Saturday 30 January, 2010

अनुभवों का महामेला

जयपुर में पांच साल से होने वाला अंतर्राष्ट्रीय साहित्य उत्सव अब नई उंचाइयां छूने लगा है और जयपुर के पर्यटन उद्योग के साथ कदमताल करते हुए जयपुर की नई पहचान बन चुका है। चार साल पहले जब यह उत्सव शुरु हुआ था, तब किसी ने यह कल्पना भी नहीं की थी कि फिल्मी सितारों और अंग्रेजी तथा विदेशी लेखकों मुख्‍यत: विक्रम सेठ, सलमान रुश्‍दी, शोभा डे जैसे ख्यातनाम लोगों की चकाचौंध से लबरेज जयपुर इंटरनेशनल लिटरेचर फेस्टिवल आगे चलकर इस रेगिस्तानी राजधानी को साहित्य के केंद्र में ले आएगा।

नगाड़ो की ताल और शंखनाद के साथ 21 जनवरी, 2010 की सुबह खुशगवार मौसम में डीएससी जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल का शुभारम्भ हुआ। मशहूर अंग्रेजी लेखक विलियम डैलरिंपल, गुलजार, अभिनेता राहुल बोस और कई देशी- विदेशी लेखकों की मौजूदगी में साहित्योत्सव का आगाज हुआ। विलियम डैलरिंपल ने 2006 से चले आ रहे उत्सव की मुख्य बातों का जिक्र करते हुए इस विश्‍व के अनूठे साहित्य उत्सवों में से एक बताया। नमिता गोखले ने साहित्योत्सव के प्रमुख सत्रों की जानकारी दी।

इस बार इस आयोजन में दलित लेखन को लेकर दो विशेष सत्र रखे गए, जिनमें लेखक कांचा इलैया ने जन विवेक, उनकी उपेक्षा, दलितों और अछूतों से जुड़ी सोच, भ्रांतियों, हिंदू होने की गलत विचारधारा जैसे मुद्दे पर बात की। उन्होंने हिंदूवाद को आत्मिक फासीवाद करार दिया। हिंदी लेखक ओम प्रकाश वाल्मिकी ने साहित्योत्सव के 5वें वश में दलित लेखन पर ध्यान दिए जाने पर आभार जताया। मराठी, तेलगु और दक्षिण भाषाओं में इस साहित्य में रचे जाने की बात करते हुए उन्होंने साहित्य के भी दलित होने का प्रश्‍न उठाया। पी. सिवकामी ने हरिजनों के योगदान की उपेक्षा, हरिजन शब्द का अर्थ गैर दलितों की पिटी-पिटाई सोच और रंगभेद पर बात की। अजय नावरिया ने ‘अब और नहीं’ सत्र में शिरकत करते हुए दलित लेखन के मूल प्रश्‍नों को रेखांकित किया। पंजाबी दलित लेखन पर एक विशेष सत्र आयोजित किया गया। भारतीय दलित लेखन को लेकर हिंदी की पहली द्विभाषी ऑनलाइन पत्रिका ‘प्रतिलिपि’ ने अपना केंद्रित अंक भी इस अवसर पर जारी किया।

इस बार के साहित्योत्सव में पड़ौसी मुल्कों के साथ संबंधों पर चर्चा करने के लिए पाकिस्तान, श्रीलंका से भी लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता आए। पहली बार सिंधी भाषा को लेकर एक विशेष सत्र में चर्चा हुई, जिसमें पाकिस्तान से भी लेखक आए। हिंदी, राजस्थानी, उर्दू और संस्कृत साहित्य के भी सत्र हुए, जिनसे एक भारतीयता का अहसास हुआ। हालांकि उर्दू साहित्य से सिर्फ शीन. काफ. निजाम की शिरकत के कारण उर्दू वालों की थोड़ी नाराजगी भी रही। स्थानीय लेखकों में इस बात को लेकर खासी चर्चा रही कि पिछले साल विक्रम सेठ के सार्वजनिक मंच पर शराब पीने को लेकर विवाद खड़ा करने वाला दैनिक भास्कर अखबार इस दफा भाषा शृंखला का आयोजक बन गया।

इस विराट आयोजन में भाग लेने वाले नामी गिरामी लेखकों में नोबल पुरस्कार से सम्मानित कवि वोल शोयिंका का आगमन मुख्य आकर्षण रहा। उन्होंने अपनी रचनात्मक यात्रा के बारे में बात करते हुए कहानी कहने की कला, अपनी किताब के प्रकाशन और नोबेल पुरस्कार से जुड़े अनुभवों को सबके साथ साझा किया। फिल्मी हस्तियों में ओम पुरी, जावेद अख्तर, शबाना आजमी, गिरीश कर्नाड, प्रसून जोशी आदि ने शिरकत की। ओम पुरी ने कर्नाड के नाटक ‘तुगलक’ के अंशों का पाठ किया, वहीं उनकी पत्नी नंदिता ने ओम पुरी पर लिखी अपनी चर्चित पुस्तक के अंश पढ़े। गुलजार, जावेद अख्तर और प्रसून जोशी ने कविता पाठ किया। शबाना आजमी ने अपनी मां की पुस्तक के अंश सुनाए।

इस साहित्योत्सव की सबसे खूबसूरत बात यह है कि यहां लेखक खुद अपने पाठकों से मुखातिब होता है। वह रचना पाठ करता है, पाठकों के सवालों के जवाब देता है और पाठकों व प्रशंसकों के बीच एक सामान्य व्यक्ति की तरह रहता है। कोई छोटा या बड़ा नहीं होता, सब एक साथ भोजन करते हैं और किसी को वीआईपी नहीं समझा जाता। पाठक अपने प्रिय लेखक या कलाकार के साथ बातचीत करने के साथ फोटो भी खिंचवा सकते हैं।

राष्ट्रीय व अंतर्राष्‍ट्रीय ख्यातिप्राप्त सैंकड़ों लेखकों-कलाकारों का यह महामेला पांच दिन तक चलता है, जिसमें साहित्य के अलावा इतिहास, भाषा, संस्कृति, कला, सिनेमा, क्रिकेट से लेकर जीवन के विविध पक्षों पर बात होती है। रोज कई किस्म के सांस्कृतिक आयोजन भाग लेने वालों का ज्ञानवर्द्धन और मनोरंजन करते हैं। नाटक, नृत्य, संगीत, सिनेमा, चित्रकला और साहित्य का यह कुंभ छोटी काशी कहे जाने वाले जयपुर का महत्वपूर्ण वार्षिक आयोजन बन गया है। स्थानीय लेखक इस बात की शिकायत जरूर करते हैं कि इसमें अंग्रेजी का वर्चस्व है और भारतीय भाषाओं को कम महत्व दिया जाता है।

यह आलेख 'आउटलुक' हिंदी मासिक के फरवरी, 2010 अंक में प्रकाशित हुआ।



3 comments:

  1. बहुत अच्छी जानकारी है धन्यवाद्

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  2. इस फेस्टिवल की रिपोर्ट तो अख़बारों में छपती ही रही ....आपकी रिपोर्ट नहीं देखकर कुछ निराशा हुई थी ...जयपुर साहित्य तीर्थ स्थल बनने की ओर अग्रसर है ....निश्चय ही ...

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  3. बहुत आभार इस आलेख के लिए.

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