षा – स्नातक
पेशा – कार मैकेनिक से शुरू होकर पूर्णकालिक लेखन तक पहुंचा
राष्ट्रीयता – पुर्तगाली
पुरस्कार – पुर्तगाली पैन क्लब अवार्ड, इंडिपेंडेंट फॉरेन फिक्शन अवार्ड और 1998 में नोबल पुरस्कार
मुख्य कृतियां – कुल करीब पचास कृतियां, जिसमें तीन कविता संग्रह, अठारह किताबें कहानी-उपन्यास की, एक डायरी, सात निबंध संग्रह, पांच नाटक संग्रह और एक दर्जन के करीब अन्य पुस्तकें प्रकाशित।
जोस सारागामो की काल्पनिक दुनिया ...अच्छा परिचय..!!
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