Monday, 16 February 2009
कल्हण की राजतरंगिणी
यूं तो सस्कृत साहित्य की विशद परंपरा में सैंकड़ों ऐसे ग्रंथ हैं, जिन पर किसी भी भारतीय को गर्व हो सकता है, लेकिन बारहवीं शताब्दी में कश्मीर के कवि कल्हण की लिखी ‘राजतरंगिणी’ एकमात्र ऐसी कृति है, जिसे आधुनिक दृष्टिकोण से निर्विवाद रूप से संस्कृत साहित्य में पहली और अंतिम लिखित इतिहास पुस्तक का दर्जा दिया जा सकता है। कहने को संस्कृत साहित्य में हजारों ग्रंथ हैं, जिनमें अपने समय का इतिहास झलकता है, किंतु उन सब कृतियों में इतिहास, मिथक और किंवदंतियों का इतना मिश्रण है कि उनमें से इतिहास को निकाल कर अलग करना बेहद मुश्किल है सिर्फ और सिर्फ कल्हण की ‘राजतरंगिणी’ ही इतिहास को उसकी पूरी सच्चाइयों के साथ प्रस्तुत करती है।
यह माना जाता है कि ‘राजतरंगिणी’ 1147 से 1149 ईस्वी के बीच लिखी गई। बारहवीं शताब्दी का यह काल कश्मीर के इतिहास का एक ऐसा काल है जिसे यूं भी कहा जा सकता है कि आज वही इतिहास अपने आपको फिर से दोहरा रहा है। कल्हण के समय कश्मीर राजनैतिक अस्थिरता और उठापटक के दौर से गुजर रहा था। इतिहास का मतलब सिर्फ यह नहीं होता कि किसने कब राज किया, बल्कि यह होता है कि काल विशेष में क्या राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक परिस्थितियां थीं और आम जनता की क्या स्थिति थी। कल्हण ने कश्मीर के इतिहास की सबसे शक्तिशाली महिला शासक दिद्दा का उल्लेख किया है, जो 950-958 ईस्वी में राजा क्षेमगुप्त की पत्नी थी और शारीरिक रूप से कमजोर पति के कारण उसी ने सत्ता पूरी तरह उपयोग किया। वह पति की मृत्यु के बाद सिंहासन पर बैठी और उसने एक साफ सुथरा शासन देने की कोशिश करते हुए भ्रष्ट मंत्रियों और यहां तक कि अपने प्रधानमंत्री को भी बर्खास्त कर दिया। लेकिन दिद्दा को सत्ता और सेक्स की ऐसी भूख थी, जिसके चलते उसने अपने ही पुत्रों को मरवा दिया। वह पुंछ के एक ग्वाले तुंगा से प्रेम करती थी, जिसे उसने प्रधानमंत्री बना दिया। इतिहास का ऐसा वर्णन सिवा कल्हण के किसी और संस्कृत कवि ने नहीं किया।
कल्हण की ‘राजतरंगिणी’ से ही हमें कश्मीर के वास्तविक इतिहास का पता मिलता है। कल्हण एक शिक्षित ब्राह्मण कवि थे और राजनीति के गलियारों में उनकी अच्छी पैठ थी। कारण यह कि उनके पिता चंपक, कश्मीर के राजा हर्ष के दरबार मे मंत्री थे। 120 छंदों में लिखित ‘राजतरंगिणी’ में यूं तो कश्मीर का आरम्भ से यानी ‘महाभारत’ काल से लेकर कल्हण के काल तक का इतिहास है, लेकिन मुख्य रूप से इसमें राजा अनंत देव के पुत्र राजा कैलाश के कुशासन का वर्णन है। कल्हण बताते हैं कि कश्मीर घाटी पहले एक विशाल झील थी जिसे कश्यप ऋषि ने बारामुला की पहाड़िया काटकर खाली किया। श्रीनगर शहर सम्राट अशोक महान ने बसाया था और यहीं से बौद्ध धर्म पहले कश्मीर घाटी में और फिर मध्य एशिया, तिब्बत और चीन पहुंचा।
कल्हण की ‘राजतरंगिणी’ मुख्य रूप से इस इच्छा के साथ लिखी गई प्रतीत होती है कि किस प्रकार एक महान सभ्यता और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध विरासत का कश्मीर राजनैतिक रूप से दुष्चक्रों, कुचक्रों और साजिशों का शिकार होकर एक बर्बर समय में जा पहुंचता है, जिसके बाद उस पर हर तरफ से आक्रमण होते हैं और धरती का स्वर्ग नष्ट हो जाता है। आज भी ‘राजतरंगिणी’ को पढ़ते हुए कष्मीर की दुर्दशा को लेकर मन विचलित हो जाता है।
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where can we buy "Rajtarangini" in hindi ? thanks
ReplyDeleteमुझे यह पुस्तक चाहये ।
ReplyDeleteWhere is Pdf form of this book, if exist plz provide link here.
ReplyDeleteArchie.org aur epustkalaya pr free PDF h Hindi mein
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