Sunday 24 May, 2009

आत्महत्याओं के इस दौर में


कुछ बरस पहले आत्‍महत्‍या की खबरें अखबारों में बहुत कम हुआ करती थीं और लोगों को बेहद सदमा भी लगता था। लेकिन इधर देखने में आया है कि रोजाना एक से अधिक आत्‍महत्‍या की ख़बरें आ रही हैं और हर आयुवर्ग के स्‍त्री-पुरूष किसी ना किसी वजह से आत्‍महत्‍या जैसा कदम उठा रहे हैं। सामूहिक आत्‍महत्‍या के मामलों में भी खासी बढोतरी हो रही है। मुख्‍य रूप से देखा गया है कि आत्‍महत्‍या के ज्‍यादातर मामले किसी ना किसी असफलता से जुड़े हुए होते हैं। ज्‍यादातर मामलों में नवयुवकों में आत्‍महत्‍या की यह प्रवृति देखी गई है, जिसका एक बड़ा कारण यह है कि उम्र के एक खास दौर तक मनुष्‍य मानसिक रूप से परिपक्‍व नहीं होता और जिंदगी को लेकर बहुत भावुक होता है, उसे लगता है कि अब क्‍या जीना। देश में पिछले एक दशक में किसानों में आत्‍महत्‍या की प्रवृति भी तेजी से बढ़ी है।
तमाम तरह के खुदकुशी के मामलों का विश्‍लेषण करने पर पता चलता है कि 99 प्रतिशत आत्‍महत्‍या के मामलों में किसी ना किसी प्रकार की असफलता मूल में होती है और एक प्रतिशत लोगों का अनजाने में ही मानसिक तौर पर आत्‍महत्‍या के प्रति झुकाव होता है। असफलता की अगर बात करें तो पता चलता है कि आर्थिक कारणों से यानी आज के महामंदी के दौर में नौकरी ना मिलने, छूट जाने, व्‍यापार या धंधे में घाटा होने, ज्‍यादा कर्जे और आय के सभी स्रोत सूख जाने के कारण भी बहुत से लोग आत्‍महत्‍या या सामूहिक रूप से खुदकुशी करते हैं। आर्थिक असफलता के बाद सबसे बड़ा कारण इधर जो देखने में आया है वो है पढ़ाई में पिछड़ने या खराब परीक्षा परिणाम आने या आने की संभावना के कारण किशोर अवस्‍था से लेकर युवा अवस्‍था तक के लड़के-लड़कियां खुदकुशी करते हैं। प्रेम में असफल युवक-युवतियों द्वारा खुदकुशी की परंपरा सदियों पुरानी है। पारिवारिक संबंधों में तनाव और किसी कारण बदनामी के डर की वजह से भी बहुत से लोग आत्‍महत्‍या जैसा कठोर कदम उठाने के लिए विवश होते हैं। शराब के आदी लोगों में भी खुदकुशी की प्रवृति होती है। इसके अलावा घर में किसी निकट संबंधी की लंबी साध्‍य बीमारी के चलते या किसी परिजन द्वारा गैर कानूनी काम कर जेल चले जाने या किसी वजह से मर जाने के बाद भी कई लोग जीवन को व्‍यर्थ समझ खुदकुशी की ओर बढ़ते हैं। एक अमेरिकी अध्‍ययन के अनुसार इधर युवाओं में आत्‍महत्‍या की प्रवृति ज्‍यादा देखी गई है।
कारण कोई भी हो आत्‍महत्‍या करने वाले यह नहीं जानते कि खुदकुशी के अलावा भी बहुत से विकल्‍प होते हैं, जिंदगी जीने के लिए। लेकिन अक्‍सर ये विकल्‍प दुनिया किसी के चले जाने के बाद बताती है। दुनिया के अनेक देशों में सरकारी और गैर-सरकारी तौर पर ऐसे संगठन बने हुए हैं, जो आत्‍महत्‍या के लिए उत्‍सुक लोगों को जीवन जीने के विकल्‍प सुझाते हैं और उनकी मदद करते हैं। भारत में इस किस्‍म के संगठन बहुत ज्‍यादा नहीं हैं और न ही लोगों को उनकी कोई खास जानकारी है। ऐसे में हमारी सबसे बड़ी संस्‍था यानी परिवार ही है जो इस किस्‍म की प्रवृति को रोक सकती है। लेकिन आधुनिक जीवन शैली और एकल इकाई परिवार के उदय तथा संयुक्‍त परिवार के विघटन के कारण परिवार नाम की यह संस्‍था भी दरक चुकी है और इसी वजह से बहुत से परिवार अपने प्रियजनों को खो रहे हैं। इसके बाद एक ही विकल्‍प बच जाता है कि व्‍यक्ति स्‍वयं को और अपनी सोच को बदले। यह स्‍वीकारे कि इस संसार में किसी भी समस्‍या विकल्‍प आत्‍महत्‍या नहीं है। जिंदगी में जो भी मुश्किलें हैं वे सब किसी ना किसी प्रकार से सुलझाई जा सकती हैं।
आर्थिक रूप से हालत खराब होने के बाद आत्‍महत्‍या करने वाले एक सीधे-सादे पुराने भारतीय विकल्‍प को भूल जाते हैं यानी सादा जीवन उच्‍च विचार। मनुष्‍य को सामान्‍य जीवनयापन के लिए दो वक्‍त की रोटी और थोड़े से कपड़ों के सिवा और क्‍या चाहिए। खर्चों में कटौती कर अत्‍यंत सामान्‍य ढंग से जिंदगी की गाड़ी को खींचा जा सकता है। व्‍यक्ति को बस आरामतलब नहीं होना चाहिए, बल्कि भरपूर मेहनत करनी चाहिए और घर के सदस्‍यों को भी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने पर अपनी मांगों में कटौती करनी चाहिए। अगर घर के सभी सदस्‍य मिलजुलकर आर्थिक हालात के अनुकूल घर की व्‍यवस्‍था को देखें तो हर हाल में परिवार के भरणपोषण के लिए जिम्‍मेदार व्‍यक्ति का मानसिक तनाव दूर हो सकता है। उत्‍तरदायी व्‍यक्ति को भी सोचना चाहिए कि हालात एक ना एक दिन जरूर बदलेंगे और उस दिन की प्रतीक्षा में मेहनत से जी नहीं चुराना चाहिए और जिंदगी को सकारात्‍मक विचारों से लैस करते रहना चाहिए, अपने घनिष्‍ठ मित्रों और परिजन-शुभचिंतकों से खुलकर बात करनी चाहिए। देश में बहुत से किसान हर साल आत्‍महत्‍या कर रहे हैं और जो नहीं करते वे गांव छोड़कर दूसरे शहरों का रूख कर लेते हैं, जहां उन्‍हें काम और भीख में से एक विकल्‍प तो मिल ही जाता है। शहरों में बढ़ती जा रही भिखारियों की तादाद में गरीब किसान ज्‍यादा हैं। उन्‍होंने मरने से बेहतर रास्‍ता चुना, क्‍योंकि मृत्‍यु कोई समाधान नहीं है।
असफलता को लेकर घबराने वाले लोगों को सोचना चाहिए कि यह खूबसूरत दुनिया दरअसल असफल लोगों ने ही बनाई है। सफलता का कोई तयशुदा गणित नहीं होता और असफलता कभी स्‍थायी नहीं होती। एक नौकरी जाती है तो दूसरी हजारों इंतजार करती हैं और एक व्‍यवसाय में नाकामी दूसरे व्‍यवसाय के लिए तैयार करती है। कैरियर के लिहाज से महात्‍मा गांधी दुनिया के संभवत: सबसे बड़े असफल वकील सिद्ध हुए, जो पहले ही केस में वकालत का पेशा छोड़ गये। लेकिन गांधी जी के लिए जिस तरह एक पूरी दुनिया खुली हुई थी, उसी प्रकार हर व्‍यक्ति के लिए दुनिया में हजारों काम पड़े हैं जो किये जाने हैं, व्‍यक्ति को बस हालात बदलने के लिए संकल्‍प करना चाहिए। अपनी जिंदगी हलाक करने से बेहतर है दूसरों की जिंदगी में उजाला करना। परीक्षा में असफलता इस बात का प्रमाण नहीं कि विद्यार्थी में प्रतिभा नहीं है, हो सकता है उसकी रूचि किसी और दूसरे काम में हो जहां इस पढ़ाई का कोई खास महत्‍व ही नहीं हो। वैसे भी हमारी शिक्षा प्रणाली बहुत अच्‍छी नहीं है, इसमें साल भर की पढ़ाई का दो-तीन घण्‍टों में मूल्‍यांकन किया जाता है जो किसी की मेहनत का मानक नहीं है। एक मित्र ने हाल ही में एक एसएमएस भेजा जो सकारात्‍मक जीवन के लिए बहुत प्रेरणादायक हो सकता है। पाश्‍चात्‍य संगीत के महान कलाकार बीथोवन, महान कवि मिल्‍टन और महान राजनेता फ्रेंकलिन रूजवेल्‍ट तीनों में एक चीज समान थी। ये तीनों किसी ना किसी शारीरिक अक्षमता के शिकार थे। बीथोवन बहरे थे, मिल्‍टन अंधे और रूजवेल्‍ट अपंग थे। कभी इस बात पर भी सोचना चाहिए कि एक वैज्ञानिक कितनी बार प्रयोग करता है और कभी असफलता को लेकर क्‍यों निराश नहीं होता। हजारों प्रयोगों के बाद एक वैज्ञानिक को सफलता मिलती है और कभी कभी तो उसके जीवनकाल में उसके अनुसंधान से कुछ भी रास्‍ता नहीं निकलता और फिर बरसों बाद कोई उसके काम को आगे बढ़ाता है।
प्‍यार में जान देने वाले यह नहीं सोचते कि प्रेम जिंदगी की अहम चीज है, लेकिन अंतिम नहीं। मनुष्‍य के मस्तिष्‍क की संरचना ही ऐसी है कि वह बहुत जल्‍द ही क्षणिक आवेगों और अन्‍य चीजों को भूल जाता है। सभी धर्मों में मृत्‍यु के बाद शोक रखने की अलग-अलग अवधि तय है, वह इसीलिए कि एक परिवार अपने प्रियजन की मृत्‍यु को धीरे-धीरे भूल सके। प्रेम भी एक समय बाद अपना जादुई असर खो देता है। प्रकृति ने मनुष्‍य ही क्‍या समस्‍त प्राणिजगत की संरचना ही ऐसी बनाई है कि मनुष्‍य हो या कोई और, एक जैसी स्थिति में लंबे समय तक नहीं रह सकता। प्रेम सिर्फ साथ रहने और ण्‍क दूसरे के बिना नहीं जी सकने का ही नाम नहीं है, बल्कि प्रेम तो एक दूसरे के बिना भी जीना सिखाता है। दुनिया के अनेक महान साहित्‍यकार और विद्वानों ने प्रेम में असफल रहने के कारण महान किताबें लिखीं। ‘पेराडाइज लोस्‍ट’ के अमर रचयिता दांते ने अपनी प्रेमिका बिएत्रिस की याद में महान रचना लिखी। बिएत्रिस का किसी दूसरे युवक से विवाह हुआ और कुछ दिन बाद वह भी मृत्‍यु को प्राप्‍त हो गई। दांते ने उसे अपनी कविता में अमर कर दिया। प्रेमी-प्रेमिकाओं को खुदकुशी के बजाय यह सोचना चाहिए कि शादी न होने पर वे एक दूसरे को किस प्रकार बेहतर जीवन जीने के लिए प्रेरणा दे सकते हैं और एक दूजे की याद में कौनसा महान काम कर सकते हैं। दुष्‍यंत कुमार का एक शेर बहुत कुछ कहता है-
जियें तो यार की गली में गुलमोहर के तले
मरें मो यार की गली में गुलमोहर के लिए
पारिवारिक संबंधों में उपजे तनाव को दूर करने का सबसे बढिया तरीका है घर-परिवार में प्रत्‍येक मुद्दे पर खुलकर बात करना और एक दूसरे के प्रति मन में किसी भी प्रकार की शंका या संदेह न रखते हुए मिलबैठ कर मामले को सुलझाने का प्रयास करना। पारिवारिक तनाव दरअसल संदेहों से ज्‍यादा बढ़ता है। संदेह आपस में समझ विकसित होने और निरंतर संवाद से ही दूर होते हैं। परिवार में किसी के दुष्‍कृत्‍य से एक बार जरूर बदनामी होती है, लेकिन सचाई यह भी है कि लोगों की याददाश्‍त बहुत कमजोर होती है। समय के साथ सब ठीक हो जाता है। वैसे यह भी स्‍वीकार कर लेना चाहिए कि व्‍यक्ति स्‍वयं अपने कृत्‍य के लिए उत्‍तरदायी होता है और कई मामलों में तो यह भी देखा गया है कि लोग कथित बदनामी से बचने के लिए गांव या शहर छोड़ने का आसान विकल्‍प अपनाते हैं, जिंदगी को दाव पर लगाने से बेहतर है यह विकल्‍प।
इधर कुछ वर्षों से यह भी देखने में आया है कि गंभीर बीमारी से पीडि़त रोगी या घर वाले आत्‍महत्‍या के बजाय जिंदगी को पूरी जिंदादिली के साथ जीने में लग जाते हैं। इस किस्‍म की बाजार में बहुत सी किताबें हैं जो रोगियों ने लिखी हैं। जिसके जीने की आस डॉक्‍टरों को भी नहीं होती वह अपने हौंसलों से मृत्‍यु को ठेंगा दिखाता हुआ जिंदगी को शान से जीता है। हाल ही में दिवंगत हुईं जेड गुडी की ही मिसाल लीजिए जिसने जिंदगी के आखिरी बरसों में किस शानदार ढंग से जीवन जीया।
आत्‍महत्‍या से बचने के लिए उपर सुझाये गये विकल्‍पों के अलावा कुछ और भी विकल्‍प हैं। मनुष्‍य ने अपनी बोरियत और तनावों को दूर करने के हजारों सांस्‍कृतिक उपकरण तैयार किये हैं। व्‍यक्ति को जिस भी चीज का शौक हो उसे दिल खोलकर करना चाहिए। बल्कि हम सबको चाहिए कि अपने बच्‍चों में भी इन रूचियों को विकसित करने के प्रयास करें, ताकि वे पढ़ाई के अलावा भी दुनिया की बेहतरीन कलाओं का आनंद ले सकें। गीत-ग़ज़ल गाना और वाद्ययंत्र बजाना, संगीत सुनना, चित्र बनाना, कला प्रदर्शनियां देखना, किताबें पढ़ना, योगाभ्‍यास और ध्‍यान करने के साथ सुबह-शाम घूमना, नियमित डायरी लिखना, यायावरी करना, कंप्‍यूटर पर गेम खेलना, इंटरनेट पर चैटिंग करना, सिनेमा-टीवी देखना, दोस्‍तों के साथ गप्‍पगोष्‍ठी करना, ताश खेलना और हर समय अपने आपको किसी ना किसी काम में व्‍यस्‍त रखना। ‘हमराज’ फिल्‍म का यह गीत हमेशा गुनगुनाते रहना चाहिए, ‘ना सर झुका के जिओ और ना सर छुपाके जिओ, गमों का दौर भी आये तो मुस्‍कुराके जिओ’।

2 comments:

  1. एक बढ़िया आलेख..
    मनुष्य जब अपनी जिजीविषा के विरुद्ध जाकर आत्महत्या का विकल्प चुनता है, तो जाहिर है उसके पास उसकी समझ के हिसाब से अन्य विकल्प नहीं बचे होते है या महत्वहीन होते हैं...

    आपने अन्य उपलब्ध महत्वपूर्ण विकल्पों की चर्चा करके बेहतर कार्य किया है...

    ReplyDelete
  2. बहुत हद तक अभिभावकों की जिम्मेदारी बनती है ...दरअसल बच्चों को हर परिस्तिथि में एडजस्ट करना सिखाया ही नहीं जाता है...सकारात्मक सोच और सही मार्गदर्शन से नवजवानों में बढती इस प्रवृति को रोका जा सकता है

    ReplyDelete