बहुत से पाठक और मित्रों का लंबे समय से आग्रह था कि अपने ब्लाग पर कविताएं भी प्रकाशित करनी चाहिएं। मैं बहुत संकोच में था, लेकिन अब लगता है कि जो कविताएं संग्रह में हैं और बहुत से पाठक-मित्रों ने नहीं पढ़ी हैं, उन्हें यहां दिया जा सकता है। इस तरह शायद इन कविताओं को एक नया पाठक वर्ग मिले। और इन कविताओं की कुछ और परख हो सके। आज जो कविता सबसे पहले दे रहा हूं, वह इतिहास की एक पुस्तक पढ़ते हुए सूझी थी। इतिहास सुंदरी आम्रपाली का एक प्रसंग पढ़ा था कि वह अपने अंतिम दिनों में बौद्ध भिक्षुणी हो गई थी। मुझे इस प्रसंग को पढते हुए लगा कि क्या वजह रही होगी और क्या मानसिकता रही होगी आम्रपाली की, कि उसे अंतिम शरण धर्म में मिली। क्या आध्यात्मिकता की तरफ झुकाव के पीछे मनुष्य के व्यक्तिगत जीवनानुभव होते हैं, या जीवन के एक मोड़ पर आकर संसार और जीवन को निस्सार समझने से यह संभव होता है। ऐसे कई सवालों से जूझते हुए यह कविता लिखी थी। आज पाठक और मित्रों से जानना चाहता हूं कि वे इस कविता के कुछ और अर्थ भी खोल सकेंगे और मेरा ज्ञानवर्धन कर सकेंगे।
वैशाली-सी दुनिया में
नगर भर को
खुश रखने के जतन में
रोज़ रेतघड़ी में से रिसती रेत की मानिंद
भीतर ही भीतर कण-कण रिसती रही आम्रपाली
सिक्कों की खनक और चमक के बदले
किसी न किसी का पहलू
रोशन करती रही आम्रपाली
छाता ही रहा उसकी आत्मा पर
अंधकार का काजल
महागणिका होते हुए भी उसने
अनुभव किया खुद को
साधारण से भी तुच्छ
झोंपड़ों में पली आम्रपाली को
रास न आया महागणिका का वैभव
उसके रोम-रोम ने पुकारा
तथागत ! तथागत ! तथागत !
आम्रपाली चाहती है
आख़िरी बार रमण करना
मृत्यु की तरह आयें तथागत
वैशाली-सी दुनिया है यह
और ज़िंदगी आम्रपाली है ॰
आम्रपाली से पहले भी तथागत ने अनेक स्त्रियों को दीक्षा दी जिनमे महाप्रजापति गौतमी और यशोधरा भी शामिल थी । उन्होने प्रकृति नामक एक चंडालिका को भी दीक्षा दी । यह कविता अपने कथ्य और शिल्प मे बेहद उम्दा है । इतिहास पर कविता लिखने में इतनी ही छूट ली जानी चाहिये कि तथ्य यथावत रहें और यह तो वैसे भी हर कविता के लिये ज़रूरी बात है । यह अच्छा किया कि आपने यहाँ कविताएँ देनी शुरू की हैं ..इसे जारी रखिये । -शरद कोकास -पुरातत्ववेत्ता
ReplyDeleteअच्छी कविता! अपनी और भी कविताएँ लगायें और विश्वास रखें यहाँ एक बड़ा और अलग पाठक वर्ग मिलेगा आपको
ReplyDeleteनैराश्य भाव लिए हुए है कविता ....जैसे अचानक कोई सुन्दर भ्रम टुटा हो.
ReplyDelete@ शरद जी - भाव देखें मित्र .. कभी -कभी तथ्यों के लिए कवि को बक्श दिया जाना चाहिए :-)
आम्रपाली चाहती है
ReplyDeleteआख़िरी बार रमण करना
मृत्यु की तरह आयें तथागत...
मॄत्यु के नैराश्य के बीच भी, उससे रमण की आकांक्षा को क्या कहेंगे...
अच्छा रहेगा यहां आपकी कविताओं से गुजरना....
वैशाली की नगरवधू में आम्रपाली के नगरवधू से बौद्ध भिक्षुणी बनने के सफ़र को पढ़ा था ...एक सीधी सदी प्रेमयुक्त कन्या को परंपरा के नाम पर भोग विलास के लिए नगरवधू बनाया गया ...ताउम्र इस पीड़ा की छटपटाहट ने उसे षड़यंत्र रचने पर विवश किया ...
ReplyDeleteइस जलन से उसे मुक्ति तथागत ने ही दी ...
अनुरोध स्वीकार कर कविता प्रकाशित करने का बहुत आभार ...!!
प्रेमचंद जी
ReplyDeleteआम्रपाली की पीड़ा आज की औरत की भी है . सबको , घर भर को खुश रखने के चक्कर में एक आम भारतीय स्त्री खुद कतरा कतरा मरती है .और जब पानी सिर से ऊपर निकलता है तो ...तब कहीं पलायन का भाव तो मन में पैदा होता ही है .
रास्ता जहाँ से भी मिले, नदी बना लेती है .बह जाती है .
आम्रपाली को धन से मालामाल करने वाले तो अनेक मिले पर प्रेम ...कहाँ मिला ? स्त्री को यही चाहिए .( 'वैशाली-सी दुनिया में'कविता के सन्दर्भ में )