Sunday, 3 January 2010

कविता : होटल के इस कंबल में


जब भी किसी होटल में ठहरता हूं तो स्‍नानघर या ड्रेसिंग टेबल के आईने पर चिपकी बिंदियां उस कमरे को घर बना देती हैं। अगर किसी होटल में यह सब ना हो तो लगता है, यह होटल कम चलता है या यहां साफ-सफाई का खास खयाल रखा जाता है। राजेश जोशी ने जयपुर के स्‍वीट ड्रीम होटल में एक शानदार कविता लिखी थी। ऐसा किसी भी कवि के साथ हो सकता है, कविता कभी भी और कहीं भी सूझ सकती है।
दिसंबर, 2005 की एक सुबह दिल्‍ली के एक होटल में सुबह की दूसरी पारी की नींद से जागते हुए जो वाकया घटा, उसने इस कविता को जन्‍म दिया। अब तक इस कविता को मैंने तीन जगह पढ़ा और तीनों बार ही इस पर खासी दाद मिली। पहली बार कराची की कल्‍चर स्‍ट्रीट पर, दूसरी बार माउण्‍ट आबू के शरद समारोह में और अभी 1 जनवरी, 2009 को जयपुर में एक काव्‍य गोष्‍ठी में। हमेशा की तरह मैं इस कविता को लेकर भी कुछ सशंकित हूं। पाठक और मित्रगण बताएं कि कैसी है यह कविता।

न जाने किसका है यह
नर्म, रेशमी, लंबा, सुनहरा बाल
जो होटल के इस कंबल में
मेरे चेहरे और कपड़ों में उलझ गया है

बहुत आहिस्‍ता से
सुलझाया है मैंने इसे
ताकि टूटे नहीं
एक बार टूटे हुए को
दोबारा तोड़ना कोई अच्‍छी बात नहीं

इस बाल की रंगत
और खुश्‍बू बताती है
यह ज़रूर किसी दुल्‍हन का होगा
तो क्‍या यह कंबल
किसी प्रेम का साक्षी रहा है

इस सर्द सुबह में
एक अकेले पुरुष को
कितना गर्म अहसास दे गया है
यह नर्म, रेशमी, लंबा, सुनहरा बाल

इस बाल का इकबाल बुलंद रहे
उस दुल्‍हन की मुहब्‍बत बुलंद रहे

8 comments:

  1. achchi hai kavita....us dulhan ki mohabbat buland rahe...aameen.

    ReplyDelete
  2. two lines are good 'tute hue ko doobara torna acha nahi.

    ReplyDelete
  3. टूटे हुए को तोडना दुबारा ठीक नहीं ....
    ऐसी नाजुक मिजाजी आपकी कि केश के दुबारा टूटने की आशंका से दुखी हुए ...और उसकी मुहब्बत के लिए दुआ कर बैठे ....!!

    कुछ कविता से इतर .....सीसे पर लगी बिंदिया, कम्बल पर टूटा बाल , कैसे होटल में रुकते हैं जहाँ सफाई को कोई इंतजाम नहीं ....:)

    ReplyDelete
  4. aapki kavita bahut sunder hai . prem par bahut hai par dampatya men prem par yah bahut khoobsoorat kavita hai . isake saath hi aapko apki pahali kavita pustak ke liye dheron badhayiyan .

    ReplyDelete
  5. Kavita kahi bhi aur kabhi sujh sakti hai.

    ReplyDelete
  6. wonderful poem..jaisee nazar waisaa nazariyaa..!
    aur vanee geet ji ke liye - lekhak 5 star me ruk sakte hain kya jahan bahut safai mile..shaayad aapne bhee mazaak kiya hai tomain bhee....

    ReplyDelete
  7. जब मुहब्बत होती है कुछ न कुछ, कहीं न कहीं टूट ही जाता है। सलीक़े से संभालकर नहीं रखते लोग अपनी मुहब्बतों को। यहाँ वहाँ कचरे की तरह फैली मुहब्बत की सफाई की मांग करने लगे हैं मुहब्बत वाले। @दुश्यंत जी_
    साफ-सफाई तो सस्ते लोग भी रखते हैं भाई !
    मैंने भी मज़ात किया.....

    ReplyDelete