जिंदगी की किताब स्त्री पुरुष के एक बाग में मिलने से शुरू होती है और
ईश्वरीय ज्ञान पर खत्म हो जाती है। - ऑस्कर वाइल्ड
जी हां, बहुत से लोगों की जिंदगी की किताब भी उसी अध्याय से शुरू होती है
जिसमें स्त्री का प्रवेश होता है। मेरे साथ भी यही हुआ। वह मेरी जिंदगी में तब आई,
जब मैं कॉलेज में पढ़ रहा था। सच में अगर ठीक से विचार कर कहूं तो वह मेरी
कल्पनाओं जैसी तो कहीं से भी नहीं थी। बल्कि आज के लिहाज से कहूं तो उसके सिन्दूरी
गाल सच्चाई से कोसों दूर के लगते थे यानी कुल जमा में वह अप्रतिम सौन्दर्य की धनी
थी। मैं उससे बेपनाह मोहब्बत करता था और गंभीरतापूर्वक कानूनी तौर पर उससे शादी करने
के बारे में सोचने लगा था। किस्मत से उसने पड़ौस के एक कसाई के कारण मुझे छोड़
दिया। उस वक्त मुझे बहुत तकलीफ हुई जिसने मुझे स्त्री जाति के प्रति शर्मीला बना
दिया। उन दिनों में तंगहाली में जी रहा था। गरीब के दुख को कौन समझता है। यदा-कदा
मिलने वाली स्त्रियां भी मुझे हिकारत से देखकर झिड़क देती थीं। सच तो यह है कि मैं
दूसरी तरह का अमीर था। मेरी रुचियां बहुत सामान्य थीं और किसी से मेरे संबंध खराब
नहीं थे। कुछ समय बाद स्त्रियां मुझमें रुचि दिखाने लगीं। मेरा खयाल है कि जब
स्त्रियों का भरपूर सान्निध्य मिले तो आपको उस नकली पूंजी से मुक्ति पाने में
बहुत सहूलियत होती है, जैसे मैं समझता रहा कि मेरे पास उसकी चाहत की पूंजी थी। मेरे
आसपास जो महिलाएं थीं, उन्हें मेरी सादगी में कुछ विशेष लगने लगा, जबकि पहले वे
सादगी को बेहूदगी समझती थीं। मेरे दोस्त हार्डिंग ने बताया कि मेरे बारे में उसकी
बहन ने ऐसा ही कुछ कहा था। उसकी बहन बहुत तेज-तर्रार चालाक लड़की थी। ख़ैर, घर में
इकलौती संतान होने के कारण मुझे स्त्री को उस रूप में देखने का मौका नहीं मिला
जैसा भरे-पूरे घर में होता है। स्त्रियों की सामान्य चीजें भी मेरे लिए बहुत
पवित्र हुआ करती थीं। इसलिए मैं किताबों में डूब गया, जहां नायिका के रूप
में स्त्री होती थी। मेरा खयाल था कि औरतों के बारे में मेरी युवकोचित जिज्ञासाएं उन
किताबों से ही शांत होंगी और उनके बीच गहरे उतरने से पहले मुझे उनके बारे में ठीक
से जाने लेना चाहिए। कह नहीं सकता कि इससे मुझे कितना फायदा हुआ, बस इतना जानता
हूं कि स्त्री जाति के बारे में इतनी विभिन्न प्रकार की जानकारियां हासिल हुईं
कि जैसे मैं सालमन मछलियों की एक पूरी प्रजाति के बारे में जान गया होउं।
मेरे दोस्त स्मिथ ने
मुझे बताया कि सालमन मछली चार तरह की होती हैं, बाकी सब उसकी विविध उपजातियां और
किस्में होती हैं। इसी तरह कुछ लेखक मित्रों ने बताया कि स्त्रियों में बस अच्छी
और बुरी दो ही तरह की महिलाएं होती हैं। लेकिन मेरे जैसे सत्यान्वेषी के लिए तमाम
जानकारियां पहेलियों जैसी थीं, क्योंकि वहां कई किस्मों का मिश्रण मिलता था
मुझे। इसलिए एक दिन मैंने किताबें छोड़ दीं और वैज्ञानिक शोधकर्ता की तरह स्त्री
जाति के अन्वेषण के लिए अपनी ही राह पर चल निकला। मेरे लिहाज से फ्रेंच, जर्मन,
स्पेनिश और घरेलू ब्रिटिश तो महिलाओं की चार मूल प्रजातियां थी हीं। मैंने सबसे
युवा से लेकर तीन बार की तलाकशुदा और विधवा सबका ठीक से अध्ययन किया। मैंने उनके
बारे में जितना जाना, वही मुझे हमेशा कम लगता था। लेकिन लगता है कि वे मुझे समझ
जाती थीं। उन्होंने मुझे सीरियसली लेने से ही जैसे मना कर दिया था। इसलिए मैंने
भी एक दिन ये सब छोड़ दिया और बंदूक उठाकर शिकार करने निकल गया। मैंने धरती पर कोई
जगह नहीं छोड़ी, हर उस जंगल में गया, जहां शायद ही कोई अंग्रेज कभी गया हो। इस दुनिया
में आवारा घूमने से बेहतर कोई जिंदगी नहीं और कुदरत को पढ़ने से बड़ी कोई किताब
नहीं है।
ख़ैर, बारह बरस तक मेरी भटकती आत्मा मुझे दुनिया भर में घुमाती रही। मैंने
हर जगह शिकार किया, मछली की असंख्य किस्में खोजीं और पकड़ीं। दुनिया
के हसीनतर नज़ारों का आनंद लिया। लेकिन औरत की छाया से भी मुझे शर्म आती थी। पिछले
साल मैं जिस फर्म के लिए काम कर रहा था, उसने केन्ट के नजदीक
एक सराय में मुझे कुछ दिन के लिए रुकने को कहा। वहां मछली की एक नई प्रजाति का पता
लगाना था। मैंने सराय का सालभर का किराया चुकाया और काम में जुट गया।
मैं जिस मेज पर लिख रहा हूं, वहां एक दस्ताना रखा है। इसकी देह भूरे रंग की है। इसके चारों ओर चांदी जैसी सफेद धारियां हैं और गहरे भूरे रंग का रेशमी लैस है, जिससे बांधा जा सके। इससे एक प्यारी सी खुश्बू आ रही है जो शायद कीट-पतंगों को दूर रखने के लिए है। इसके साथ ही मेज पर और भी सामान रखा है। मैं आश्वस्त हूं कि यह सब इस सराय की मालकिन का तो नहीं ही है। मुझे पता नहीं क्यों लगता है कि कुछ होने वाला है। ऐसा मेरे साथ कई बार होता है, अचानक कोई अप्रत्याशित खतरा भांप कर या कि किसी और कारण से। मुझे लगता है किसी ने मुझे पीछे से देखा है और हल्की पदचाप सीढि़यां चढ़कर ऊपर जाती सुनाई देती हैं। मैं मेज पर दस्ताने के साथ रखी कैंची, धागे, लैस, रिबन, सुई आदि चीजों को छूने से अपने हाथ रोक लेता हूं।
यहां चारों
ओर बहुत ही खूबसूरत नज़ारे हैं, बिल्कुल मन मोह लेने वाले। सराय के नजदीक ही नदी है और यहां से नदी का खूबसूरत
दृश्य दिखता है। प्राकृतिक दृश्यावली, खेलते बच्चे, काम करते मजदूर और
यहां के एकांत से मुझे फिर लगता है कि कुछ होने वाला है। शाम को खाने के बाद मैं
नदी पर गया। बहुत ही सुहानी शाम। चांदी सी चमक लिए भूरी मटमैली संध्या। आसमान पर
पीले-सुनहरी रंगों के जैसे आखिरी करतब नाच रहे हों। हल्की बारिश हुई थी, इसलिए हवा में
सौंधी-सौंधी गंध फैली थी। मैं बचपन की ऐसी ही यादों में खो गया। बारिश के बाद
कितना स्वर्गिक हो जाता है धरती का रूप। पागल कर देने वाली मिट्टी की महक।
धुले-धुले पौधे और दरख्त। चमचमाती पत्तियां। हवा के संग नाचती हुई कुदरत जैसे
इंसान को भी नचाने वाली हो। मैंने सड़क से अलग रास्ता लिया और धारा की तरफ चलने
लगा। वाह! मुझसे पहले ही यहां कोई मौजूद है? वह आकृति एक झाड़ी के
पीछे है, लेकिन मैं उसे खूबसूरती से पानी में कांटा डालते देख रहा
हूं। मैं तेज चलता हूं और उसके नजदीक जाता हूं। अचानक मेरे कानों में सुनाई पड़ती
है 'श्श्श शÓ की आवाज और मैं चीख पड़ता हूं। 'हेÓ सलेटी कपड़ों में एक
स्त्री कांटा-वंशी पकड़े मुझ तक आती है। माफ कीजिए, लेकिन इस तरह मेरे
पीछे आना बहुत भी मूर्खतापूर्ण हरकत थी आपकी। वह खुशनुमा शाम जैसी आवाज में बोली।
मैंने अपना तर्क दिया और उसने अपना। उसने कैंची मांगी, मैंने चाकू सौंप दिया।
चाकू देते हुए मुझे उसके हाथ देखकर लगा मैं एक सुखद स्पर्श के अहसास से वंचित रह
गया हूं। किसी बात पर हम दोनों हंस पड़े। मैंने देखा उसका मस्तक बिल्कुल दूधिया
रंग का था। सलेटी कैप के नीचे सलेटी आंखें। मुंह ऐसा जिसे एक पुरुष जिंदगी भर
चूमना चाहे। बच्चों जैसा कोमल चेहरा, नुकीली ठुड्डी यानी
धूसर प्रकाश में भी बहुत ही खूबसूरत चेहरा। हल्की-फुल्की बातचीत करते हुए वापस चल
पड़े। मैंने खूबसूरत मछलियों से भरी उसकी डलिया थाम ली। उसका सामीप्य एक सुखद
अहसास दे रहा था। हवा में तैरती फूलों की खुश्बू उसकी देहगंध से मिलकर अभूतपूर्व
खुशी जगा रही थी।
जब उसके कदम सराय के बगीचे की ओर मुड़े तो मुझे थोड़ा आश्चर्य हुआ। फिर लगा कि अरे यह तो वही है। मेरे हाथों से डलिया लेकर वह रसोई में चली गई। ... मैं बैठक में उसी के ख्यालों में गुम हूं और उसकी पदचाप सुनने के लिए कान लगाए खिड़की के सहारे खड़ा हूं। उसके आते ही मैं सब कुछ भूल जाता हूं। उसके हाथ गजब के सुन्दर हैं। इन्हें देखकर मुझे आर्किड के फूल याद आते हैं। वह बातचीत शुरू करती है और मैं उसकी आंखों की चमक में खो जाता हूं।
आप जानते हैं? जिप्सियों की मान्यता है कि रिबन और स्त्री को चांदनी रात या शमा की रोशनी में देखकर फैसला नहीं करना चाहिए।वह उठ खड़ी होती है और मैं उसके हाथ देखना चाहता हूं। वह सिर्फ किताब और टोकरी उठाकर हल्के से सिर झुकाते हुए 'गुडनाइट’ कहती है। मैं उसकी खाली कुर्सी के पास खड़ा होकर अपना हाथ वहां रख देता हूं, जहां उसका सिर टिका हुआ था। अगर वह यहां होती तो कैसी दिखती।
अगली सुबह मैं हर्ष और उन्माद में देर से उठा। तैयार होते वक्त दिल ने हल्की सीटियां बजाई। नीचे आकर देखा तो मालकिन नाश्ते की मेज साफ कर रही थी। मैं निराश था। मैंने भविष्य में जल्दी उठने की ठानी। उसके बारे में पूछना अच्छा नहीं लगा और यह भी कि इससे कहीं बुरा मान गई तो। शाम मैंने नदी पर गुजारी। कल वह मुझे जिस जगह मिली थी, वहां बैठकर मैनें पाइप पिया। मैं आंखें बंद करता तो धुएं में उसका चेहरा नजर आता। थोड़ी देर बाद मैंने सोचा, शायद वह चली गई है। यह ख्याल आते ही मुझे कंपकंपी होने लगी।
मैंने देखा खिड़की में रोशनी है। वह खिड़की पर झुकी है। मैंने हल्का सा खंखारा। वह तेजी से मुड़ी और हल्के से सिर झुकाकर मुस्कुराई। मेज पर दस्ताने, फीते और बहुत से कागज फैले पड़े थे। मुझे डर लगा, वह जा रही है। मैंने कहा, प्लीज, मुझे अपने से दूर मत कीजिए। अभी कितना सा तो वक्त बीता है?
कुछ भी तो अच्छा नहीं लग रहा। उसकी आवाज में आंसू तैर रहे थे। मैं कस्बे की तरफ गई थी। कितनी गर्मी और धूल थी। मैं बुरी तरह थक गई हूं। नौकरानी ने लैम्प के साथ ट्रे में नींबू पानी लाकर रख दिया। मैंने उसके लिए नीबूं पानी बनाया।
खैर! दस दिन गुजर गए। हम कभी खाने पर तो कभी नाश्ते पर मिलते। साथ बैठ मछलियां पकड़ते या बगीचे में बैठकर बातें करते। उसमें एक बच्चे और औरत का गजब का मिश्रण है। वह कोई पत्र आने पर या कस्बे की तरफ जाती हुई एक लड़की जैसी दिखती है और कस्बे से लौटते हुए पैंतीस साल की औरत।
रसोई के पास से गुजरते हुए मालकिन ने कहा- मुझे दुख है तुम उसे खो दोगे! क्या मतलब? उसके बिना तो मैं जिंदगी की, भविष्य की कल्पना भी नहीं कर सकता और मुझे तो यह भी पता नहीं कि वह आजाद है या नहीं। ...शाम को मैंने उसे बगीचे में देखा तो उसके पीछे चल दिया। हम नदी किनारे साथ बैठे। उसके बाएं हाथ में दस्ताना नहीं है और वह घास पर उसे रखे बैठी है।
आपको बुरा तो नहीं लगेगा अगर मैं कोई खास सवाल पूछूं? मेरे सवाल के जवाब में उसने कहा, नहीं। मैंने उसका नंगा हाथ पकड़कर उसकी अंगूठी छूते हुए पूछा, क्या यह अंगूठी आपको किसी से बांधे हुए है? उसकी आवाज कांप रही थी, कानूनी रूप से तो किसी से नहीं। लेकिन आप क्यों पूछ रहे हैं? मैं खुद कुछ बताना चाहती थी। चलिए चलते हैं। खाने के बाद बैठक में मिलते हैं।
आप काफी समय से बाहर हैं और शायद अखबार नहीं पढ़ते हैं। मुझे नहीं पता आपने क्यों पूछा कि मैं आजाद हूं या नहीं। मैं कोई खूबसूरत औरत नहीं हूं। लेकिन कुछ है मेरे भीतर जो पुरुषों को लुभाता है। आज आपकी आंखों में जो देखा वह पहले भी बहुतों में देखा है मैंने। आज (सुबकते हुए) मैं कह सकती हूं कि मैं आजाद हूं। कल नहीं कह सकती थी। कल मेरे पति केस जीत गए। उन्होंने मुझे तलाक दे दिया।
मुझे उस अतीत से कोई लेना-देना नहीं। मैं जिस दिन से आपसे मिला वहीं से मैं आपको जानते हुए पूछता हूं कि आप मुझसे शादी करेंगी?
सुनिए मुझे कुछ कहना है। मैंने मुकदमा लड़े बिना हार मान ली। मेरे पति ने चालाकी और धूर्तता से केस जीता। अखबारों ने मुझे व्यभिचारिणी कहा। पिछले सप्ताह एक अखबार में मेरा रेखाचित्र छपा। कितना अजीब है आप अपनी ही तस्वीर वाला अखबार खरीद रहे हैं। फिर भी जो कुछ हुआ उससे मैं खुश हूं। मैं बहुत अकेली पड़ गई हूं और आपका मेरी तरफ ध्यान देना मुझे अच्छा लग रहा है। लेकिन मैं आपसे पे्रम नहीं करती। आपको बहुत इंतजार करना पड़ेगा। ... मुझे पहले तो यह सीखना होगा मैं फिर से एक आजाद स्त्री हूं। क्या आप मेरी इस वक्त की भावनाओं को समझ सकते हैं।
मैंने इंकार में सिर हिलाया।
अगली बार हम दोनों के इरादे मजबूत होंगे। कहते हुए उसने मेरे होठों पर उंगली रख दी। आपके पास सोचने के लिए एक साल है। आप तब भी आज की बात ही कहेंगे तो मैं जवाब दूंगी। मुझे ढूंढऩा मत। जिंदा रही तो आऊंगी। मर गई तो खबर हो जाएगी।
मैंने हल्के से उसका हाथ चूमते हुए कहा- जैसी आपकी मर्जी। मैं यहीं मिलूंगा। दस बजे तक हम ऐसे ही बैठे रहे। फिर वह चली गई। ... अगले दिन नौकरानी ने आकर उसका दिया एक लिफाफा थमाया। इसमें एक सफेद दस्ताना था। इसलिए मैं इसे हर जगह साथ लिए रहता हूं। एक हफ्ते से ज्यादा सराय नहीं छोड़ता। मैं सपनों में उसको आता हुआ देख रहा हूं। वह पहले की तरह लम्बी घास को चीरते हुए आएगी। बारिश में चमकती चांदी जैसी पानी की बूंदों की तरह नाचती हुई आएगी। महकती धरती की सौंधी गंध लिये आएगी। उसकी सलेटी आंखों में चमक होगी और वह इस सलेटी दस्ताने के बदले वह चमक मुझे दे देगी।
जब उसके कदम सराय के बगीचे की ओर मुड़े तो मुझे थोड़ा आश्चर्य हुआ। फिर लगा कि अरे यह तो वही है। मेरे हाथों से डलिया लेकर वह रसोई में चली गई। ... मैं बैठक में उसी के ख्यालों में गुम हूं और उसकी पदचाप सुनने के लिए कान लगाए खिड़की के सहारे खड़ा हूं। उसके आते ही मैं सब कुछ भूल जाता हूं। उसके हाथ गजब के सुन्दर हैं। इन्हें देखकर मुझे आर्किड के फूल याद आते हैं। वह बातचीत शुरू करती है और मैं उसकी आंखों की चमक में खो जाता हूं।
आप जानते हैं? जिप्सियों की मान्यता है कि रिबन और स्त्री को चांदनी रात या शमा की रोशनी में देखकर फैसला नहीं करना चाहिए।वह उठ खड़ी होती है और मैं उसके हाथ देखना चाहता हूं। वह सिर्फ किताब और टोकरी उठाकर हल्के से सिर झुकाते हुए 'गुडनाइट’ कहती है। मैं उसकी खाली कुर्सी के पास खड़ा होकर अपना हाथ वहां रख देता हूं, जहां उसका सिर टिका हुआ था। अगर वह यहां होती तो कैसी दिखती।
अगली सुबह मैं हर्ष और उन्माद में देर से उठा। तैयार होते वक्त दिल ने हल्की सीटियां बजाई। नीचे आकर देखा तो मालकिन नाश्ते की मेज साफ कर रही थी। मैं निराश था। मैंने भविष्य में जल्दी उठने की ठानी। उसके बारे में पूछना अच्छा नहीं लगा और यह भी कि इससे कहीं बुरा मान गई तो। शाम मैंने नदी पर गुजारी। कल वह मुझे जिस जगह मिली थी, वहां बैठकर मैनें पाइप पिया। मैं आंखें बंद करता तो धुएं में उसका चेहरा नजर आता। थोड़ी देर बाद मैंने सोचा, शायद वह चली गई है। यह ख्याल आते ही मुझे कंपकंपी होने लगी।
मैंने देखा खिड़की में रोशनी है। वह खिड़की पर झुकी है। मैंने हल्का सा खंखारा। वह तेजी से मुड़ी और हल्के से सिर झुकाकर मुस्कुराई। मेज पर दस्ताने, फीते और बहुत से कागज फैले पड़े थे। मुझे डर लगा, वह जा रही है। मैंने कहा, प्लीज, मुझे अपने से दूर मत कीजिए। अभी कितना सा तो वक्त बीता है?
कुछ भी तो अच्छा नहीं लग रहा। उसकी आवाज में आंसू तैर रहे थे। मैं कस्बे की तरफ गई थी। कितनी गर्मी और धूल थी। मैं बुरी तरह थक गई हूं। नौकरानी ने लैम्प के साथ ट्रे में नींबू पानी लाकर रख दिया। मैंने उसके लिए नीबूं पानी बनाया।
खैर! दस दिन गुजर गए। हम कभी खाने पर तो कभी नाश्ते पर मिलते। साथ बैठ मछलियां पकड़ते या बगीचे में बैठकर बातें करते। उसमें एक बच्चे और औरत का गजब का मिश्रण है। वह कोई पत्र आने पर या कस्बे की तरफ जाती हुई एक लड़की जैसी दिखती है और कस्बे से लौटते हुए पैंतीस साल की औरत।
रसोई के पास से गुजरते हुए मालकिन ने कहा- मुझे दुख है तुम उसे खो दोगे! क्या मतलब? उसके बिना तो मैं जिंदगी की, भविष्य की कल्पना भी नहीं कर सकता और मुझे तो यह भी पता नहीं कि वह आजाद है या नहीं। ...शाम को मैंने उसे बगीचे में देखा तो उसके पीछे चल दिया। हम नदी किनारे साथ बैठे। उसके बाएं हाथ में दस्ताना नहीं है और वह घास पर उसे रखे बैठी है।
आपको बुरा तो नहीं लगेगा अगर मैं कोई खास सवाल पूछूं? मेरे सवाल के जवाब में उसने कहा, नहीं। मैंने उसका नंगा हाथ पकड़कर उसकी अंगूठी छूते हुए पूछा, क्या यह अंगूठी आपको किसी से बांधे हुए है? उसकी आवाज कांप रही थी, कानूनी रूप से तो किसी से नहीं। लेकिन आप क्यों पूछ रहे हैं? मैं खुद कुछ बताना चाहती थी। चलिए चलते हैं। खाने के बाद बैठक में मिलते हैं।
आप काफी समय से बाहर हैं और शायद अखबार नहीं पढ़ते हैं। मुझे नहीं पता आपने क्यों पूछा कि मैं आजाद हूं या नहीं। मैं कोई खूबसूरत औरत नहीं हूं। लेकिन कुछ है मेरे भीतर जो पुरुषों को लुभाता है। आज आपकी आंखों में जो देखा वह पहले भी बहुतों में देखा है मैंने। आज (सुबकते हुए) मैं कह सकती हूं कि मैं आजाद हूं। कल नहीं कह सकती थी। कल मेरे पति केस जीत गए। उन्होंने मुझे तलाक दे दिया।
मुझे उस अतीत से कोई लेना-देना नहीं। मैं जिस दिन से आपसे मिला वहीं से मैं आपको जानते हुए पूछता हूं कि आप मुझसे शादी करेंगी?
सुनिए मुझे कुछ कहना है। मैंने मुकदमा लड़े बिना हार मान ली। मेरे पति ने चालाकी और धूर्तता से केस जीता। अखबारों ने मुझे व्यभिचारिणी कहा। पिछले सप्ताह एक अखबार में मेरा रेखाचित्र छपा। कितना अजीब है आप अपनी ही तस्वीर वाला अखबार खरीद रहे हैं। फिर भी जो कुछ हुआ उससे मैं खुश हूं। मैं बहुत अकेली पड़ गई हूं और आपका मेरी तरफ ध्यान देना मुझे अच्छा लग रहा है। लेकिन मैं आपसे पे्रम नहीं करती। आपको बहुत इंतजार करना पड़ेगा। ... मुझे पहले तो यह सीखना होगा मैं फिर से एक आजाद स्त्री हूं। क्या आप मेरी इस वक्त की भावनाओं को समझ सकते हैं।
मैंने इंकार में सिर हिलाया।
अगली बार हम दोनों के इरादे मजबूत होंगे। कहते हुए उसने मेरे होठों पर उंगली रख दी। आपके पास सोचने के लिए एक साल है। आप तब भी आज की बात ही कहेंगे तो मैं जवाब दूंगी। मुझे ढूंढऩा मत। जिंदा रही तो आऊंगी। मर गई तो खबर हो जाएगी।
मैंने हल्के से उसका हाथ चूमते हुए कहा- जैसी आपकी मर्जी। मैं यहीं मिलूंगा। दस बजे तक हम ऐसे ही बैठे रहे। फिर वह चली गई। ... अगले दिन नौकरानी ने आकर उसका दिया एक लिफाफा थमाया। इसमें एक सफेद दस्ताना था। इसलिए मैं इसे हर जगह साथ लिए रहता हूं। एक हफ्ते से ज्यादा सराय नहीं छोड़ता। मैं सपनों में उसको आता हुआ देख रहा हूं। वह पहले की तरह लम्बी घास को चीरते हुए आएगी। बारिश में चमकती चांदी जैसी पानी की बूंदों की तरह नाचती हुई आएगी। महकती धरती की सौंधी गंध लिये आएगी। उसकी सलेटी आंखों में चमक होगी और वह इस सलेटी दस्ताने के बदले वह चमक मुझे दे देगी।
मूल कहानी जॉर्ज इगर्टन की है। पुनर्कथन प्रेम चंद गांधी। यह कहानी पत्रिका समूह के 'परिवार' परिशिष्ट में बुधवार, 04 जुलाई, 2012 को प्रकाशित हुई थी।