Sunday 25 April, 2010

कलम से खुदाई करने वाले शेमस हीनी

आयरलैंड के कवियों में शेमस हीनी ऐसे कवि हैं, जिनकी कविताओं ने देश-काल की सीमाओं को लांघते हुए हर काव्यप्रेमी का दिल जीता है। १३ अप्रेल, १९३९ को एक किसान परिवार में जन्मे शेमस हीनी ने अपने ग्रामीण परिवेश में जो कुछ बचपन से देखा-भोगा, उसे अपनी कवितओं में इस खूबसूरती के साथ रूपांतरित किया कि पर्यटन के नक्‍शों में दिखाए जाने वाले आयरलैंड के सुहावने दृश्‍यों से अलग वहां की धरती के नैसर्गिक सौंदर्य के दर्शन होते हैं। और इस सौंदर्य में आयरलैंड की खूबसूरत वादियां ही नहीं, वहां का समूचा प्राणिजगत और श्रमशील जनता भी दिखाई देती है। देहात में अपनी आरंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद १९५७ में हीनी अंग्रेजी भाषा और साहित्य के अध्ययन के लिए बेलफास्ट के क्वींस विश्‍वविद्यालय चले गए। यहां वे उस समय के मशहूर अंग्रेजी कवि टेड ह्‌यूज की कविताओं के संपर्क में आए और समकालीन कविता की दुनिया से जुड़ते चले गए। १९६१ में स्नातक होने के बाद वे एक स्कूल में अध्यापन करने लगे। इस बीच कई कवि-साहित्यकारों के संपर्क में आने से हीनी की कविता समृद्ध होने लगी। १९६२ में उन्होंने कविताएं प्रकाशन के लिए भेजना शुरु किया और धीरे-धीरे उनकी कविताएं लोगों का ध्यान आकर्षित करने लगीं। कविताओं के साथ हीनी अखबारों के लिए लेख आदि भी लिखते रहे। क्वींस विश्‍वविद्यालय के प्राध्यापक फिलिप हॉब्सबाम ने युवा कवियों का एक समूह बनाया और शेमस हीनी को उसमें शामिल किया। अब हीनी कवियों की एक ऐसी वृहत्तर दुनिया से जुड गए, जिसके तार लंदन तक से जुडे हुए थे।
१९६५ में लेखिका मैरी डेवलिन से विवाह के साथ ही क्वींस विश्‍वविद्यालय के वार्षिक समारोह में उनकी ग्यारह कविताओं की पुस्तिका प्रकाशित हुई, जिसने लोगों को एक बार फिर शेमस हीनी की कविताओं पर गंभीरता से सोचने के लिए विवश किया। १९६७ में उनका पहला कविता संग्रह 'डैथ ऑफ ए नेचुरलिस्ट' प्रकाशित हुआ तो अंग्रेजी साहित्य की दुनिया में शेमस हीनी का जबर्दस्त स्वागत हुआ। भाषा, विषयवस्तु और शिल्प की दृष्टि से यह संग्रह अंग्रेजी काव्य संसार की एक नई और अनूठी आवाज के रूप में सामने आया। इस पर हीनी को कई सम्मान और पुरस्कार मिले। अगले साल हीनी माइकल लोंग्ली के साथ एक कविता यात्रा पर निकले तो कई जगह कविता पाठ के दौरान हीनी को व्यापक सराहना मिली। १९६९ में उनका दूसरा काव्य संग्रह 'डोर इन टू द डार्क' प्रकाशित हुआ। उनकी लोकप्रियता बढ़ती जा रही थी और हर तरफ से उनकी कविताओं की मांग थी। तीन साल बाद तीसरा संग्रह 'विंटरिंग आउट' आया और इसके साथ ही शेमस हीनी आयरलैंड, ब्रिटेन और अमेरिका में काव्यपाठ के लिए बुलाए जाने लगे। १९७५ में उनका चौथा और अत्यंत महत्वपूर्ण काव्य संकलन 'नॉर्थ' प्रकाशित हुआ। इसके साथ ही शेमस हीनी की कविताएं अंग्रेजी साहित्य की दुनिया से बाहर भी लोगों का ध्यान आकर्षित करने लगीं, क्यांकि अब लोग उनकी कविताओं का अपनी भाषाओं में अनुवाद करने लगे थे। १९७६ में 'फील्ड वर्क' के रूप में चौथा संग्रह प्रकाश में आया। अब शेमस हीनी इतने बडे कवि के रूप में स्थापित हो चुके थे कि उनकी कविताओं के संचयन प्रकाशित होने लगे थे।
आयरलैंड सरकार ने जब राष्ट्रीय कला परिषद का गठन किया तो शेमस हीनी को सर्वोच्च सम्मान देते हुए उसका सदस्य मनोनीत किया। स्कूल से कॉलेज और विश्‍वविद्यालयों में पढ़ाते हुए वे अमेरिकी विश्‍वविद्यालयों तक अध्यापन के लिए गए, लेकिन उनके भीतर का आयरिश मन अंततः आयरलैंड में ही रमा और वे वहीं के होकर रह गए। एक बार पेंग्विन ने समकालीन ब्रिटिश कविता के एक संचयन में उन्हें शामिल किया तो स्वाभिमानी शेमस हीनी ने चार पंक्तियों में इसका प्रतिरोध किया, 'ध्यान रहे, मेरा पासपोर्ट हरे रंग का है, हमारा कोई जाम, नहीं उठेगा महारानी के नाम।'
साहित्य के साथ हीनी का जुडाव रंगमंच की दुनिया से भी बना रहा और वे एक थियेटर कंपनी के संचालक मंडल में रहे। कविता के अलावा वे समसामयिक विषयों पर भी लगातार लिखते रहे। ऐसे लेखों का १९८८ में प्रकाशित एक संकलन 'द गवर्नमेंट ऑफ द टंग' बहुत लोकप्रिय हुआ। १९८९ में वे हार्वर्ड विश्‍वविद्यालय में पांच साल के लिए प्रोफेसर ऑफ पोएट्री चुने गए। रंगमंच के लिए लिखे उनके नाटक 'द क्योर एट ट्रॉय' और 'सीइंग थिंग्स' बेहद लोकप्रिय हुए।
इतने लोकप्रिय और महत्वपूर्ण रचनाकार को जब १९९५ में नोबल पुरस्कार दिया गया तो किसी को आश्‍चर्य नहीं हुआ क्योंकि वे इसके सच्चे हकदार थे। नोबल पुरस्कार देते हुए उनकी प्रशस्ति में कहा गया कि उनका काम गीतात्मक सौंदर्य और उच्च नैतिक मूल्यों की गहराई से लबरेज है, जो रोजमर्रा की जिंदगी के अचरजों और जीवित इतिहास को शक्ति प्रदान करता है। आलोचक ओला लार्समो के अनुसार शेमस हीनी की कविता में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वहां एक जबर्दस्त अनुभव उद्‌घाटित होता है। जो कुछ दृश्‍यमान है और इस दृश्‍यमान को जितना कुछ व्यक्त किया जा सकता है, इन दो स्थितियों के बीच जो फासला है, उसे शेमस हीनी की कविता अगर पाटती नहीं तो कम से कम नापती जरूर है। अपने पिता को गड्‌ढ़ा खोदते हुए देखकर लिखी शेमस हीनी की कविता 'डिगिंग' में इसे आरंभिक तौर पर पहचाना जा सकता है, हीनी लिखते हैं:-

भगवान कसम, वो बूढा बेलचा चला सकता है
अपने बूढे बाप की तरह
लेकिन मेरे पास उसका अनुकरण करने के लिए
कोई बेलचा नहीं हैं

मेरी अंगुली और अंगूठे के बीच
एक गोल-मटोल कलम है
मैं इसी से खुदाई करूंगा।

७१ वर्षीय शेमस हीनी इन दिनों डबलिन में रहते हैं। नोबल पुरस्कार के बाद उन्हें टी.एस. इलियट पुरस्कार सहित अनेक सम्मान-पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है।
 
यह आलेख राजस्‍थान पत्रिका के रविवारीय संस्‍करण में 25 अप्रेल, 2010 को 'विश्‍व के साहित्‍यकार' शृंखला में प्रकाशित हुआ।

7 comments:

  1. 'बेलचा' ओह ! ये तो मेरे गाँव का ठेठ शब्द है .... ,कितनी सुंदर कविता ...., कहाँ कहाँ से इतनी सुंदर जानकारी ले आते हैं प्रेमचंद जी ?

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  2. शुक्रिया। जानकारी बढ़ी।
    उम्दा कविता,उम्दा तर्जुमा

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  3. regarding pran jee,
    saadar ,
    aap ke colum ka patrika me beshabrim se intzar rahta hai , aap yui vishva ke sahityakaron se hume parichay karvate raehe, aisi kamna hai,
    saadar

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  4. kshamaaa chahuga prem jee ke sthan pe pran jee ho gaya
    saadar

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  5. मेरी ऊँगली और अंगूठे के बीच

    एक गोल मटोल कलम है

    मैं इसीसे खुदाई करूँगा,

    कमाल की पंक्तियाँ और भाव है ! आपके माध्यम से बहुत अच्छी जानकारी मिली!

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  6. देर से पढ़ पाने के कारण कलम से खुदाई करने जैसा विचार मई दिवस के दिन पढना अच्छा लगा ... शेमस हीनी का परिचय भी ...!!

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  7. aapke is lekh ke jariye ek mahan v noble puraskar vijeta ke baare me itni aachhi jankariya mili
    iske liye tahe dil se aapko dhanyavaad dena chahungi itane mahan rachnakarkoshat shat naman.
    poonam

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