Saturday, 17 October 2009

रोशनी के रंग हजार





रोशनी और अंधकार के बिना इस सृष्टि में कुछ भी संभव नहीं होता। अंधेरा था इसलिए रोशनी का जन्म हुआ। कह सकते हैं कि रोशनी अंधकार की बेटी है यानी उजाला तम का पुत्र है। चित्रकला में कहा जाता है कि सफेद कोई रंग नहीं है, वह रंगों की अनुपस्थिति से उपजी रिक्तता है। इस प्रकार रोशनी अंधकार की अनुपस्थिति है लेकिन रिक्तता नहीं, मानव समाज के लिए वह अंधकार से पैदा होने वाली रिक्तता की पूरक है। विज्ञान कहता है कि रोशनी इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन यानी विद्युतचुंबकीय विकिरण है। लेकिन भारतीय मनीषा ने ईसा से छह सौ बरस पहले कह दिया था कि यह सृष्टि जिन पंचतत्वों से बनी है उसमें अग्नि बहुत महत्वपूर्ण है। अग्निरूपी इस रोशनी की मनुष्य सभ्यता में लाखों बरसों से प्रतिष्ठा रही है, देश-धर्म के बंधनों से बहुत ऊंचा स्थान रहा है रोशनी का। हर जाति, मजहब, देश, काल में रोशनी को पवित्र माना गया है तो इसीलिए कि रोशनी से मनुष्य का रिश्ता जन्‍म से शुरू होता है और गर्भावस्था के तम से मुक्त होने और रोशन दुनिया में आने की कामना उसे रोशनी के हजार रंगों की ओर लिए चलती है। कहने को रोशनी के सिर्फ सात रंग होते हैं, लेकिन यह मनुष्य ही है जिसने उसे हजारों आयाम दे दिए हैं। इंसान के लिए रोशनी अब सिर्फ दिन के उजाले और रात में काम आने वाली रोशनी भर नहीं, बल्कि जिंदगी के हर हिस्से में रोशनी फैला देने से है।

रोशनी का इतिहास
विज्ञान में रोशनी को पहले यह माना जाता था कि प्रकाश की संरचना पदार्थ जैसी है, जिसे आगे चलकर आइंस्टीन तक आते आते पूरी तरह नकार दिया गया। इस परंपरा में आदि मुस्लिम वैज्ञानिक इब्न अल हसैन के अलावा देकार्त, न्यूटन, रॉबर्ट हुक और थॉमस यंग की खोजों को नहीं भूला जा सकता। अब विज्ञान कहता है कि रोशनी एक प्रवाहमान चीज है। लेकिन सांस्कृतिक दृष्टिकोण से देखें तो भारत में दीपावली का त्यौहार जिस तरह भगवान राम के अयोध्या आगमन को लेकर मनाया जाता है, उसी तरह दुनिया भर में दीपोत्सव को लेकर अनेक कथाएं प्रचलित हैं, और लगभग सभी धर्मों और संस्कृतियों में रोशनी का उत्सव साल में एक बार जरूर मनाया जाता है। मसलन ईसाई समुदाय क्रिसमस को दीपावली की तरह मनाता है, इस्लाम में पैगंबर मोहम्मद साहब के जन्मदिन यानी बारावफात को चराग रोशन किये जाते हैं, सिक्ख समुदाय में गुरूनानक जन्मदिवस पर रोशनी सजाई जाती है, महावीर स्वामी की जयंती पर जैन और महात्मा बुद्ध की जयंती पर बौद्ध धर्मावलंबी अपने घर और पूजास्थलों को रोशन करते हैं। पारसी तो हैं ही अग्निपूजक। वैसे लगभग सभी धर्मों में पूजाघरों में दीपक जलाना या शमा रोशन करना प्रतिदिन का रिवाज है। मंदिर, मस्जिद, जिनालय, चैत्यालय में दीया और गिरजाघर में शमा रोशन करना वस्तुत: रोशनी की आराधना ही है। और इसके पीछे है मनुष्य की वह आदिम समझ जिसके चलते उसने प्रकृति की सबसे ताकतवर चीजों में अग्नि को सबसे उच्च स्थान दिया। जब पहली बार मनुष्य ने अग्नि का रौद्र रूप देखा होगा, फिर वो चाहे ज्वालामुखी से निकली हो, आकाश से बरसी हो या पेड़-पत्थररों के टकराने से पैदा हुई हो, तभी उसके प्रति भय मिश्रित श्रद्धा का भाव पैदा हुआ होगा। यही आगे चलकर दीपक या शमा जलाने में बदल गया। मानव सभ्य्ता का इतिहास रोशनी का इतिहास है, जिसमें येन केन प्रकारेण अंधकार से मुक्त होने और रोशन दुनिया बसाने की चाहत छुपी हुई है, ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’।

रोशनी का दर्शन
सभ्यता के प्रारंभ से ही रोशनी मनुष्य के चिंतन का केंद्र रही है, इसीलिए रोशनी अपने भौतिक अर्थ और अभिप्राय: से आगे चलकर मनुष्य जीवन को सांगोपांग रूप से प्रकाशमान करने के व्यापक और विस्तृत अर्थ में तब्दील हो गई है। मानव समाज को कैसे एक ऐसी रोशन दुनिया बनाया जाए जिसमें किसी भी प्रकार का अंधकार ना हो, यह चिंतन सदियों से चला आ रहा है। भारतीय दर्शन परंपरा ने पहली बार रोशनी को इतने व्यापक और बहुलतावादी दृष्टिकोण से देखा और संपूर्ण सृष्टि को प्रकाशमान करने की परिकल्पना की। सबसे पहले सांख्य और वैशेषिक परंपरा के दार्शनिकों ने प्रकृति के मूल तत्वों पर चिंतन करते हुए प्रकाश को जीवन का महत्वपूर्ण कारक माना। महात्मा बुद्ध के अनुयायियों और जैन मुनियों ने इस परंपरा को समृद्ध करते हुए मनुष्य समाज को संपूर्णता में प्रकाशमान बनाने को लेकर मौलिक चिंतन किया, जिससे बहुत से नैतिक और सहज मानवीय मूल्यों की व्यापक परिकल्पना संभव हुई। इस प्रकार का प्रकाशमान चिंतन लगभग सभी धर्मों में हुआ और एक किस्म की वैश्विक सभ्य मानव समाज की सृष्टि के लिए रोशन खयालों की दुनिया का विस्तार हुआ।

हर तरफ रोशन हो दुनिया
आज के मानव समाज को हर तरफ रोशनी चाहिए, सिर्फ घरों की बिजली नहीं, लोगों के दिमाग भी रोशन होने चाहिए। शिक्षा की रोशनी हर ओर फैले, धार्मिक, राष्ट्रवादी और जातिवादी कट्टरता का अंधकार हटे, अंधविश्वास का तमस छंटे, समानता का प्रकाश फैले, मनुष्य जीवन के तमाम अंधकार दूर हों। दुनिया के सारे दीपोत्सव यही कामना करते हैं।
यूं दुनिया के विभिन्नि हिस्सों में मनाए जाने वाले लगभग सभी दीपोत्सव कृषक परंपरा से जुड़े हैं यानी फसल पकने के बाद के उत्सव हैं जिसमें नवान्न के साथ व्यक्ति और समुदाय की प्रगति की कामना जुड़ी हुई है। इस प्रकार देखा जाए तो यह दुनिया में किसी भी मनुष्य के भूखा ना रहने की कामना और स्वस्‍थ मानव समाज की परिकल्‍पना से जुड़ा दीपकामना का उत्सव है। आज के किसानों के हालात देखकर क्या हम एक बार फिर उस किसान के बारे में सोच सकते हैं जो बहुत बुरी हालत में है, आत्महत्या करने को मजबूर है। क्यों किसान के बेटे बंदूक उठा रहे हैं और क्यों खुशियों के पटाखों की जगह आतंक के खौफनाक धमाके हर ओर सुनाई दे रहे हैं। इन हालात में एक दीपक उनके नाम भी रोशन किया जाए, जो हमसे बिछुड़े और उनके नाम भी जो राह भटक कर अंधकार की राह जा रहे हैं। हर मजहब में जलने वाला दीपक मनुष्य के दिल और दिमागों को रोशन करे, इसी सोच के साथ सही मायनों में शुभ होगा दीपोत्सव।

सांध्य रवि ने कहा
मेरा साथ देगा कौन
सुनकर जगत सारा
रह गया निरूत्तर मौन
एक माटी के दीये ने कहा
नम्रता के साथ
जितना हो सकेगा
मैं करूंगा नाथ
रवींद नाथ टैगौर



यह आलेख जयपुर से प्रकाशित डेली न्‍यूज़ के रविवारीय 'हम लोग' की टॉप स्‍टोरी के रूप में 11 अक्‍टूबर, 2009 को प्रकाशित हुआ। चित्र गूगल से साभार।

6 comments:

  1. सुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
    दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
    खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
    दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!

    -समीर लाल 'समीर'

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  2. बहुत ज्ञानवर्द्धन हुआ !!
    पल पल सुनहरे फूल खिले , कभी न हो कांटों का सामना !
    जिंदगी आपकी खुशियों से भरी रहे , दीपावली पर हमारी यही शुभकामना !!

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  3. बहुत बढिया पोस्ट लिखी है।आभार।

    दीपावली के शुभ अवसर पर आपको और आपके परिवार को शुभकामनाएं

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  4. रोशनी के महापर्व पर रौशन प्रविष्टि ...
    दिवाली की हार्दिक शुभकामनायें ..!!

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  5. dewali k moqa per ye ek achha mazmoon he.

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  6. अच्छा लिखा आपने
    रोशनी से प्रभावित हो किसी शख्स ने काली सियाही को रोशनाई नाम दिया-यानि अज्ञान के अंधकार को मिटाने वाली
    श्याम सखा श्याम

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