हिंदी और राजस्थानी के सुप्रसिद्ध जनकवि हरीश भादाणी जी का आज तड़के बीकानेर में निधन हो गया। 11 जून, 1933 को जन्मे हरीश भादाणी जी की लोकप्रियता इतनी जबर्दस्त थी कि हजारों लोगों को उनके गीत कंठस्थ हैं और विभिन्न जनांदलनों में बरसों से गाये जा रहे हैं। 'बोल मजूरा हल्ला बोल' और 'रोटी नाम सत है' जैसे कई गीत जगप्रसिद्ध हैं। उनकी कविता की बीस से अधिक पुस्तकें हिंदी और राजस्थानी में प्रकाशित हुईं। उनके परिवार में एक पुत्र और तीन पुत्रियां हैं। उनकी बड़ी बेटी सरला माहेश्वरी दो बार पश्चिम बंगाल से राज्यसभा की सांसद रह चुकी हैं।
भादाणी जी पिछले कई महीनों से अस्वस्थ चल रहे थे। वे कैंसर से पीडि़त थे। दो दिन पूर्व ही वे कोलकाता में अपनी दोहित्री के विवाह समारोह से लौटे थे। उनकी लोकप्रियता का आलम यह है कि बीकानेर शहर में आप किसी रिक्शा या तांगे वाले से उनका पता पूछकर उनके घर जा सकते हैं।
इनके पिता संन्यासी हो गए थे। उस वक्त हरीश जी बहुत छोटे थे। सामंती परिवार में जन्मे हरीश जी ने जनता के दुख दर्द को गले लगाया और एक-एक कर सात पुश्तैनी हवेलियों को बेचने के बाद एक छोटे से घर में रहने लगे। साहित्य और समाज को पूरी तरह समर्पित इस महान कवि के गीत सदियों तक अवाम के दिलोदिमाग में गूंजते रहेंगे। हरीश जी खुद बहुत अच्छा गाते थे। उनके गीतों की कई कैसेट और सीडी निकली हैं। उन्होंने कुछ वक्त मुंबइया फिल्मी दुनिया में भी गुजारा। कई मशहूर गीतकारों ने उन्हें आशीर्वाद दिया और उनके लिखे गीत अपने नाम से फिल्मों में चला दिये। 1976 में आनंद शंकर के संगीत निर्देशन में उनका लिखा और मुकेश की आवाज में गाया गया फिल्म 'आरंभ' का गीत 'सभी सुख दूर से गुजरें गुजरते ही चले जाएं' लोकप्रिय हुआ। फिल्मी दुनिया में उनके नाम से बस यही गीत बचा है, बाकी गीत बड़े गीतकारों के नाम चले गए। यह गीत मेरे विशेष आग्रह पर भाई युनूस खान ने रेडियोवाणी पर लगाया है। आप इस गीत को यहां सुन सकते हैं। हरीश जी ने कभी उन गीतकारों के नाम नहीं बताए, बस हंसकर टाल जाते थे।
मुझे व्यक्तिगत रूप से उनका 'रेत है रेत' बहुत पसंद है।
रेत है रेत बिफर जाएगी
कुछ नहीं प्यास का समंदर है
ज़िन्दगी पांव-पांव जाएगी
धूप उफने है इस कलेजे पर
हाथ मत डाल ये जलाएगी
इसने निगले हैं कई लस्कर
ये कई और निगल जाएगी
न छलावे दिखा तू पानी के
जमीं आकाश तोड़ लाएगी
उठी गांवों से ये ख़म खाकर
एक आंधी सी शहर जाएगी
आंख की किरकिरी नहीं है ये
झांक लो झील नज़र आएगी
सुबह भीजी है लड़के मौसम से
सींच कर सांस दिन उगाएगी
कांच अब क्या हरीश मांजे है
रोशनी रेत में नहाएगी
इसे मत छेड़ पसर जाएगी
रेत है रेत बिफर जाएगी
इसके अलावा मुझे उनका 'रेत में नहाया है मन' भी बहुत भाता है।
रेत में नहाया है मन !
आग ऊपर से, आँच नीचे से
वो धुँआए कभी, झलमलाती जगे
वो पिघलती रहे, बुदबुदाती बहे
इन तटों पर कभी धार के बीच में
डूब-डूब तिर आया है मन
रेत में नहाया है मन !
घास सपनों सी, बेल अपनों सी
साँस के सूत में सात सुर गूँथ कर
भैरवी में कभी, साध केदारा
गूंगी घाटी में, सूने धारों पर
एक आसन बिछाया है मन
रेत में नहाया है मन !
आँधियाँ काँख में, आसमाँ आँख में
धूप की पगरखी, ताँबई, अंगरखी
होठ आखर रचे, शोर जैसे मचे
देख हिरनी लजी साथ चलने सजी
इस दूर तक निभाया है मन
रेत में नहाया है मन !
jankavi ko naman.
ReplyDeleteharish bhdani ji jan se jude huye kavi the. ve hum sabke priy kavi hai. rajasthan ka harek kavi unse aatmiyata mahsoos karta hai. bhadani ji ka chale jana ek bahut bada shunya hai.
ReplyDeleteजनकवि हरीश भादानी जी को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनकी रचनाओं को नमन ..!!
ReplyDeleteहरीश भदानी जी को हृदय से श्रद्धांजलि . उनकी इतनी सुंदर अभिव्यक्तियों एवं त्याग पूर्ण जीवन के लिए शत शत नमन !!
ReplyDeleteभादानी जी सही मायनों में जनकवि कहलाने के हकदार थे. यह राजस्थान का दुर्भाग्य है कि उत्कृष्ट लेखनी के धनी को वैसा सम्मान नहीं मिला जिसके वे सचमुच लायक थे. उनकी कलम से मरूभूमि के जीवन का दर्द फूट पड़ता था. राजस्थान, राजस्थानी भाषा और राजस्थानी लोगों को उन पर गर्व है. भादानी जी पर इस लेख के लिए आभार.
ReplyDeleteनमस्कार,
ReplyDeleteभदानी जी के बारे में इतना कुछ लिखने और जानकारी देने के लिए धन्यवाद् , भदानी जी को मेरा शत शत नमन ! भदानी जी सचमुच जनकवि थे एक अच्छे इंसान थे और बीकानेर की शान थे!